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उत्सर्जन तंत्र (Excretory System)

 
उत्सर्जन तंत्र (Excretory System)
 
उत्सर्जन तंत्र (Excretory System):
> उत्सर्जन (Excretion): जीवों के शरीर से, उपापचयी प्रक्रमों में बने विषैले अपशिष्ट पदार्थों के निष्कासन को उत्सर्जन कहते हैं। साधारण उत्सर्जन का तात्पर्य नाइट्रोजनी उत्सर्जी पदार्थों जैसे यूरिया, अमोनिया, यूरिक अम्ल आदि के निष्कासन से होता है।
> मनुष्य में प्रमुख उत्सर्जी अंग निम्न हैं : 1. वृक्क (Kidneys), 2. त्वचा (Skin), 3. यकृत (Liver), 4. फेफड़ा (Lungs)।
1. वृक्क (Kidneys) : मनुष्य एवं अन्य स्तनधारियों में अंग एक जोड़ा वृक्क है। इसका वजन 140 ग्राम होता है, इसके दो भाग होते हैं बाहरी भाग को कोर्टिक्स (cortex) और भीतरी भाग को मेडूला (Medulla) कहते हैं। प्रत्येक वृक्क लगभग 1,30,00000 वृक्क-नलिकाओं से मिलकर बना है, जिन्हें नेफ्रॉन (Nephrons) कहते हैं। नेफ्रॉन ही वृक्क की कार्यात्मक इकाई है। प्रत्येक नेफ्रॉन में एक छोटी-सी प्यालीनुमा रचना होती है, उसे बोमेन सम्पुट (Bowman's capsule) कहते हैं।
> बोमन-सम्पुट में पतली रुधिर कोशिकाओं का कोशिकागुच्छ मक (Glomerulus) पाया जाता है, जो दो प्रकार की धमनिकाओं से बनता है।

(a) चौड़ी अभिवाही धमनिका (Afferent Arteriole) : जो रुधिर को कोशिका गुच्छ में पहुँचाती है। 
(b) पतली अपवाही धरमनिका (Efferent Arteriole):  जिसके द्वारा रक्त कोशिका-गुच्छ से वापस ले जाया जाता है।
> ग्लोमेरुलस की कोशिकाओं से द्रव के छनकर बोमेन सम्पुट की गुहा में पहुँचने की प्रक्रिया को परानिस्पंदन (ultrafiltration)कहते हैं।

विभिन्न जन्तु एवं उनमें उत्सर्जन

जन्तु

उत्सर्जन

एक कोशिकीय जन्तु

विसरण के द्वारा

पोरीफेरा संघ के जन्तु

विशिष्ट नलिकातंत्र द्वारा

सीलेन्ट्रेट्स

सीधे कोशिकाओं द्वारा

चपटे कृमि

ज्वाला कोशिकाओं द्वारा

एनेलिडा संघ के जन्तु

वृक्क (Nephridia) द्वारा

आर्थ्रोपोड्स

मैल्पीधियन नलिकाओं द्वारा

मोलस्का

मूत्र अंग द्वारा

कशेरुकी

मुख्यतया वृक्क द्वारा

 > वृक्कों का प्रमुख कार्य रक्त के प्लाज्मा को छानकर शुद्ध बनाना, अर्थात इसमें से अनावश्यक और अनुपयोगी पदार्थों को जल की कुछ मात्रा के साथ मूत्र के द्वारा शरीर से बाहर निकालना है।

> वृक्कों की रुधिर की आपूर्ति अन्य अंगों की तुलना में बहुत अधिक होती है।

> वृक्क में प्रति मिनट औसतन 125 मिली अर्थात् दिन भर में 180 लीटर रक्त निस्पंद (Filtrate) होता है। इसमें से 1.45 लीटर मूत्र रोजाना बनता है बाकी निःस्पंद वापस रक्त में अवशोषित हो जाता है।
> सामान्य मूत्र में 95% जल, 2% लवण, 2.7% यूरिया एवं 0.3%. यूरिक अम्ल होते हैं।
> मूत्र का रंग हल्का पीला उसमें उपस्थित वर्णक यूरोक्रोम (urochrome) के कारण होता है। यूरोक्रोम हीमोग्लोबिन के विखंडन से बनता है।
> मूत्र अम्लीय होता है, जिसका pH मान 6 होता है।
> वृक्क के द्वारा नाइट्रोजनी पदार्थों के अलावे पेनिसिलिन और कुछ  मसालों का भी उत्सर्जन होता है।
> वृक्क में बनने वाला पथरी कैल्शियम ऑक्जलेट का बना होता है।

2. त्वचा (Skin) : त्वचा में पायी जाने वाली तैलीय ग्रंथियाँ एवं स्वेद ग्रंथियाँ क्रमशः सीबम एवं पसीने का स्रवण करती है।
3. यकृत (Liver): यकृत कोशिकाएँ आवश्यकता से अधिक अमीनो अम्ल तथा रुधिर की अमोनिया को यूरिया में परिवर्तित करके उत्सर्जन में मुख्य भूमिका निभाता है।
4. फेफड़े (Lungs) : फेफड़ा दो प्रकार के गैसीय पदार्थ कार्बन- डाइऑक्साइड और जलवाष्प का उत्सर्जन करता है। कुछ पदार्थ जैसे लहसुन (garlic), प्याज (onion) और कुछ मसाले, जिसमें वाष्पशील घटक होते हैं, का उत्सर्जन फेफड़ों के द्वारा ही होता है।

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