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Genetics (आनुवंशिकी) |
* वे लक्षण जो पीढ़ी दर-पीढ़ी संचरित होते हैं, आनुवंशिक लक्षण कहलाते हैं। आनुवंशिक लक्षणों के पीढ़ी-दर-पीढ़ी संचरण की विधियों और कारणों के अध्ययन को आनुवंशिकी (Genetics) कहते हैं। आनुवंशिकता के बारे में सर्वप्रथम जानकारी आस्ट्रिया निवासी ग्रेगर जोहान मेंडल (1822-1884) ने दी। इसी कारण उन्हें आनुवंशिकता का पिता (Father of Genetics) कहा जाता है।
* आनुवंशिकी संबंधी प्रयोग के लिए मेंडल ने मटर के पौधे का चुनाव किया था।
* मेंडल ने पहले एक जोड़ी फिर दो जोड़े विपरीत गुणों की वंशागति का अध्ययन किया, जिन्हें क्रमशः एकसंकरीय तथा द्विसंकरीय क्रॉस कहते हैं।
एक संकरीय क्रॉस (Monohybrid cross) : मेंडल ने एक संकरीय क्रॉस के लिए लम्बे (TT) एवं बौने (tt) पौधों के बीच क्रॉस कराया, तो निम्न परिणाम प्राप्त हुए-
* द्विसंकरीय क्रॉस (Dihybrid cross): मेंडल ने द्विसंकरीय क्रॉस के लिए गोल तथा पीले बीज (RRYY) व हरे एवं झुर्रीदार बीज (rryy) से उत्पन्न पौधों को क्रॉस कराया। इसमें गोल तथा पीला बीज प्रभावी होते हैं।
अतः, F2 , पीढ़ी के पौधों का फीनोटाइप अनुपात 9: 3: 3:1 प्राप्त हुए, तथा F2, पीढ़ी के पौधों का जीनोटाइप अनुपात 1: 2:1:2: 4: 2: 1:2:1प्राप्त हुए।
उपर्युक्त दोनों प्रकार के प्रयोगों के आधार पर मेंडल ने आनुवंशिकता संबंधी कुछ नियम दिये, जिन्हें मेंडल के आनुवंशिकता के नियम के नाम से जाना जाता है। इन नियमों में से पहला एवं दूसरा नियम एकसंकरीय
क्रॉस के आधार पर व तीसरा नियम द्विसंकरीय क्रॉस पर आधारित है।
मेंडल के नियम
1. प्रभाविकता का नियम (Law of Dominance) : एक जोडा विपर्यायी गुणों वाले शुद्ध पिता या माता में संकरण करने से प्रथम पीढ़ी में प्रभावी गुण प्रकट होते हैं, जबकि अप्रभावी गुण छिप जाते हैं। प्रथम पीढ़ी में केवल प्रभावी गुण ही दिखाई देता है। लेकिन अप्रभावी गुण उपस्थित अवश्य रहता है। यह गुण दूसरी पीढ़ी में प्रकट होता है।
2. पृथक्करण का नियम (Law of segregation): लक्षण कारकों (जीनो) के जोड़ों के दोनों कारक युग्म बनाते समय पृथक् हो जाते हैं और इनमें से केवल एक कारक ही किसी एक युग्मक पहुँचता है। इस नियम को युग्मकों की शुद्धता का नियम भी कहते हैं।
3 स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम (Law of Independent Assortment) : जब दो जोड़ी विपरीत लक्षणों वाले पौधों केबीच संकरण कराया जाता है, तो दोनों लक्षणों का पृथक्करण स्वतंत्र रूप से होता है-एक लक्षण की वंशानुगति दूसरे को प्रभावित नहीं करती।
* डब्ल्यू. वाटसन ने 1905 ई. में सर्वप्रथम 'जेनेटिक्स' (Genetics) नाम का उपयोग किया।
* जोहान्सेन ने 1909 ई. में सर्वप्रथम जीन शब्द का प्रयोग किया।
* फीनोटाइप: जीवधारी के जो लक्षण प्रत्यक्ष रूप से दिखाई पड़ते हैं, उसे फीनोटाइप कहते हैं।
* जीनोटाइप : जीवधारी के आनुवंशिक संगठन को उसका जीनोटाइप कहते हैं, जो कि कारकों (जीन) का बना होता है ।
* युग्म विकल्पी (AIleles): एक ही गुण के विभिन्न विपर्यायी रूपों को प्रकट करने वाले लक्षण कारकों को एक-दूसरे का युग्म-विकल्पी या एलिल कहते है।
* सहलग्नता (Linkage) : एक ही गुणसूत्र पर स्थित जीनों में एक साथ वंशगत होने की प्रवृत्ति पायीजाती है। जीनों की इस प्रवृति को 'सहलग्नता' कहते हैं। जबकि जीन जो एक ही गुणसूत्र पर स्थापित होते हैं और एक साथ
वंशानुगत होते हैं, उन्हें सहलग्न जीन (Linked genes) कहते हैं।
लिंग सहलग्न जीन (Sex linked genes) लिंग-सहलग्न गुणों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ले जाते हैं। वास्तव में X गुणसूत्र पर स्थित जीन ही लिंग-सहलग्न जीन कहे जाते हैं, क्योंकि इसका प्रभाव नर तथा मादा दोनों पर पड़ता
है। लिंग-सहलग्नता की सर्वप्रथम विस्तृत व्याख्या मॉर्गन (1910) ने की थी। मनुष्यों में कई लिंग- सहलग्न गुण जैसे-रंगवर्णान्धता, गंजापन, हीमोफीलिया, मायोपिया, हाइपरट्राइकोसिस इत्यादि पाये जाते हैं। लिंग-सहलग्न गुण स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों में ज्यादा प्रकट होते हैं।
जीव/जाति गुणसूत्र
एस्केरिस 2.
मच्छर 6.
घरेलू मक्खी 12
मटर 14
प्याज 16
मक्का 20
टमाटर 24
मेंढक 26
नींबू 18, 36
बिल्ली 38
चूहा 40
गेहूँ 42
खरगोश 44
मनुष्य 46
आलू 48
चिम्पैंजी 48
तम्बाकू 48
घोड़ा 64
कुत्ता 78
कबूतर 80
टेरिडोकाइट्स 1300-1600
मानव-आनुवंशिकी (Human genetic)
* गुणसूत्र (Chromosomes) का नामकरण डब्ल्यू. वाल्टेयर ने 1888ई. में किया था।
* गुणसूत्रों में पाये जाने वाले आनुवंशिक पदार्थ को जीनोम कहते हैं। जीन इन्हीं गुणसूत्रों पर पाया जाता है।
* गुणसूत्रों के बाहर जीन यदि कोशिका द्रव्य के कोशिकांगों में होती है, तो उन्हें प्लाज्माजीन कहते हैं।
* 1956 ई. में एस. बेंजर द्वारा जीन की आधुनिक विचारधारा दी गई। इनके अनुसार जीन के कार्य की इकाई सिस्ट्रॉन (cistron), उत्परिवर्तन की इकाई म्यूटॉन (Muton) तथा पुनः संयोजन की इकाई को रेकॉन (Recon) कहा गया है।
* मानव में 20 आवश्यक अमीनो एसिड पाये जाते हैं।
* ऑर्थर कोर्नबर्ग ने 1962 ई. में डी. एन. ए. पॉलीमरेज नामक एन्जाइम की खोज की, जिसकी सहायता से DNA का संश्लेषण होता है।
मनुष्य में लिंग-निर्धारण मनुष्य में गुणसूत्रों की संख्या 46 होती है। प्रत्येक संतान को समजात गुणसूत्रों की प्रत्येक जोड़ी का एक गुणसूत्र अण्डाणु के द्वारा माता से तथा दूसरा शुक्राणु के द्वारा पिता से प्राप्त होता है। शुक्रजनन (Spermatogenesis) में अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा दो प्रकार के शुक्राणु बनते हैं-आधे वे जिनमें 23वीं जोड़ी का X गुणसूत्र आता है, अर्थात् (22 + X) और आधे वे जिनमें 23वीं जोड़ी में Y गुणसूत्र जाता है (22 + Y) । नारियों में एक समान प्रकार का गुणसूत्र अर्थात् (22 + X) तथा (22 + X) वाले अण्डाणु पाये जाते हैं। निषेचन के समय यदि अण्डाणु X गुणसूत्र वाले शुक्राणु से मिलता है, तो युग्मनज (Zygote) में 23वीं जोड़ी XX होगी और इससे बननेवाली संतान लड़की होगी। इसके विपरीत किसी अण्डाणु से Y गुणसूत्र वाला शुक्राणु निषेचित होगा, तो XY गुणसूत्र वाला युग्मनज बनेगा तथा संतान लड़का होगा। अतः पुरुष का गुणसूत्र संतान में लिंग निर्धारण के लिए उत्तरदायी है।
नोट :परखनली शिशु के मामले में निषेचन परखनली के अन्दर होता है।
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