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कोशिका विज्ञान (cell Biology)

 



कोशिका विज्ञान (cell Biology)


जीवद्रव्य (Protoplasm):
*  जीवद्रव्य का नामकरण पुरकिंजे  (Purkenje) के द्वारा सन् 1839 ई. में किया गया।
* यह एक तरल गाढ़ा रंगहीन, पारभासी, लसलसा, वजनयुक्त पदार्थ है। जीव की सारी जैविक क्रियाएँ इसी के द्वारा होती हैं। इसीलिए जीवद्रव्य (Protoplasm)को जीवन का भौतिक आधार कहते हैं।
*  जीवद्रव्य दो भागों में बँटा होता है-
1. कोशिका द्रव्य (Cytoplasm) : यह कोशिका में केन्द्रक एवं कोशिका झिल्ली के बीच रहता है।
2  केन्द्रक द्रव्य (Nucleoplasm): यह कोशिका में केन्द्रक के अन्दर रहता है।

* जीवद्रव्य का 99% भाग निम्न चार तत्वों से मिलकर बना होता है-
1. ऑक्सीजन (76%)
2. कार्बन (10.5%)
3. हाइड्रोजन (10%)
4. नाइट्रोजन (2.5%)
* जीवद्रव्य का लगभग 80% भाग जल होता है।
* जीवद्रव्य में अकार्बनिक एवं कार्बनिक यौगिकों का अनुपात 81 : 19 का होता है।

कोशिका (Cell):
*  कोशिका (Cell) जीवन की सबसे छोटी कार्यात्मक एवं संरचनात्मक इकाई है। एन्टोनवान लिवेनहाक ने पहली बार कोशिका को देखा व इसका वर्णन किया था।
* कोशिका के अध्ययन के विज्ञान को Cytology कहा जाता है।
* कोशिकाओं का औसत संगठन कुल कोशकीय भार का प्रतिशत

अवयव       
जल        70-90
प्रोटीन    10-15
कार्बोहाइड्रेट 3
बी लिपिड  2
न्यूक्लीक अम्ल 5-7
आयन 1 


*कोशिका शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम अंग्रेज वैज्ञानिक रॉबर्ट हुक ने 1665 ई. में किया था।
* सबसे छोटी कोशिका जीवाणु माइकोप्लाज्म गैलिसेप्टिकमा (Mycoplasm gallisepticuma)
*  सबसे लम्बी कोशिका तंत्रिका-तंत्र की कोशिका है। 
* सबसे बड़ी कोशिका शुतुरमुर्ग के अंडे (Ostrichegg)की कोशिका  है।
*  कोशिका सिद्धान्त का प्रतिपादन 1838-39 ई. मैथीयस स्लाइडेन और थियोडर श्वान ने किया। यद्यपि इनका सिद्धान्त यह बताने में असफल रहा कि नई कोशिकाओं का निर्माण कैसे होता है।

पहली बार रडोल्फ बिच्चौ (1855) ने स्पष्ट किया कि कोशिका विभाजित होती है और नई कोशिकाओं का निर्माण पूर्व स्थित कोशिकाओं के विभाजन से होता है।

* कोशिका सिद्धान्त की मुख्य बातें इस प्रकार हैं-

1. सभी जीव कोशिका व कोशिका उत्पाद से बने होते हैं।
2. सभी कोशिकाएँ पूर्व स्थित कोशिकाओं से निर्मित होती हैं।
3. कोशिका का निर्माण जिस क्रिया से होता है, उसमें केन्द्रक मुख्य अभिकर्त्ता (Creator) होता है।

*  कोशिका दो प्रकार की होती है-

1 प्रोकैरियोटिक (Procaryotic)
2. यूकैरियोटिक (Euocaryotic)

1. प्रोकैरियोटिक कोशिका: इन कोशिकाओं में हिस्टोन प्रोटीन नहीं होता है जिसके कारण क्रोमैटिन नहीं बन पाता है। केवल DNA का सूत्र ही गुण सूत्र के रूप में पड़ा रहता है; अन्य कोई आवरण इसे घेरे नहीं रहता है। अतः केन्द्रक नाम की कोई विकसित कोशिकांग इसमें नहीं होता है। जीवाणुओं एवं नील हरित शैवालों में ऐसी ही कोशिकाएँ मिलती हैं।

2. यूकैरियोटिक कोशिका: इन कोशिकाओं में दोहरी झिल्ली के आवरण, केन्द्रक आवरण से घिरा सुस्पष्ट केन्द्रक पाया जाता है, जिसमें DNA व हिस्टोन प्रोटीन के संयुक्त होने से बनी क्रोमैटिन तथा इसके अलावा केन्द्रिका (Nucleolus) होते हैं।

प्रोकैरियोटिक व यूकैरियोटिक कोशिका में मुख्य अन्तर

विशेषता/अंगक          प्रोकैरियोटिक                                      यूकैरियोटिक
कोशिका भित्ति            प्रोटीन तथा कार्बोहाइड्रेट होती है।           सैल्यूलोज की बनी होती है।
माइटोकॉण्ड्रिया          अनुपस्थित होता है।                                उपस्थित होता है।
इण्डोप्लाज्मिक           अनुपस्थित होता है।                                अनुपस्थित होता है। 
रेटीकुलम  
राइबोसोम                   70S प्रकार के होते हैं।                          80S प्रकार के होते हैं।
गॉल्जीकॉय                  अनुपस्थित होता है।                              उपस्थित होता है।
केन्द्रक झिल्ली              अनुपस्थित होता है।                              उपस्थित होता है।
लाइसोसोम                   अनुपस्थित होता है।                              उपस्थित होता है।
डी.एन.ए.                      एकल सूत्र के रूप में।                           पूर्ण विकसित एवं दोहरे सूत्र के रूप में।
कशाभिका                   केवल एक तंतु होता है।                          कुल 11 तंतु होते हैं।
केन्द्रिका                      अनुपस्थित होता है।                               उपस्थित होता है।
सेन्ट्रियोल                     अनुपस्थित होता है।                               उपस्थित होता है।
श्वसन                            प्लाज्मा झिल्ली होता है।                        माइटोकॉन्ड्रिया द्वारा होता है।
लिंग प्रजनन                  नहीं पाया जाता है।                                पाया जाता है।
प्रकाश संश्लेषण           थायलेकाइड में होता है।                         क्लोरोप्लास्ट में होता है।
कोशिका विभाजन        अर्द्धसूत्री प्रकार का होता                         अर्द्धसूत्री या समसूत्री होता है।
     
कोशिका के मुख्य भाग (Main parts of a cell):
1. कोशिका भित्ति (Cell wall):
 1. यह केवल पादप कोशिका में पाया जाता है।
 2. यह सेलुलोज का बना होता है।
 3. यह कोशिका को निश्चित आकृति एवं आकार बनाए रखने में सहायक होता है। जीवाणु का कोशिका भित्ति पेप्टिडोगलकेन (peptidogylcan) का बना होता है।


2. कोशिका झिल्ली (Cell membrane): कोशिका के सभी अवयव एक पतली झिल्ली के द्वारा घिरे रहते हैं, इस झिल्ली को कोशिका झिल्ली कहते हैं। यह अर्द्धपारगम्य झिल्ली (Semipermeable membrane) होती है। इसका मुख्य कार्य कोशिका के अन्दर जाने वाले एवं अंदर से बाहर आने वाले पदार्थों का निर्धारण करना है। कोशिका झिल्ली लिपिड की बनी होती है। यह लिपिड घटक फास्फोग्लिसराइड के बने होते हैं। बाद में जैव रासायनिक
अनुसंधानों से यह स्पष्ट हो गया है कि कोशिका झिल्ली में प्रोटीन व कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है।

नोट : कोशिका झिल्ली का उन्नत नमूना 1972 में सिंगर व निकोल्सन द्वारा प्रतिपादित किया गया जिसे तरल किर्मीर  नमूना के रूप में स्वीकार किया गया। इसके अनुसार लिपिड के अर्धतरलीय प्रकृति के कारण द्विसतह के भीतर प्रोटीन पार्श्विक गति करता है।



तारककाय (Centrosome): इसकी खोज बोबेरी ने की थी। यह केवल जन्तु कोशिकाओं में पाया जाता है। तारककाय (Centrosome) के अन्दर एक या दो कण जैसी रचना होती है, जिन्हें सेण्ट्रियोल कहते हैं। समसूत्री विभाजन में यह ध्रुव का निर्माण करता है।

4. अंतर्द्रव्यी जालिका (Endoplasmic reticulum): यूकैरियोटिक कोशिकाओं के कोशिका द्रव्य में चपटे, आपस में जुड़े, थैलीयुक्त छोटी नलिकावत जालिका तंत्र बिखरा रहता है जिसे अंतर्द्रव्यी जालिका कहते हैं। प्रायः राइबोसोम अंतर्द्रव्यी जालिका के बाहरी सतह पर चिपके रहते हैं। 
    जिस अंतर्द्रव्यी जालिका के सतह पर यह राइबोसोम मिलते हैं, उसे खुरदरी अंतर्द्रव्यी जालिका कहते
हैं।
     राइबोसोम की अनुपस्थिति पर अंतर्द्रव्यी जालिका चिकनी लगती है, अतः इसे चिकनी अंतर्द्रव्यी  जालिका कहते हैं। जो कोशिकाएँ प्रोटीन संश्लेषण  एवं स्रवण में सक्रिय भाग लेती हैं उनमें खुरदरी अंतव्यी जालिका बहुतायत से मिलती है। चिकनी अंतर्व्यी जालिका प्राणियों में लिपिड संश्लेषण  के मुख्य स्थल होते हैं। लिपिड  की भाति स्टीरायल हा्मोन चिकने अंतर्दव्यी जातिका में ही होते हैं।
* E.R. का मुख्य कार्य उन सभी वसाओं व प्रोटीनों का संचरण (Transportation) करना है, जो कि विभिन्न झिल्लियों  (Membranes) जैसे कोशिका झिल्ली  केन्द्रक झिल्ली आदि का निर्माण करते हैं।

5. राइबोसोम  (Ribosome) सर्वप्रथम रोविन्सन एवं ब्राउन ने 1953 ई. में पादप कोशिका में तथा जी. ई. पैलेड ने 1953 ई. में जन्तु कोशिका में राइबोसोम को देखा और 1958 ई. में रॉबर्ट ने इसका नामकरण किया। यह राइबोन्यूक्किक एसिड (ribonucleic acid-RNA) नामक अम्ल  व प्रोटीन की बनी होती है यह प्रोटीन संश्लेषण के
लिए उप्युक्त स्थान प्रदान करती है अर्थात यह प्रोटीन का उत्पादन स्थल है। इसीलिए इसे प्रोटीन की फैक्ट्री (Factory of protein) भी कहा जाता है। राइयोसोम केवल कोशिका द्रव्य में ही नहीं, बल्कि हरित लवक , सुत्र कणिका (Mitochondria) एवं खुरदरी अंतप्रदव्य जालिका में भी मिलते हैं। यूकरियोटिक राइयोसोम 80 S व प्रोकीरियोटिक राइबोसोम 70S प्रकार के होते हैं। यहाँ पर "S (स्वेडवर्गस इकाई) अवसादन गुणांक को प्रदर्शित करता है। यह अपरोक्ष रूप में आकार व घनत्वा  को व्यक्त करता है।

नोट : सतनी के लाल रूपिर कण में राइबोसोम एवं अन्तःप्रज्रव्य जालिका नहीं पाया जाता है। लाल रुचिर कण द्वारा प्रोटीन विश्लेषण नही होता है।

6 माइटोकॉण्ड्रिया (Mitachondria) : इसकी खोज अल्टमैन (Altman) ने 1886 ई. में की थी। बेंडा ने इसका नाम माइटोकॉण्ड्रिया दिया। यह कोशिका का श्वसन स्थल है। कोशिका में इसकी संख्या निश्चित नहीं होती है। ऊर्जायुक्त कार्बनिक पदार्थों का ऑक्सीकरण (Oxidation) माइटोकॉण्ड्रिया में होता है, जिससे काफी मात्रा में ऊर्जा प्राप्त होती है। इसलिए माइटोकॉण्ड्रिया को कोशिका का शक्ति केन्द्र (Power house of cell) कहते हैं। इसे कोशिका का इंजन भी कहते हैं। इसे यूरकैरियोटिक कोशिकाओं के भीतर प्रोकैरियोटिक कोशिकाएँ माना जाता है। माइटोकॉण्ड्रिया के आधात्री में एकल वृत्ताकार डी एन ए अणु व कुछ आरएनए राइबोसोम्स (70 S) तथा प्रोटीन संश्लेषण  के लिए आवश्यक घटक मिलते हैं। माइटोकॉण्ड्रिया विखण्डन द्वारा विभाजित होती है।

नोट  : DNA केन्द्रक के अलावे माइटोरोकॉण्डिया एवं हरित लवक  में पाया जाता है।

7. गॉल्जीकाय (Golgi body) इसकी खोज कैमिलो गॉल्जी (इटली) नामक वैज्ञानिक ने की थी। यह सूक्ष्म नलिकाओं (Tubules) के समूह एवं थैलियों  का बना होता है।

    गॉल्जी कॉम्प्लेक्स में कोशिका द्वारा संश्वेषित प्रोटीनों व अन्य पदार्थों की पुटिकाओं के रूप में पैकिंग की जाती है ये पुटिकाएँ गंतव्य स्थान पर उस पदार्थ को पहुँचा देती हैं। यदि कोई पदार्थ कोशिका से बाहर श्रावित  होता है तो उस पदार्थ वाली पुटिकाएँ उसे कोशिका- झिल्ली के माध्यम से बाहर निकलवा देती हैं इस प्रकार गालजीकाय को हम कोशिका के अणुओं का यातायात प्रबंधक भी कह सकते हैं। ये कोशिका भित्ति एवं लाइसोसोम का निर्माण भी करते हैं। गॉल्जी कॉम्प्लेक्स में साधारण शर्करा से कार्बोहाइड्रेट का संश्लेषण होता है जो राइबोसोम में निर्मित प्रोटीन से मिलकर गलाइकोप्रोटीन बनाता है। गॉल्जीकाय गलाइकोलिपिड का भी निर्माण करता है।

लाइसोसोम (Lysosome) इसकी खोज ही दूवे नामक वैज्ञानिक ने की थी। यह सूक्ष्म , गोल, इकहरी झिल्ली से घिरी थैली  जैसी रचना होती है। इसका निर्माण संवेष्टन विधि द्वारा गाल्जीकाय में होता है। लाइसोसोम में सभी प्रकार की जल-अपघटकीय एंजाइम (जैसे-हाइड्रोलेजेज  लाइपेसे ज, प्रोटोएसेज व कार्बोडाइेजज)मिलते हैं जो अम्लीय परिस्थितियों  में सर्वाधिक सक्रिय होते हैं। ये  एंजाइम कार्बोहायड्रेट , प्रोटीन, लिपिड , न्यूक्तिक अम्ल आदि के पाचन में सक्षम  है। इसे आत्मघाती थैली (Suicide vesicle)  भी कहा जाता है। 

नोट  स्तनधारियों  के लाल रक्तकर्णिकाओ  में  लाइसोसोम नहीं पाया  जाता  है

लवक (p1astid) यह  केवल पादप  कोशिका में पाये जाते है
यह तीन प्रकार के होते हैं- 
(a) हरित लवक (Chlalroplast).) 
(b ) अवर्णी लवक (Leucoplast) एवं 
(c) वर्णी लवक (Chromoplast)]

हरित लवक (chloroplast) :-  यह हरा रंग का होता है, कयोकि इसके अंदर एक हरे रंग का पदार्थ पर्णहरित (Chlorophyll) होता है। इसी की सहायता से पौधा प्रकाश संशलेषण  करता है और भोजन बनाता है, इसलिए हरित लवक  को पादप कोशिका की रसोई पर कहते हैं। इसमें लाइसोसोम  पाया जाता है।

नोट  ; पतियों  का रंग पीला  उनमें केरोटीन  के निर्माण होने के कारण होता है।

(b ) अवर्णी  लवक (leucoplast) यह रंगहीन कवक है। यह पौधे के उन भागों की कोशिकाओं में पाया जाता है, जो सूर्य के प्रकाश से पंचित है। जैसे कि जड़ों में, भूमिगत तनों आदि में वे भोज्य पदार्थों का संग्रह करने वाला कवक है।

C ) वर्णी लवक (Chrmoplast) ये रंगीन कवक होते हैं, जो प्रायः लाल, पीते, नारंगी रंग के होते हैं। ये पौधे के रंगीन भाग जैसे  पुष्प , फलभित्ति, बीज आदि में पाये जाते हैं। 
वर्णी कवक के अन्य उदाहरण टमाटर में लयकोपन  (lycopene) गाजर में कैरोटीन (Carotine) चुकन्दर में बीटानीन (Betanin)

नोट:- वनस्पति को पराबैंगनी किरणों के दुष्प्रभाव  से बचाने वाला वर्णक है ।

10. रसधानी (Vacuoles): यह कोशिका की निर्जीव  रचना है। इसमें तरल पदार्थ भरी होती है। जन्तु कोशिकाओं में वह अनेक व बहुत छोटी होती है, परन्तु पादप कोशिकाओं में प्राय  बहुत बड़ी और केन्द्रक  स्थित होती है 

11 केन्द्रक (Nuceus)  यह कोशिका का सबसे प्रमुख अंग होता है। यह कोशिका के प्रबन्धक के समान कार्य करता है। केन्द्रक द्रव्य में धागेनुमा पदार्थ जाल  के रूप में बिखरा दिखलाई पड़ता है, इसे क्रोमैटिन  कहते हैं। यह प्रोटीन हिस्टोन एवं DNA (Deoxy Ribonuclic Acid) का बना होता है कोशिका विभाजन के समय कोमेटिन सिकुडकर अनेक मोटै । छोटे धागे के रूप में संगठित हो जाते हैं। इन धागों को गुणसूत्र (chromosome ) कहते हैं।
प्रत्येक  जाति के जीवधारियों में सभी कोशिकाओं के केन्द्रक में गुणसूत्र की संख्या निश्चित होती है, जैसे मानव में 23 जोड़ा, चिम्पाजी में 24 जोड़ा, बंदर में 21 जोड़ा।

    प्रत्येक गुणसूत्र में जेली के समान एक गाढ़ा भाग होता है, जिसे मैट्रिक्स (Matrix) कहते हैं। मैट्रिक्स में दो परस्पर लिपटे महीन एवं कुंडलित सूत्र दिखलाई पडते हैं, जिन्हें क्रोमोनिमाटा (Chromonemata) कहते हैं, प्रत्येक क्रोमोनिमाटा एक अर्द्गुणसूत्र (Chromatid) कहलाता है। इस प्रकार प्रत्येक गुणसूत्र दो क्रोमैटिड का बना होता है । दोनों क्रोमैटिड एक निश्चित स्थान पर एक-दूसरे से जुड़े होते हैं, जिसे सेण्ट्रोमियर (Centromere) कहते हैं।
गुणसूत्रों पर बहुत से जीन स्थित होते हैं, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक लक्षणों को हस्तान्तरित करते हैं और हमारे आनुवंशिक गुणों के लिए उत्तरदायी होते हैं। चूँकि ये जीन गुणसूत्रों पर स्थित होते हैं एवं गुणसूत्रों के माध्यम से ही पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांन्तरित्हो ते हैं, इसलिए गुणसूत्रों को वंशागति का वाहक कहा जाता है। क्रोमैटिन के अलावा केन्द्रक में एक सघन गोल रचनाएँ दिखलाई पड़ती हैं। इसे कैन्द्रिका (Nucleolus) कहते हैं। इसमें राइबोसोम (Ribosome) के लिए RNA (RibonuclicAcid)का संश्लेषण होता है।

DNAएवं RNA की संरचना :  DNA की अधिकांश मात्रा केन्द्रक में होती है, यद्यपि इसकी कुछ मात्रा माइद्रोकॉण्डिरिया तथा हरित लवक में भी मिळती है। DNA पॉलिन्यूक्लियोटाइड होते हैं-


* क्षार (Base) :- DNA में उपस्थित क्षार चार प्रकार के होते हैं-
एडीनीन (Adenine A),
गुआनीन (Guanine C), 
थायमिन (Thymine = T) तथा 
साइटोसीन (CCytosine C)।
 DNA में अणु संख्या के आधार पर एडीनीन सदैव थायमिन से, साइटोसीन सदैव गुआनीन से जुड़ा रहता है। एडीनीन व थायमिन के बीच दो हाइड्रोजन आबंध तथा साइटोसीन व गुआनीन के बीच तीन हाइड्रोजन आबंध होते हैं। ।A=T, G = C]
* सन् 1953ई. में जे. डी. वाटसन एवं क्रिक ने DNA की द्विकुंडलित संरचना मॉडल (Double Helix Model) प्रतिपादित किया इस काम के लिए उन्हें सन् 1962 ई. में नोबेल पुरस्कार मिला।

DNA का कार्य यह सभी आनुवंशिकी क्रियाओं का संचालन करता है। जीन इसकी इकाई है। यह प्रोटीन संश्ठेषण को नियंत्रित करता है।

RNA का निर्माण ( Transcription) : DNA से ही RNA का संश्लेषण होता है। इस क्रिया में DNA की एक श्रृंखला पर RNA की न्यूक्लियोटाइड आकर जुड़ जाती है। इस प्रकार एक अस्थायी DNA-RNA संकर का निर्माण होता है। इसमें नाइट्रोजन बेस थायमिन के स्थान पर यूरेसिल होता है। कुछ समय बाद RNA की समजात श्रृंखला अलग हो जाती है।
RNA तीन प्रकार के होते हैं:

1.r-RNA (Ribosomal RNA) : ये राइबोसोम पर लगे रहते हैं और प्रोटीन संश्लेषण में सहायता करते हैं।
2.- t RNA (Transfer RNA) : यह प्रोटीन संश्लेषण में विभिन्न प्रकार के अमीनो अम्लों को राइबोसोम पर लाते हैं, जहाँ पर प्रोटीन बनता है।

नोट: प्रोटीन बनने की अंतिम क्रिया को द्वान्सलेशन (Translation) कहते हैं।

3  m RNA (Messenger RNA) : यह केन्द्रक के बाहर विभिन्न आदेश लेकर अमीनो अम्लों को चुनने में मदद करता है।
DNA एवं RNA में मुख्य अन्तर

DNA                                                       RNA
इसमें डीऑक्सीराइबोज शर्करा             1. इसमें राइबोज शर्करा होती है।
होती है।
इसमें बेस एडिनीन, ग्वानीन,                 2. इसमें बेस थायमिन की जगह
थायमिन एवं साइटोसीन होते हैं।            यूरेसिल आ जाता है।
3. यह मुख्यतः केन्द्रक में पाया             3. यह केन्द्रक एवं कोशिकाद्रव्य
जाता है।                                                दोनों में पाया जाता है।

पादप एवं जन्तु कोशिका में मुख्य अंतर

पादप कोशिका                                  जन्तु कोशिका
1. इसमें कोशिका भित्ति पायी            1. इसमें कोशिका भित्ति अनुपस्थित है
 ।जाती है।
2. इसमे लवक पायी जाती है।            2. इसमें लवक अनुपस्थित होती है।
3. तारककाय (centrosome)             3. तारककाय (centrosome)
अनुपस्थित रहता है।                          उपस्थित रहता है।
4. रिक्तिका (Vacuoles) बड़ी             4 रिक्तिका (Vaculoes) छोटी होती  है
होती है।
5. इसका आकार लगभग                    5. इसका आकार लगभग वृत्ताकार
 आयताकार होता है।                            होता है।

कोशिका विभाजन
* कोशिका विभाजन (Cell division) को सर्वप्रथम 1855 ई. में विरचाऊ ने देखा।
* कोशिका का विभाजन मुख्यतः तीन प्रकार से होते हैं-
1. असूत्री विभाजन (Amikosis),
 2. समसूत्री विभाजन (Mitosis) व
3. अर्द्धसूत्री विभाजन (Meiosis)।

1. असूत्री विभाजन (Amitosis) यह विभाजन अविकसित कोशिकाओं जैसे-जीवाणु, नील हरित शैवाल, यीस्ट, अमीबा तथा प्रोटोजोआ में होता है।

2. समसूत्री विभाजन (Mitosis) समसूत्री विभाजन की प्रक्रिया को जन्तु कोशिकाओं में सबसे पहले जर्मनी के जीव वैज्ञानिक वाल्थेर फ्लेमिंग ने 1879 ई. में देखा । उन्होंने ही सन् 1882 में इस प्रक्रिया को माइटोसिस नाम दिया। यह विभाजन कायिक कोशिका (Somatic cell) में होता है।
* अध्ययन की सुविधा के लिए समसूत्री विभाजन को पाँच चरणों में बाटते हैं, जो निम्न हैं-
(a) अन्तरावस्था (Interphase), 
(b) पूर्वावस्था (Prophase),
() मध्यावस्था (Metaphase), 
(d) पश्चावस्था (Anaphase),
(e) अन्त्यावस्था (Telophase)।

इस विभाजन के फलस्वरूप एक जनक कोशिका (Parent cell) से दो संतति (Daughter cell) का निर्माण होता है। प्रत्येक संतति कोशिका में गुणसूत्र की संख्या जनक कोशिका (Parent ell) के बराबर होती है।
समसूत्री विभाजन की पश्चावस्था (Anaphase)सबसे छोटी होती है, वह केवल 2-3 मिनट में समाप्त हो जाती है।

3. अ्धसूत्री विभाजन (Meiosis) फार्मर- तथा मूरे (Farmer and Moore, 1905) ने कोशिकाओं में अर्द्धसूत्री विभाजन को Meiosis नाम दिया।

* अर्द्धसूत्री विभाजन की खोज सर्वप्रथम वीजमैन (Weismann) ने की थी, लेकिन इसका सर्वप्रथम विस्तृत अध्ययन स्ट्रासबर्गर ने 1888 ई. में किया।

*  यह विभाजन जनन कोशिकाओं में होता है।

*  अर्द्धसूत्री कोशिका विभाजन निम्न दो चरणों में पूरा होता है.
1. अर्द्धसूत्री-I. 
2. अर्द्धसूत्री-II

*  अर्द्धसूत्री-1 में गुणसूत्रों की संख्या आधी रह जाती है, इसलिए इसे न्यूनकारी विभाजन (Reduction division) भी कहते हैं।
अर्द्धसूत्री प्रथम विभाजन में चार अवस्थाएँ होती हैं-

1. प्रोफेज-I
2. मेटाफेज-I
3, एनाफेज-I एवं 
4. टेलसीफेज-I ।

* प्रोफेज-I सबसे लम्बी प्रावस्था होती है, जो कि पाँच उपअवस्थाओं में पूरी होती है-
। लेप्टोटीन (Leptotene) 
2. जाइगोटीन zygotene) 
3. पैकीटीन ( Pachytene) एवं
4 . डिप्लोटीन (Diplotene)
5. डायकिनेसिस (Diakinesis)।

1. लेप्टोटीन (Leptotene) : गुणसूत्र उलझे हुए पतले थागों की तरह दिखाई पड़ते हैं। इन्हें क्रोमोनिमेटा कहते हैं। गुणसूत्र की संख्या द्विगुणित (diploid) होती है।

2. जाइगोटीन (Zygotene) : समजात गुणसूत्र एक साथ होकर जोड़े बनाते हैं। इसे सिनैप्सिस (synmapsis) कहते हैं। सेंट्रिओल एक दूसरे से अलग होकर केन्द्रक के विपरीत ध्रुवों पर चले जाते हैं। प्रोटीन एवं RNA संश्लेषण के फलस्वरूप केंद्रिका बड़ी हो जाती है।

3. पैकीटीन (Pachytene) : प्रत्येक जोड़े के गुणसूत्र छोटे और मोटे हो जाते हैं। द्विज का प्रत्येक सदस्य अनुदैर्ध्य रूप से विभाजित होकर दो अनुजात गुणसूत्रों या क्रोमैटिडों में बैँट जाता है। इस प्रकार, दो समजात गुणसूत्रों के एक द्विज से अब चार क्रोमैटिड बन जाते हैं। इनमें दो मातृ तथा दो पितृ क्रोमैटिड होते हैं। कभी-कभी मातृ और पितृ क्रोमैटिड एक या ज्यादा स्थान पर एक दूसरे से क्रॉस करते हैं। ऐसे बिन्दु पर मातृ तथा पितृ क्रोमैटिड टूट जाते हैं और एक क्रोमैटिड का टूटा हुआ भाग दूसरे क्रोमैटिड के टूटे स्थान से जुड़ जाते हैं। इसे क्रॉसिंग ओवर कहते हैं एवं इस प्रकार जीन का नये ढंग से वितरण हो जाता है। अर्थात् जीन विनिमय पैकीटीन अवस्था में होता है इस क्रिया में रिकॉम्बिनेज एंजाइम भाग लेते हैं।

नोट: क्रॉसिंग ओवर हमेशा नॉनस्टिर क्रोमैटिड के बीच होता है।

4. डिप्छोटीन (Djplotene): समजात गुणसूत्र अलग होने लगते हैं, परन्तु जोड़े के दो सदस्य पूर्ण रूप से अलग नहीं हो पाते. क्योंकि वे कहीं-कहीं एक दूसरे से X के रूप में उलझे रहते हैं। ऐसे स्थानों को काइएज्माटा (chiasmata) कहते हैं। काइएज्माटा की औसत संख्या को बारंबारता (chiasmata frequency) कहते हैं। काइएज्माटा का अंत्यीकरण (ferminalisation) हो जाता है ।

5. डायकिनेसिस (Diakinesis) केन्द्रक कला एवं केन्द्रिका लुप्त हो जाती है।
*  अर्द्धसूत्री विभाजन-II समसूत्री विभाजन के समान होता है।
* अर्द्धसूत्री विभाजन में एक जनक कोशिका (Parent cell) से चार संतति कोशिका (Daughter cell) का निर्माण होता है।
* समसूत्री एवं अर्द्धसूत्री विभाजन में, अंतर

अर्द्धसूत्री विभाजन                               समसूत्री विभाजन
1. यह विभाजन कायिक (somatic)         1. यह विभाजन जनन कोशिकाओं
कोशिका में होता है।                                 में होता है।

2. इस विभाजन में कम समय                 2. इस विभाजन में अधिक समय
लगता है।                                                लगता है।

3. इस विभाजन के द्वारा एक                     3. इस विभाजन में एक कोशिका
कोशिका से दो कोशिकाएँ बनती                से चार कोशिकाओं का निर्माण
हैं।                                                           होता है।

4. संतति कोशिका में जनक जैसी             4. संतति कोशिकाओं में जनकों
ही गुणसूत्र होने के कारण                           से भिन्न गुणसूत्र होने के कारण
आनुवंशिक विविधता नहीं होती।                आनुवंशिक विविधता होती है।

5. इसमें गुणसूत्रों के आनुवंशिक             5. इस विभाजन में गुणसूत्रों के
पदार्थों में आदान-प्रदान                            बीच आनुवंशिक पदार्थों का
(Crossingover)नहीं होता है।                  आदान-प्रदान होता है।

6. इसकी प्रोफेज अवस्था छोटी             6. इसकी प्रोफेज अवस्था लम्बी
होती है।                                                 होती है।

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