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पोषक पदार्थ (Nutrients) |
> वे पदार्थ, जो जीवों में विभिन्न प्रकार के जैविक कार्यों के संचालन एवं संपादन के लिए आवश्यक होते हैं, पोषक पदार्थ (Nutrients) कहलाते हैं। उपयोगिता के आधार पर ये पोषक पदार्थ चार प्रकार के होते हैं-
1. ऊर्जा उत्पादक : वे पोषक पदार्थ, जो ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। जैसे-वसा एवं कार्बोहाइड्रेट।
2. उपापचयी नियंत्रक : वे पोषक पदार्थ, जो शरीर की विभिन्न उपापचयी क्रियाओं का नियंत्रण करते हैं। जैसे-विटामिन, लवण एवं जल ।
3. वृद्धि तथा निर्माण पदार्थ : वे पोषक पदार्थ, जो शरीर की वृद्धि एवं शरीर की टूट-फूट की मरम्मत का कार्य करते हैं। जैसे-प्रोटीन ।
4. आनुवंशिक पदार्थ: वे पोषक पदार्थ, जो आनुवंशिक गुणों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ले जाते हैं। जैसे-न्यूक्लिक अम्ल ।
> मनुष्य के शरीर में विभिन्न कार्यों के लिए निम्नलिखित पोषक पदार्थों की आवश्यकता है-
1. कार्बोहाइड्रेट,
2. प्रोटीन,
3. वसा,
4. विटामिन, '
5. जल
6. न्यूक्लिक अम्ल और
7. खनिज-लवण ।
1. कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrates):
> कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के 1 : 2 : 1 के अनुपात से मिलकर बने कार्बनिक पदार्थ कार्बोहाइड्रेट कहलाते हैं। शरीर की ऊर्जा की आवश्यकता की 50-75% मात्रा की पूर्ति इन्हीं पदार्थों द्वारा की जाती है। 1 ग्राम ग्लूकोज के पूर्ण ऑक्सीकरण से 4.2 kcal ऊर्जा प्राप्त होती है।
कार्बोहाइड्रेट तीन प्रकार के होते हैं-
(a) मोनो सैकराइड : यह कार्बोहाइड्रेट की सबसे सरल अवस्था है। जैसे-ग्लूकोज, ग्लैक्टोज, मैनोज, ट्राइओज आदि ।
(b) डाई सैकराइड्स : समान या भिन्न मोनो सैकराइड्स के दो अणुओं के संयोजन से एक डाइ सैकराइड्स बनता है। जैसे-माल्टोज, सुक्रोज एवं लैक्टोज।
ग्लूकोज + फ्रुक्टोज =सुक्रोज
ग्लूकोज + ग्लूकोज=माल्टोज
ग्लूकोज + ग्लैक्टोज=लैक्टोज
(c) पॉली सैकराइड्स : मोनो सैकराइड्स के कई अणुओं के मिलने से लम्बी श्रृंखला वाली अघुलनशील पॉली सैकराइड्स का निर्माण होता है । यह आश्ररोपोडा के बाह्य कंकाल व सेलूलोज में पाया जाता है। इसके अन्य उदाहरण हैं-स्टार्च ग्लाइकोजेन, काइटिन आदि।
कार्बोहाइड्रेट के प्रमुख कार्य
(a) ऑक्सीकरण द्वारा शरीर की ऊर्जा की आवश्यकता को पूरा करना।
(b) शरीर में भोजन संचय की तरह कार्य करना ।
(c) विटामिन C का निर्माण करना ।
(d) न्यूक्लिक अम्लों का निर्माण करना ।
(e) जंतुओं के बाह्य कंकाल का निर्माण करना।
> कार्बोहाइड्रेट के प्रमुख स्रोत : गेहूँ, चावल, मक्का, बाजरा, आल,शकरकंद, शलजम।
2. प्रोटीन (Protein):
> प्रोटीन शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग जे. बजेलियस ने किया था। यह एक जटिल कार्बनिक यौगिक है, जो 20 अमीनो अम्ल से मिलकर बने होते हैं। मानव शरीर का लगभग 15% भाग प्रोटीन से ही निर्मित होता है। सभी प्रोटीन में नाइट्रोजन पाया जाता है।
> ऊर्जा उत्पादन एवं शरीर की मरम्मत दोनों कार्यों के लिए प्रोटीन उत्तरदायी होता है।
> मनुष्य के शरीर में 20 प्रकार की प्रोटीन की आवश्यकता होती है, जिनमें से 10 का संश्लेषण उसका शरीर स्वयं करता है तथा शेष 10 भोजन के द्वारा प्राप्त होते हैं। सोयाबीन और मूंगफली में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन मिलता है।
> एक कार्यशील महिला को प्रतिदिन 45 ग्राम प्रोटीन लेना चाहिए।
प्रोटीन के प्रकार
(a) सरल प्रोटीन : वे प्रोटीन, जो केवल अमीनो अम्ल के बने होते हैं, सरल प्रोटीन कहलाते हैं। उदाहरण एल्ब्यूमिन्स, ग्लोब्यूलिन्स, हिस्टोन इत्यादि ।
(b) संयुग्मी प्रोटीन वे प्रोटीन, जिनके अणुओं के साथ समूह भी जुड़े रहते हैं, संयुग्मी प्रोटीन कहलाते हैं। उदाहरण-क्रोमोप्रोटीन, ग्लाइकोप्रोटीन आदि ।
(c) व्युत्पन्न प्रोटीन वे प्रोटीन, जो प्राकृतिक प्रोटीन के जलीय अपघटन से बनते हैं, व्युत्पन्न प्रोटीन कहलाते हैं। उदाहरण-प्रोटिअन्स, पेप्टोन, पेप्टाइड ।
प्रोटीन के महत्वपूर्ण कार्य
(a) ये कोशिकाओं, जीवद्रव्य एवं ऊतकों के निर्माण में भाग लेते हैं।
(b ) ये शारीरिक वृद्धि के लिए आवश्यक हैं। इनकी कमी से शारीरिक विकास रुक जाता है। बच्चों में प्रोटीन की कमी से क्वाशियोकर (Kwashiorkor) एवं मरास्मस (Marasmus) नामक रोग ही जाता है।
(c) आवश्यकता पड़ने पर ये शरीर को ऊर्जा देते हैं।
(d) ये जैव उठ्येरक एवं जैविक नियंत्रक के रूप में कार्य करते हैं।
(e ) आनुवंशिकी लक्षणों के विकास का नियंत्रण करते हैं।
(f ) ये संवहन में भी सहायक होते हैं ।
> क्वाशियोर्कर इस रोग में बच्चों का हाथ-पॉव दुबला-पतला हो जाता है एवं पेट बाहर की ओर निकल जाता है।
> मरास्मस : इस रोग में बच्चों की मांसपेशियाँ ढीली हो जाती हैं।
3. बसा (Fats):
> वसा ग्लिसरॉल एवं वसीय अम्ल का एक एस्टर होती है।
> इसमें कार्बन, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन विभिन्न मात्राओं में उपस्थित रहते हैं।
> वसा सामान्यतः 20°C ताप पर ठोस अवस्था में होते हैं, परन्तु यदि वे इस ताप पर द्रव अवस्था में हों तो उन्हें 'तेल' कहते हैं। वसा अम्ल दो प्रकार के होते हैं-संतृप्त तथा असंतृप्त । असंतृप्त वसा अम्ल मछली के तेल एवं वनस्पति तेलों में मिलते हैं। केवल नारियल का तेल तथा ताड़ का तेल (Palm oil) संतृप्त तेल के उदाहरण हैं।
> 1 ग्राम वसा से 9.3 किलो कैलोरी ऊर्जा उत्पन्न होती है।
> सामान्यतः एक वयस्क व्यक्ति को 20-30% ऊर्जा वसा से प्राप्त होनी चाहिए।
> शरीर में इनका संश्लेषण माइटोकॉन्ड्रिया में होता है।
वसा का मुख्य कार्य
(a) यह शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है।
(b) यह त्वचा के नीचे जमा होकर शरीर के ताप को बाहर नहीं | निकलने देती है।
(c) यह खाद्य-पदार्थों में स्वाद उत्पन्न करती है और आहार को रुचिकर बनाती है।
(d) यह शरीर के विभिन्तू अंगों को चोटों से बचाती है।
> वसा की कमी से त्वचा रूखी हो जाती है, वजन में कमी आती है एवं शरीर का विकास रुक जाता है।
> वसा की अधिकता से शरीर स्थूल हो जाता है, हृदय की बीमारी होती है एवं रक्तचाप बढ़ जाते हैं।
4. विटामिन :
> विटामिन का आविष्कार फंक (Funk) ने 1911 ई. में किया था।
> यह एक प्रकार का कार्बनिक यौगिक हैं। इनसे कोई कैलोरी नहीं प्राप्त होती, परन्तु ये शरीर के उपापचय (Metabolism) में रासायनिक प्रतिक्रियाओं के नियम के लिए अत्यन्त आवश्यक हैं। इसे रक्षात्मक पदार्थ भी कहा जाता है।
> घुलनशीलता के आधार पर विटामिन दो प्रकार के होते हैं-
१) जल में घुलनशील विटामिन-विटामिन B एवं विटामिन C ।
२ ) वसा या कार्बनिक घोलकों में घुलनशील विटामिन विटामिन D, विटामिन E एवं विटामिन K |
> विटामिन A नेत्र, त्वचा, हड्डी एवं हमारे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूती प्रदान करता है।
> विटामिन B12 में कोबाल्ट पाया जाता है।
> विटामिनों का संश्लेषण हमारे शरीर की कोशिकाओं द्वारा नहीं होसकता एवं इसकी पूर्ति विटामिनयुक्त भोजन से होती है। तथापि, विटामिन D एवं K का संश्लेषण हमारे शरीर में होता है।
> विटामिन D का संश्लेषण सूर्य के प्रकाश में उपस्थित पराबैंगनी किरणों द्वारा त्वचा के कोलेस्टेरोल (इगेस्टीरॉल) द्वारा होता है।
> विटामिन K जीवाणुओं द्वारा हमारे कोलन में संश्लेषित होता है तथा वहाँ से उसका अवशोषण भी होता है।
विटामिन की कमी से
होने वाला रोग एवं उसके श्रोत
बिटामिन
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रासायनिक नाम
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कमी से होने वाले रोग
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श्रोत
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विटामिन-A
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रेटिनॉल
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रतौंधी, संक्रमणों का खतरा, जीरोप्थैलमिया
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दूध, अंडा, पनीर, हरी साग सब्जी, मछलीयकृत तेल
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विटामिन-B1,
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थायमिन
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बेरी-बेरी
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मूँगफली, तिल, सूखा मिर्च, विना बुली दाल, यकृत अंडा एवं सब्जियाँ
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विटामिन B2,
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राइबोफ्लेविन
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त्वचा का फटना, आँखों का ला ल होना, जिव्हा का फटना
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खमीर, कलेजी, मांस, हरी सव्जियाँ, दूध
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विटामिन-B3,
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निकोटिनैमाइड या नियॉसिन
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पेलाग्रा (त्वचा दाद) या 4-D-सिंड्रोम
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मांस, मूँगफली, आलू, टमाटर, पत्ती वाली सब्जियाँ
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विटामिन-B5
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पैन्टोयेनिक अम्ल
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बाल सफेद होना, मंद बुद्धि होना
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मांस, दूध, मूँगफली, गन्ना, टमाटर
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विटामिन-B6
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पाइरीडॉक्सिन
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एनीमिया, त्वचा रोग
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यकृत, मांस, अनाज
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विटामिन-B7
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बायोटीन
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लकवा, शरीर में दर्द, बालों का गिरना
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मांस, अंडा, यकृत, दूध
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विटामिन-B11
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फॉलिक अम्ल
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एनीमिया, पेचिश रोग
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दाल, यकृत, सब्जियाँ, अण्डा, सेम
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विटामिन-B12
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साएनोकाबालामिन
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एनीमिया, पांडुरोग
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मांस, कलेजी, दूध
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विटामिन-C
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एस्कॉर्बिक एसिड
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स्कर्बी, मसूढ़े का फुलना
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नींबू, संतरा, नारंगी, टमाटर, खट्टे पदार्थ, मिर्च, अंकुरित अनाज
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विटामिन-D
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कैल्सीफेराल
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रिकेट्स (बच्चों में) ऑस्टियोमलेशिया (वयस्क में)
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मछलीयकृत तेल, दूध, अण्डे
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विटामिन-E
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टोकोफेरॉल
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जनन शक्ति का कम होना
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पत्ती वाली सब्जियाँ, दूध, मक्खन, अंकुरित गेहूँ, वनस्पति तेल
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विटामिन-K
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फिलोक्विनोन
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रक्त का थक्का न बनना
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टमाटर, हरी सब्जियाँ, औंतों में भी उत्पन्न होती
है।
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5. जल (Water):
> मनुष्य इसे पीकर प्राप्त करता है । जल हमारे शरीर का प्रमुख अवयव है। शरीर के भार का 65-75% भाग जल है।
जल के प्रमुख कार्य :
1. जल हमारे शरीर के ताप को स्वेदन (परसीना) तथा वाष्पन द्वारा नियंत्रित करता है।
2. शरीर के अपशिष्ट पदार्थों के उत्सर्जन का महत्वपूर्ण माध्यम है।
3. शरीर में होने वाली अधिकतर जैव रासायनिक अभिक्रियाएँ जलीय माध्यम में सम्पन्न होती है।
6. न्यूक्लिक अम्ल (Nucleic acid) :
> ये कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन व फास्फोरस से बने न्यूक्लियोटाइड के बहुलक हैं, जो अल्प मात्रा में हमारी कोशिकाओं में DNA व RNA के रूप में पाये जाते हैं।
इनका प्रमुख कार्य है
1. आनुवंशिकी गुणों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पहुँचाना।
2. एंजाइम्स के निर्माण एवं प्रोटीन संश्लेषण का नियंत्रण करना।
3. ये क्रोमेटिन जाल का निर्माण करते हैं।
7. खनिज-लवण (Minerals):
> मनुष्य खनिज भूमि से प्राप्त न करके भोजन के रूप में ग्रहण करता है। ये शरीर की उपापचयी क्रियाओं को नियंत्रित करते हैं।
> गर्भवती स्त्रियों में प्रायः कैल्सियम और आयरन की कमी हो जाती है।
> हमारे शरीर में लगभग 15 से अधिक खनिज लवण अलग-अलग रूपों में पाये जाते हैं। यह शरीर का कुल वजन का 4 से 5% होते है।
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