Photosynthesis (प्रकाश-संश्लेषण) |
* पौधों में जल, प्रकाश, पर्णहरित तथा कार्बनडाइ-ऑक्साइड की उपस्थिति में कार्बोहाइड्रेट के निर्माण को प्रकाश-संश्लेषण कहते हैं।
* प्रकाश-संश्लेषण के लिए आवश्यक है कार्बनडाइ-ऑक्साइड,पानी, क्लोरोफिल और सूर्य का प्रकाश ।
* स्थलीय पौधे वायुमंडल से कार्बनडाइ-ऑक्साइड लेते हैं, जबकि जलीय पौधे जल में घुली हुई कार्बनडाइ-ऑक्साइड लेते हैं।
* पत्ती की कोशिकाओं में जल शिरा से परासरण (Osmosis) द्वारा एवं CO, वायुमंडल से विसरण (Difusion) द्वारा जाता है ।
* प्रकाश-संश्लेषण के लिए आवश्यक जल पौधों की जड़ो के द्वारा अवशोषित किया जाता है एवं प्रकाश-संश्लेषण के दौरान निकलने वाला ऑक्सीजन इसी जल के अपघटन से प्राप्त होता है।
* क्लोरोफिल पत्तियों में हरे रंग का वर्णक है। इसके चार घटक हैं। क्लोरोफिल ए, क्लोरोफिल बी, कैरोटीन तथा जैंथोफिल । इनमें क्लोरोफिल ए एवं बी हरे रंग का होता है और ऊर्जा स्थानांतरित करता है। यह प्रकाश-संश्लेषण का केन्द्र होता है।
* क्लोरोफिल के केन्द्र में मैग्नीशियम का एक परमाणु होता है।
* क्लोरोफिल प्रकाश में बैंगनी, नीला तथा लाल रंग को ग्रहण करता है।
* प्रकाश-संश्लेषण की दर लाल रंग के प्रकाश में सबसे अधिक एवं बैंगनी रंग के प्रकाश में सबसे कम होती है।
* प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया एक उपचयन (Oxidation) अपचयन (Reduction) की अभिक्रिया है। इसमें जल का उपचयन ऑक्सीजन के बनने में तथा कार्बनडाइ-ऑक्साइड का अपचयन ग्लूकोज के निर्माण में होता है।
* प्रकाश-संश्लेषण क्रिया की दो अवस्थाएँ होती हैं-
1. प्रकाश रासायनिक क्रिया (Photochemical reaction)
2. रासायनिक प्रकाशहीन क्रिया (Dark chemical reaction)
1. प्रकाश रासायनिक क्रिया : यह क्रिया क्लोरोफिल के ग्रेना (Grana) भाग में सम्पन्न होती है । इसे हिल क्रिया (Hill reaction) भी कहते हैं। इस प्रक्रिया में जल का अपघटन होकर हाइड्रोजन आयन तथा इलेक्ट्रॉन बनता है। जल के अपघटन के लिए ऊर्जा प्रकाश से मिलती है। इस प्रक्रिया के अन्त में ऊर्जा के रूप में ए. टी. पी. व एन. ए. डी. पी. एच. निकलता है, जो रासायनिक प्रकाशहीन प्रतिक्रिया संचालित करने में मदद करता है।
2. रासायनिक प्रकाशहीन प्रतिक्रिया : यह क्रिया क्लोरोफिल के स्ट्रोमा में होती है। इस क्रिया में कार्बनडाइ-ऑक्साइड का अपचयन होकर शर्करा एवं स्टार्च बनता है।
पादप हार्मोन (Plant Hormones):
* पौधों में निम्न प्रकार के हार्मोन्स पाये जाते हैं-
ऑक्सिन्स (Auxins):
* ऑक्सिन्स की खोज सन् 1880 ई. में डार्विन ने की थी। यह पौधे की वृद्धि को नियंत्रित करनेवाला हार्मोन है ।
इसका निर्माण पौधे के ऊपरी हिस्सों में होता है।
इसके प्रमुख कार्य-
1. इसके कारण पौधों में शीर्ष की प्रमुखता हो जाती है और पार्श्वीय कक्षीय कलिकाओं की वृद्धि रुक जाती है।
2. यह पत्तियों का विलगन रोकता है।
3. यह खर-पतवार को नष्ट कर देता है।
4. इसके द्वारा अनिषेक फल प्राप्त किये जाते हैं।
5. यह फसलों को गिरने से बचाता है।
2. जिबरेलिन्स (Gibberellins):
* इसकी खोज जापानी वैज्ञानिक करोसावा ने 1926 ई. में की। यह बौने पौधे को लम्बा कर देता है। यह फूल बनने में मदद करता है।
* यह बीजों की प्रसुप्ति भंग कर उनको अंकुरित होने के लिए प्रेरित करते हैं। ये काष्ठीय पौधों में एघा (Cambium) की सक्रियता को बढ़ाते हैं।
* इसके छिड़काव द्वारा वृहत आकार के फल तथा फूलों का उत्पादन किया जा सकता है।
3.. साइटोकाइनिन (Cytokinins);
* इसकी खोज मिलर ने 1955 ई. में की थी, परन्तु इसका नामकरण लिथाम ने किया। यह प्राकृतिक रूप से ऑक्सिन के साथ मिलकर काम करते हैं। यह ऑक्सिन्स की उपस्थिति में कोशिका-विभाजन और विकास में मदद करता है। यह जीर्णता को रोकता है।
* यह RNA एवं प्रोटीन बनाने में सहायक हैं।
4. एबसिसिक एसिड (Abscisic acid or ABA):
* इस हार्मोन की खोज पहले 1961-65 ई. में कान्न्स एवं एडिकोट तथा बाद में वेयरिंग ने की।
* यह वृद्धिरोधक हार्मोन है ।
* यह बीजों को सुषुप्तावस्था में रखता है।
* यह पत्तियों के विलंगन में मुख्य भूमिका निभाता है।
* यह पुष्पन में बाधक होता है।
5. एथिलीन (Ethylene);
* यह एकमात्र ऐसा हाम्मोन है, जो गैसीय रूप में पाया जाता है।
* हार्मोन के रूप में इसे बर्ग (Burg) ने 1962 ई. में प्रमाणित किया। यह फलों को पकाने में सहायता करता है। यह मादा पुष्पों की संख्या में वृद्धि करता है।
* यह पत्तियों, पुष्पों व फलों के विलगन को प्रेरित करता है।
6. फ्लोरिजेन्स (Florigens);
* ये पत्ती में बनते हैं, लेकिन फूलों के खिलने में मदद करते हैं। इसलिए, इन्हें फूल खिलाने वाले हार्मोन (flowering hormones) भी कहते हैं।
7. ट्राउमैटिन (Traumatin):
* यह एक प्रकार का डाइकार्बोक्सिलिक अम्ल (dicarboxylicacid) है। इसका निर्माण घायल कोशिका में होता है, जिससे पौधे के जख्म भर जाते हैं।
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