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मानव रोग (Human disease) |
परजीवी protozoa से होने वाले रोग।
मेक्कुलाच ने 1827 ई. में सर्वप्रथम मलेरिया शब्द का प्रयोग किया। मलेरिया रोग की पुष्टि रक्त की बूँद तथा पी एफ मामलोंके लिए आर. डी. किट्स सूक्ष्मदर्शी जाँच द्वारा की जाती है।
>लेवरन (1880 ई.) ने मलेरिया से पीड़ित व्यक्ति के रुधिर में मलेरिया परजीवी प्लाज्मोडियम की खोज की ।
> रोनाल्ड रास (1887 ई.) ने मलेरिया परजीवी द्वारा मलेरिया होने की पुष्टि की तथा बताया कि मच्छर इसका वाहक है।
> मलेरिया रोग में लाल रुधिराणु नष्ट हो जाते हैं तथा रक्त में कमी आ जाती है। इसके उपचार में कुनैन, पेलुड्रीन, क्लोरोक्वीन, प्रीमाक्वीन औषधि लेनी चाहिए।
> 1882 ई. में जर्मन वैज्ञानिक रॉबर्ट कोच ने कॉलरा एवं टी. बी. के जीवाणुओं की खोज की।
> लुइ पाश्चर ने रेबीज का टीका एवं दूध का पाश्चुराइजेशन की खोज की।
> बच्चों को DPT टीका उन्हें डिप्थीरिया, काली खाँसी एवं टिटनेस रोग प्रतिरक्षीकरण (Immunization) के लिए दिया जाता है।
विषाणु virus से होने वाली बीमारी।
> जिका बुखार, जिसे जिका रोग के नाम से जाना जाता है, जिका।वायरस के कारण उत्पन्न होता है। जिका बुखार मुख्यतया एडीज प्रकार के मच्छर के काटने से फैलता है। शारीरिक संबंध बनाने और खून चढ़ाने से भी इसके फैलने की संभावना होती है। यह रोग गर्भवती माँ से गर्भस्थ शिशु में जा सकता है और शिशु के सिर के अपूर्ण विकास की वजह बन सकता है। इसके अधिकांश मामले (60-80%) में कोई लक्षण नहीं दिखते । यदि कोई लक्षण
दिखते हैं तो वे लक्षण इस प्रकार के होते हैं-बुखार, लाल ऑँखे, जोड़ों में दर्द, सिरदर्द, लाल चकतें आदि ।
हेल्मिन्थस (Helminthus) द्वारा होने वाली बीमारी
1. अतिसार (Diarrhoea):इस रोग का कारण आंत में मौजूद एस्केरिस लुम्ब्रीकॉइडीज नामक अंतःपरजीवी प्रोटोजोआ (निमेटोड) है, जो घरेलू मक्खी द्वारा प्रसारित होता है। इसमें आँत में घाव हो जाता है। इसमें प्रोटीन पचाने वाला एन्जाईम_टिप्सिन नष्ट हो जाता है। यह रोग बच्चों में अधिक पाया जाता
2. फाइलेरिया (Filaria) : यह रोग फाइलेरिया बैन्क्रोफ्टाई नामक कृमि से होता है। इस कृमि का संचारण क्यूलेक्स मच्छरों के दंश से होता है। इस रोग में पैरों, वृषणकोषों तथा शरीर के अन्य भागों में सूजन हो जाता है। इस रोग को हाथीपांव (Elephantiasis) भी कहते हैं।
फफूँद (Fungus) द्वारा होने वाली बीमारी
1. दमा (Asthma), मनुष्य के फेफड़ों में ऐस्पर्जिलस फ्यूमिगेटस नामक कवक के स्पोर पहुँचकर वहाँ जाल बनाकर फेफड़े का काम अवरुद्ध कर देते हैं। यह एक संक्रामक रोग है।
2. एथलीट फुट (Athlete's Foot) : यह रोग टीनिया पेडिस नामक केवक से होता है। यह त्वचा का संक्रामक रोग है, जो पैरों की त्वचा के फटने-कटने और मोटे होने से होता है।
3. खाज (Scabies): यह रोग एकेर्स स्केबीज़ नामक कवक से होता है। इसमें त्वचा में खुज़ली होती है एवं सफेद दाग पड़ जाते हैं।
4. गंजापन (Baldness) : यह टिनिया केपिटिस नामक कवक से होता है। इसमें सिर के बाल गिर जाते हैं।
5. दाद (Ringworm): यह रोग ट्राइकोफायटान लेरूकोसम नामक कवक से फैलता है। यह संक्रामक रोग है। इसमें त्वचा पर लाल रंग के गोले पड़ जाते हैं।
मनुष्यों में होने वाला आनुवंशिक रोग
(Colourblindness):
> इसमें रोगी को लाल एवं हरा रंग पहचानने की क्षमता नहीं होती है। इसमें लाल रंग हरा दिखाई पड़ता है।
> इस रोग से मुख्य रूप से पुरुष प्रभावित होता है। स्त्रियों में यह तभी होता है जब इसके दोनों गुणसूत्र (XX) प्रभावित हों।
> इस रोग की वाहक स्त्रियाँ होती हैं।
2. हीमोफीलिया (Haemophilia):
इस रोग में व्यक्ति के चोट लगने पर आधा घंटा से 24 घंटे (सामान्य समयान्तराल औसतन 2-5 मिनट) तक रक्त का थक्का नहीं बनता है।
> यह मुख्यतः पुंरुषों में होता है स्त्रियों में यह रोग तभी होता है, जब इसके दोनों गुणसूत्र (XX) प्रभावित हों ।
> इस रोग की वाहक स्त्रियाँ हैं।
> हेल्डेन का मानना है कि यह रोग ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया से प्रारंभ हुआ।
3. टर्नर सिन्ड्रोम (Turner's syndrome):
> यह रोग स्त्रियों में होता है। इस रोग से ग्रसित स्त्रियों में गुणसूत्रों की संख्या 45 होती हैं। (44A +XO)
> इसमें शरीर अल्पविकसित, कद छोटा एवं वक्ष चपटा होता है। जननांग प्रायः अविकसित होता है, जिससे वे बांझ (Sterile) होती हैं।
4. क्लीनेफेल्टर सिन्ड्रोम (Klinefelter's syndrome):
> यह रोग पुरुषों में होता है।
> इस रोग से ग्रसित पुरुषों में गुणसूत्रों की संख्या 47 होती है।
> इसमें पुरुषों का वृषण अल्पविकसित एवं स्तन स्त्रियों के समान विकसित हो जाता है।
> इस रोग से ग्रसित पुरुष नपुंसक होता है।
5. डाउन्स सिन्ड्रोम (Down's syndrome):
> इस रोग से ग्रसित रोगी मन्द बुद्धि, आँखें टेढ़ी, जीभ मोटी तथा अनियमित शारीरिक ढाँचा होता है।
> इसे मंगोलिज्म (Mangolism) भी कहते हैं।
6. पटाऊ सिन्ड्रोम (Patau's Syndrome):
> इसमें रोगी का ऊपर का ओठ बीच से कट जाता है। तालु में दरार (Cleft Plate) हो जाता है।
> इस रोग में रोगी मन्द बुद्धि, नेत्ररोग आदि से प्रभावित हो सकता है।
कुछ अन्य रोग
पक्षाघात या लकवा (Paralysis) इस रोग में कुछ ही मिनटों में शरीर के आधे भाग को लकवा मार जाता है। जहाँ पक्षाघात होता है वहाँ की तंत्रिकाएँ निष्क्रिय हो जाती हैं। इसका कारण अधिक रक्त-दाब के कारण मस्तिष्क की कोई धमनी का फट जाना अथवा मस्तिष्क को अपर्याप्त रक्त की आपूर्ति होना है।
2. एलर्जी (Alergy) : कुछ वस्तु जैसे धूल, धुआँ, रसायन, कपड़ा, सर्दी, किन्हीं विशेष व्यक्तियों के लिए हानिकारक हो जाते हैं और उनके शरीरं में विपरीत क्रिया होने लगती है, जिससे अनेक बीमारियाँ हो जाती हैं। खुज़ली, फोड़ा, फुन्सी, शरीर में सूजन आ जाना, काला दाग, एक्जिमा आदि एलर्जी के उदाहरण हैं।
3. सीजोफ्रीनिया (Schizophrenia): यह मानसिक रोग है जो प्रायः युवा वर्ग में होता है। ऐसा रोगी कल्पना को ही सत्य समझता है, वास्तविकता को नहीं। ऐसे रोगी आलसी, अलगावहीन, आवेशहीन होते हैं। विद्युत् आक्षेप चिकित्सा इसमें काफी सहायक होती है।
4 मिर्गी (Epilepsy) : इसे अपस्मार रोग कहते हैं। यह मस्तिष्क के आंतरिक रोगों के कारण होती है। इस रोग में जब दौरा पड़ता है, तो मुँह से झाग निकलता है और मल-पेशाब भी निकलता है।
5. डिप्लोपिया (Diplopia) : यह रोग आँख की मांसपेशियों के पक्षाघात (Paralysis) के कारण होती है।
6. कैंसर (Cancer) : मनुष्य के शरीर के किसी भी अंग में, त्वचा से लेकर अस्थि तक, यदि कोशिका-वृद्धि अनियंत्रित हो, तो इसके परिणामस्वरूप कोशिकाओं में अनियमित गुच्छा बन जाता है, इन अनियमित कोशिकाओं के गुच्छे को कैंसर कहते हैं। कैंसर को स्थापित होने में जो समय लगता है, उसे लैटेण्ड पीरियड कहते हैं। कीमोथरेपी कैंसर रोग के उपचार के लिए दी जाती है। उत्कृष्ट गैस रेडॉन कैंसर के इलाज में प्रयुक्त किया जाता है।
नोट : कीमोथैरेपी 'शब्द को वर्ष 2013 में पाऊल ऐहरलिच ने दिया जिन्हें आधुनिक रसोचिकित्सा का पिता कहा जाता है। बीमारी के उपचार में रसायन का उपयोग कीमोथैरेपी कहलाता है।
कैसर मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं:
1. कार्सीनोमास : इसकी उत्पत्ति उपकला ऊत्तकों से होती है।
2. साकोमास : यह कैंसर संयोजी ऊत्तकों, अस्थियों, उपास्थियों एवं पेशियों में होता है।
3. ल्यूकीमियास: यह ल्यूकोमाइट्स में असामान्य वृद्धि के कारण होता है।
4. लिम्फोमास : यह कैंसर लसीका गाँठों एवं प्लीहा में होता है।
नोट : रेडियोसक्रिय स्ट्रॉन्शियम- 90 के कारण अस्थि कैंसर हो जाता है।
> चिकनगुनिया : यह दुर्बल बनाने वाली गैरघातक वायरल बीमारी है जिसका प्रकोप भारत में 36 वर्ष बाद 2006 में हुआ। यह चिकनगुनिया वायरस से होता है। यह मादा एडिस मच्छर, मुख्यतया एडिस इजिप्टी मच्छर के काटने से फैलता है। मनुष्य ही चिकनगुनिया वायरस का मुख्य स्रोत होता है । मच्छर-संक्रमित व्यक्ति को काटकर अन्य लोगों को काटते हैं जिससे यह बीमारी फैलती है। संक्रमित व्यक्ति से यह बीमारी किसी और को नहीं हो सकती।
नोट : इटाई-इटाई नामक रोग कैडमियम के कारण होती है।
ELISA (Enzyme Linked Immune Solvent Assy): HIV वायरस की जाँच करने की एक प्रणाली है। इससे पता चलता है कि व्यक्ति एड्स पीड़ित है या नहीं। इसे एलिसा टेस्ट कहते हैं।
> वेस्टर्न ब्लॉट टेस्ट : यह HIIV संक्रमण की खास जाँच है, जो पॉजीटिव होने पर बताता है कि व्यक्ति HIV से ग्रस्त है ।
एचआईवीपी-24 (पी. सी. आर.) : HIV की एंटीजोन स्पष्ट जाँच, इससे रोग की तीव्रता की जानकारी मिलती है।
सीडी-4 काउंट : इस परीक्षण से रोगी की प्रतिरोधक क्षमता का आकलन किया जाता है।
न्यूक्लिक एसिड टेस्ट : न्यूक्लिक एसिड एप्लिफिकेशन टेस्ट की एडवांस तकनीक सीधे HIV वायरस के (RNA/DNA) जेनेटिक तत्व का पता लगा लेती है। यह तकनीक ब्लड डोनर के रक्त में मौजूद बहुत ही कम स्तर के संक्रमण की पहचान कर लेता है। इस जाँच की मदद से एक सप्ताह के संक्रमण को भी पकड़ा जा सकता है।
> विषाणु से संक्रमित शरीर की कोशिकाएँ इन्टरफेरॉन नामक प्रोटीन बनाती है।
> एच आई वी पॉजीटिव लोगों के लिए एंटीरिट्रोवाइरस थेरेपी (ART) की व्यवस्था की है। ART सेवाओं की शुरुआत 1 अप्रैल, 2004 को की गयी थी।
> वर्तमान में एड्स के उपचार के लिए एजिडोथाइमीडिन (AZT) औषधि का प्रयोग किया जा रहा है।
> डेंगू ज्वर मादा एडिस एडजिप्टी मच्छर के काटने से फैलता है। हमारे देश में डेंगू ज्वर का पहला मामला 1963 ई. में कोलकाता में सामने आया था। डेंगू ज्वर के कारण मानव शरीर में प्लेटलेट्स की कमी हो जाती है ।
टीकाकरण कार्यक्रम
बीसीजी (बेसिलस काल्मेट्टर- ग्यूरिन): जन्म पर, तपेदिक से 70% तक सुरक्षा
डीपीटी (डिप्थीरिया, पट्यूसिस और टेटनस टोक्सोइड) : 6, 10, 14 सप्ताहों और 16-24 माह की आयु में सुरक्षा 90-99%
ओपीवी (पोलियो) : 6, 10, 14 सप्ताहों और 16-24 माह की आयु और संस्थागत जन्म के समय खुराक सुरक्षा 100% तक
खसरा : 9-12 माह की आयु पर सुरक्षा 100% डीटी (डिप्थीरिया और टेटनस टोक्सोइड) 5 वर्ष की आयु
टीटी (टेटनस टोक्सोइड) : 10 वर्ष और 16 वर्ष की आयु में टीटी गर्भवती महिलाओं के लिए दो खुराक या अगर तीन वर्ष के भीतर टीका लगा है तो एक खुराक
प्रमुख केन्द्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम
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राष्ट्रीय आयोडीन अल्पता विकार नियंत्रण कार्यक्रम
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1962
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राष्ट्रीय दृष्टिहीनता नियंत्रण कार्यक्रम
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1976
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राष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण कार्यक्रम
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1975-76
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राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम
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1982
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राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम
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1992
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राष्ट्रीय तपेदिक नियंत्रण कार्यक्रम
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1997
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प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम
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1997-98
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पल्स पोलियो कार्यक्रम
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1997-98
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समन्वित रोग निगरानी परियोजना
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1997-98
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जननी सुरक्षा योजना
वन्दे मातरम् योजना
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2003-04
2004
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> पोलियो वैक्सीन का विकास 1952 ई. में जोनस साल्क तथा 1962ई. में अल्बर्ट साबिन द्वारा वकिया गया पोलियो वायरस 3 प्रकार के होते हैं-टाईप-1, टाईप-2 एवं टाईप-3। इसी आधार पर विश्व में पोलियो रोगियों की 3 श्रेणी होती है। सबसे कम मरीज टाईप-2 के और अधिकतर टाईप-3 के मरीज होते हैं। इसीलिए पोलियो से निपटने के लिए अधिकतर वैक्सीन टाइप-3 के लिए तैयार की गई है इसका विषाणु सबसे छोटा होता है।
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