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अन्तःस्रावी तंत्र (Endocrine system)

 

अन्तःस्रावी तंत्र (Endocrine system)

अन्तःस्रावी तंत्र (Endocrine system)
(a) बहिःस्रावी ग्रंथियाँ (Exocrine glands): यह नलिका युक्त (duct glands) होती है। इससे एन्जाइम का स्राव होता है। जैसे-दुग्ध ग्रंथि, स्वेद ग्रंथि, अश्रु ग्रंथि, श्लेष्म ग्रंथि, लार ग्रंथि आदि।

(b) अन्तःस्रावी ग्रंथि (Endocrine gland) : यह नलिकाविहीन (ductless) ग्रंथि होती है। इससे हार्मोन का स्राव होता है। यह हार्मोन रक्त प्लाज्मा के द्वारा शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचाया जाता है। जैसे-पीयूष ग्रंथि, अवटुग्रंथि (Thyroid gland), परा अवटुग्रंथि (Para Thyroid gland) आदि ।

मुख्य अन्तःसरावी ग्रंथि एवं उनसे उत्पन्न हार्मोन के कार्य एवं प्रभाव 

पीयूष ग्रंथि (Pituitary gland):
> यह कपाल की स्फेनाइड (Sphenoid) हड्डी में एक गड्ढे में स्थित होती है। इसको सेल टर्सिका (Cell turcica) कहते हैं।
>  इसका भार लगभग 0.6 gm होता है।
> इसे मास्टर ग्रंथि के रूप में भी जाना जाता है।

पीयूष ग्रंथि से निकलने वाले हार्मोन एवं उनके कार्य
(a) STH होर्मोन (Somatotropic hormone) : यह शरीर की वृद्धि, विशेषतया हड्डियों की वृद्धि का नियंत्रण करती है। STH की अधिकता से भीमकायत्व (Gigantism) अथवा एक्रोमिगली (Acromegaly) विकार उत्पन्न हो जाते हैं, जिसमें मनुष्य की लम्बाई सामान्य से बहुत अधिक बढ़ जाती है। STH की कमी से मनुष्य में बौनापन (Dwarfism) होता है।

(b) TSH हार्मोन (Thyroid Stimulating Hormone) : थायरॉयड ग्रंथि को हार्मोन स्रावित करने के लिए प्रेरित करता है।
(c) ACTH a (Adrenocorticotropic Hormone): a कॉर्टेक्स के स्राव को नियंत्रित करता है।
(d) CTH हा्मोन (Gonadotropic Hormone): यह जनन अंग के कार्यों का नियंत्रण करता है। यह दो प्रकार का है-

1. FSH हार्मोन (Follicle Stimulating Hormone): यह वृषण की शुक्रजनन नलिकाओं में शुक्राणु जनन में सहायता करता है। यह अंडाशय में फॉलिकिल की वृद्धि में मदद करता है।

2. LH हार्मोन (Luteinizing Hormone) : अंतराल कोशिका उत्तेजक हार्मोन-नर में इसके अभाव से अंतराली कोशिकाओं में टेस्टोस्टीरोन हार्मोन एवं मादा में एस्ट्रोजेन (Estrogen) हार्मोन स्रावित होता है।

(e) LTH हार्मोन (दुग्धजनक हार्मोन  Lactogenic Hormone); इसका मुख्य कार्य है, शिशु के लिए स्तनों में दुग्ध स्राव उत्पन्न करना।

(f) ADH हार्मोन (Antidiuretic Hormone): इसके कारण छोटी- छोटी रक्त धरमनियों का संकीर्णन होता है एवं रक्तदाब बढ़ जाता है। यह शरीर में जल-संतुलन को बनाये रखने में भी सहायक होता है।

अवटु ग्रंथि (Thyroid gland):
> यह मनुष्य के गले में श्वास-नलीय ट्रेकिया के दोनों ओर लैरिंक्स के नीचे स्थित रहती है।
> इससे निकलने वाला हाम्मोन थाइरॉक्सिन (Thyroxin) एवं ट्रायोडोथाइरोनिन (Triodothyronine) है, इसमें आयोडीन अधिक मात्रा में रहता है।

थाइरॉक्सिन (Thyroxin) के कार्य :
(a) यह कोशिकीय श्वसन की गति को तीव्र करता है।
(b) यह शरीर की सामान्य वृद्धि विशेषतः हड्डियों, बाल इत्यादि के विकास के लिए अनिवार्य है।
(c) जनन-अंगों के सामान्य कार्य इन्हीं की सक्रियता पर आधारित रहते हैं।
(d) पीयूष ग्रंथि के हार्मोन के साथ मिलकर शरीर में जल-संतुलन का नियंत्रण करते हैं।

थाइरॉक्सिन की कमी से होने वाला रोग :
(a) जड़मानवता (Cretinism): यह रोग बच्चों में होता है। इसमें बच्चों का मानसिक एवं शारीरिक विकास अवरुद्ध हो जाता है ।
(b) मिक्सिडमा : यौवनावस्था में होने वाले इस रोग में उपापचय भली- भाँति नहीं हो पाता, जिससे हृदय स्पंदन तथा रक्त-चाप कम हो जाता है।
(c) हाइपोथायरॉयडिज्म (Hypothyroidism) लम्बे समय तक इस हार्मोन की कमी के कारण यह रोग होता है। इस रोग के कारण सामान्य जनन -कार्य संभव नहीं हो पाता। कभी-कभी इस रोग के कारण मनुष्य गूँगा एवं बहरा हो जाता है।
(d) घेघा (Goitre): भोजन में आयोडीन की कमी से यह रोग उत्पन्न हो जाता है। इस रोग में थायरॉयड ग्रंथि के आकार में बहुत वृद्धि हो जाती है।

थायरॉक्सिन के आधिक्य से होने वाला रोग
(a) टॉक्सिक ग्वाइटर (Toxic goitre) : इसमें हृदय गति तीव्र हो जाता है, रक्त-चाप बढ़ जाता है, श्वसन-दर तीव्र हो जाती है।
(b) एक्सोप्यैलमिया (Exophthalmia): इस रोग में आँख फूलकर नेत्रकोटर से बाहर निकल आती है।

पराअवटु ग्रंथि (Parathyroid gland)
 यह गला में अवटु ग्रंथि (Thyroid gland) के ठीक पीछे स्थित होता है। इससे दो हाम्मोन स्रावित होते हैं-
(a) पैराथायरॉयड हार्मोन (Parathyroid hormone) : यह हार्मोन तब स्रावित होता है। जब रुधिर में कैल्शियम की कमी हो जाती है।
(b) कैल्सिटोनिन (Calcitonin): जब रुधिर में कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है तब यह हार्मोन मुक्त होता है। अर्थात् पराअवटु ग्रंथि से निकलने वाला हार्मोन रुधिर में कैल्शियम की मात्रा को नियंत्रण करता है।

थाइमस ग्रंथि (Thymus Gland):  यह अन्तःस्रावी ग्रंथि वक्षीय गुहा (Thoracic Cavity) में उरोस्थि (स्टर्नम) के पीछे श्वास प्रणाली (Trachea) के विभाजन के स्तर पर स्थित एक लिम्फॉयड अंग है। इसमें दो खण्ड (Lobes) होते हैं जो संयोजी ऊतक की एक परत से आपस में जुड़ें होते हैं। इसमें बाहर की ओर कॉटेक्स होता है जिसमें अनगिनत संख्या में लिम्फोसाइट्स मौजूद होती है तथा अन्दर मेड्यूला होता है। मेड्यूला में लिम्फोसाइट्स की संख्या कुछ कम रहती है एवं कोशिकाओं के गुच्छे (जिसे थाइमिक या हैसल्स कोशिकाएं कहते हैं) भी रहते हैं।

    यह ग्रंथि उम्र के अनुसार अलग-अलग आकार की होती है जब तक बच्चे की उम्र दो वर्ष की नहीं हो जाती तब तक यह बढ़ती रहती है और इसके बाद यह सिकुड़ती जाती है। इसीलिए वयस्क होने पर यह सिर्फ तन्तुमय अवशेष की अवस्था में पायी जाती है। थाइमस ग्रंथि से थाइमोसिन नामक पेप्टाइड हार्मोन का स्राव होता है जो मुख्य रूप से टी-कोशिकाओं का निर्माण करती है। यह कोशिकाएँ शरीर की रोग क्षमता बनाये रखने में खास भूमिका अदा करती है। यानी थाइमस ग्रंथि प्रतिरक्षा तंत्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस ग्रंथि से स्रावित होने वाले स्राव का प्रभाव जनन इन्द्रियों के विकास एवं यौवन के आरंभ पर पड़ता है। हडियों के विकास होने तक यह उनके विकास पर नियंत्रण रखती है।

अधिवृक्क ग्रंथि (Adrenal gland):
> यह वृक्क के ऊपर स्थित होती है। इसका मुख्य कार्य तनाव की स्थिति में हार्मोन निकालना है।
> अधिवृक्क ग्रंथि से निकलने वाले हार्मोन को लड़ो एवं उड़ो (fight and flight) हार्मोन कहा जाता है।
> इस ग्रंथि के दो भाग होते हैं-
1. बाहरी भाग कॉर्टेक्स (Cortex) तथा 
2. अंदरुनी भाग मेड्ला (Medulla)

कॉर्टेक्स से निकलने वाला हार्मोन एवं कार्य
(a) ग्लूकोकॉर्टिक्वायड्स  (Glucocorticoids): ये कार्बोहाइड्रेट,प्रोटीन एवं वसा उपापचय को नियंत्रित करता है।
(b) मिनरलोकॉर्टिक्वायड्स (Mineralocorticoids) इसका मुख्य कार्य वृक्क नलिकाओं द्वारा लवण के पुनः अवशोषण एवं शरीर में अन्य लवणों की मात्राओं का नियंत्रण करना है।
(c) लिंग हाम्मोन (Sex hormone) : यह बाह्य लिंगों बालों के आने का प्रतिमान एवं यौन आचरण को नियंत्रित करते हैं।
नोट : कॉर्टेक्स (Cortex) : जीवन में नितांत आवश्यक है। यदि यह शरीर से बिल्कुल निकाल दिया जाए तो मनुष्य केवल एक या दो सप्ताह ही जीवित रह सकेगा । इसमें विकृती हो जाने पर उपापचयी प्रक्रमों में गड़बड़ी उत्पन्न हो जाती है; इस रोग को एडीसन रोग (Addison's disease) कहते हैं।

मेडूला (Medulla):
> मेडूला द्वारा स्रावित हार्मोन एपिनेफ्रीन (Epinephrine) या एड्रिनलीन और नॉरएपिनेफ्रीन (Norepinephrine) या नॉरएड्रिनलीन दोनों एमीनो अम्ल हैं। इन्हें सम्मिलित रूप में कैटेकॉलमीनस कहते हैं। एड्रिनलीन और नॉरएड्रिनलीन किसी भी प्रकार के दबाव या आपातकालीन स्थिति में अधिकता में तेजी से स्रावित होते हैं, इसी कारण ये आपातकालीन हाम्मोन या युद्ध हार्मोन या फ्लाइट हार्मोन कहलाते हैं। ये हार्मोन सक्रियता, आँखों की पुतलियों का फैलाव, रोंगटे खड़े होना, पसीना आदि को बढ़ाते हैं। दोनों हार्मोन हृदय की धड़कन, हृदय संकुचन की क्षमता और श्वसन दर को बढ़ाते हैं। इसके कारण रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है। ये लिपिड एवं प्रोटीन के विखंडन को भी प्रेरित करते हैं।

> एपिनेफ्रीन हृदय स्पंदन एकाएक रुक जाने पर उसे पुनः चालु करने में सहायक होता है।
> उत्तेजना के समय ऐडरिनेलिन हार्मोन अधिक मात्रा में उत्स्जित होता है (क्रोध, भय एवं खतरे के समय सक्रिय होता है)।

जनन-ग्रंथि (Gonads):
(a) अंडाशय (Ovary): इससे निम्न हार्मोन का स्राव होता है
1. एस्ट्रोजेन (Astrogen): यह अंडवाहिनी (Oviduct) के परिवर्धन को पूर्ण करता है।
2. प्रोजेस्टेरॉन (Progesteron): यह एस्ट्रोजेन से सहयोग कर स्तन-वृद्धि करने में सहायता करता है।
3. रिलैक्सिन (Relaxin): गर्भावस्था में यह अंडाशय, गर्भाशय व अपरा में उपस्थित रहता है। यह हॉर्मोन प्यूबिक सिंफाइसिक्स (pubic symphysix)को मुलायम करता है और यह गर्भाशय ग्रीवा (uterine cervix) को चौड़ा करता है, ताकि बच्चा आसानी से पैदा हो सके।

(b) वृषण (Testes) : इससे निकलने वाले हार्मोन को टेस्टोस्टीरॉन कहते हैं। यह पुरुषोचित लैंगिक लक्षणों के परिवर्धन को एवं यौन-आचरण को प्रेरित करता है।

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  फल/फुल/सब्जी आदि का वैज्ञानिक नाम (Scientific name of fruit / vegetable etc.) 1.मनुष्य---होमो सैपियंस 2.मेढक---राना टिग्रिना 3.बिल्ली---फेलिस डोमेस्टिका 4.कुत्ता---कैनिस फैमिलियर्स 5.गाय---बॉस इंडिकस 6.भैँस---बुबालस बुबालिस 7.बैल---बॉस प्रिमिजिनियस टारस 8.बकरी---केप्टा हिटमस 9.भेँड़---ओवीज अराइज 10.सुअर---सुसस्फ्रोका डोमेस्टिका 11.शेर---पैँथरा लियो 12.बाघ---पैँथरा टाइग्रिस 13.चीता---पैँथरा पार्डुस 14.भालू---उर्सुस मैटिटिमस कार्नीवेरा 15.खरगोश---ऑरिक्टोलेगस कुनिकुलस 16.हिरण---सर्वस एलाफस 17.ऊँट---कैमेलस डोमेडेरियस 18.लोमडी---कैनीडे 19.लंगुर---होमिनोडिया 20.बारहसिँघा---रुसर्वस डूवासेली 21.मक्खी---मस्का डोमेस्टिका 22.आम---मैग्नीफेरा इंडिका 23.धान---औरिजया सैटिवाट 24.गेहूँ---ट्रिक्टिकम एस्टिवियम 25.मटर---पिसम सेटिवियम 26.सरसोँ---ब्रेसिका कम्पेस्टरीज 27.मोर---पावो क्रिस्टेसस 28.हाथी---एफिलास इंडिका 29.डॉल्फिन---प्लाटेनिस्टा गैँकेटिका 30.कमल---नेलंबो न्यूसिफेरा गार्टन 31.बरगद---फाइकस बेँधालेँसिस 32.घोड़ा---ईक्वस कैबेलस 33.गन्ना---सुगरेन्स औफिसीनेरम 34.प्याज---ऑलियम सिपिया 35.कपास---गैसीपीयम

पाचन-तंत्र (Digestive system)

पाचन-तंत्र (Digestive system) पाचन-तंत्र (Digestivesystem): भोजन के पाचन की सम्पूर्ण प्रक्रिया पाँच अवस्थाओं से गुजरता है- 1. अन्तर्ग्रहण ( Ingestion) 2. पाचन (Digestion) 3. अवशोषण (Absorption) 4. स्वांगीकरण (Assimilation)  5. मल परित्याग (Defacation) 1. अन्तर्ग्रहन (Ingestion):  1. भोजन को मुख में लेना अन्तर्ग्रहन कहलाता है। 2. पाचन (Digestion): मनुष्य में भोजन का पाचन मुख से प्रारम्भ हो जाता है और यह छोटी आांत तक जारी रहता है। मुख में स्थित लार ग्रंथियों से निकलने वाला एन्जाइम टायलिन भोजन में उपस्थित मंड (Starch) को माल्टोज शर्करा में अपघटित कर देता है, फिर माल्टेज नामक एन्जाइम माल्टोज शकर्करा को ग्लूकोज में परिवर्तित कर देता है। लाइसोजाइम नामक एन्जाइम भोजन में उपस्थित हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट कर देता है। इसके अतिरिक्त लार में उपस्थित शेष पदार्थ बफर कार्य करते हैं। इसके बाद भोजन आमाशय में पहुँचता है। आमाशय (Stomach) में पाचन >  आमाशय में भोजन लगभग चार घंटे तक रहता है। भोजन के आमाशय में पहुँचने पर पाइलोरिक ग्रंथियों से जठर रस (Gastric Juice)निकलता है। यह हल्के पीले रंग का अम्लीय

प्राणी विज्ञान (Life Science)

प्राणी विज्ञान (Life Science) प्राणी विज्ञान : इसके अन्तर्गत जन्तुओं तथा उनके कार्यकलापों  का अध्ययन किया जाता है। 1. जन्तु जगत का बर्गीकरण (Classification of animal kingdom): > संसार के समस्त जन्तु जगत को दो उपजगत में विभक्त किया गया है-1. एककोशिकीय प्राणी, 2. बहुकोशिकीय प्राणी। एककोशिकीय प्राणी एक ही संघ प्रोटोजोआ में रखे गये जबकि बहुकोशिकीय  प्राणियों को 9 संघों में विभाजित किया गया। स्टोरर व यूसिन्जर  के अनुसार जन्तुओं का वर्गीकरण- संघ प्रोटोजोआ (Protozoa): प्रमुख लक्षण 1. इनका शरीर केवल एककोशिकीय होता है। 2. इनके जीवद्रव्य में एक या अनेक केन्द्रक पाये जाते हैं। 3. प्रचलन पदाभों, पक्ष्मों या कशाभों के द्वारा होता है। 4. स्वतंत्र जीवी एवं परजीवी दोनों प्रकार के होते हैं। 5. सभी जैविक क्रियाएँ (भोजन, पाचन, श्वसन, उत्सर्जन, जनन) एककोशिकीय शरीर के अन्दर होती है। 6. श्वसन एवं उत्सर्जन कोशिका की सतह से विसरण के द्वारा होते हैं। प्रोटोजोआ एण्ट अमीबा हिस्टोलिटिका का संक्रमण मनुष्य में 30-40 वर्षों के लिए बना रहता है। संघ पोरिफेरा (Porifera): > इस संघ के सभी जन्तु खारे जल में पाये जात

Bio-development (जैव विकाश)

Bio-development (जैव-विकास)      प्रारंभिक, निम्न कोटि के जीवों से क्रमिक परिवर्तनों द्वारा अधिकाधिक जीवों की उत्पत्ति को जैव विकास (Organic evolution) कहा जाता है। जीव-जन्तुओं की रचना कार्यिकी एवं रासायनिकी, भ्रूणीय विकास, वितरण आदि में विशेष क्रम व आपसी संबंध के आधार पर सिद्ध किया गया है कि जैव विकास हुआ है। लेमार्क, डार्विन, वैलेस, डी . बरीज आदि ने जैव विकास के संबंध में अपनी-अपनी परिकल्पनाओं को सिद्ध करने के लिए इन्हीं संबंधों को दर्शाने वाले निम्नलिखित प्रमाण प्रस्तुत किये हैं- 1 वर्णीकरण से प्रमाण 2. तुलनात्मक शरीर रचना से प्रमाण 3 अवशोषी अंगों से प्रमाण 4 संयोजकरता जन्तुओं से प्रमाण 5. पूर्वजता से प्रमाण 6. तुलनात्मक भ्रौणिकी से प्रमाण 7. भौगोलिक वितरण से प्रमाण 8. तुलनात्मक कार्यिकी एवं जीव- रासायनिकी से प्रमाण 9. आनुवंशिकी से प्रमाण 10. पशुपालन से प्रमाण 11. रक्षात्मक समरूपता से प्रमाण  12. जीवाश्म विज्ञान एवं जीवाश्मकों से प्रमाण समजात अंग (Homologous organ) ऐसे अंग जो विभिन्न कार्यों के लिए उपयोजित हो जाने के कारण काफी असमान दिखायी देते हैं, परन्तु मूल रचना एवं भ्रूणीय परिवर

Ecology (पारिस्थितिकी)

Ecology (पारिस्थितिकी) * जीव विज्ञान की उस शाखा को जिसके अन्तर्गत जीवधारियों और उनके वातावरण के पारस्परिक संबंधों का अध्ययन करते हैं, उसे पारिस्थितिकी कहते हैं। *  एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र या वास-स्थान में निवास करने वाली विभिन्न समष्टियों (Population) को जैविक समुदाय (Biotic community) कहते हैं। *  रचना एवं कार्य की दृष्टि से विभिन्न जीवों और वातावरण की मिली-जुली इकाई को पारिस्थितिक तंत्र (Ecosystem) कहते हैं। सर्वाधिक स्थायी पारिस्थितिक तंत्र महासागर है। * पारिस्थितिक तंत्र या पारितंत्र (Ecaystem or ecological syatem) शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम टेन्सले नामक वैज्ञानिक ने किया था।  * संरचनात्मक दृष्टि से प्रत्येक पारिस्थितिक तंत्र दो घटकों का बना होता है  A)  जैविक घटक,  B)  अजैविक घटक A. जैविक घटक  (Biotic components): इसे तीन भागों में विभक्त किया गया है- 1. उत्पादक  2. उपभोक्ता 3. अपघटक 1. उत्पादक : वे घटक जो अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। जैसे-हरे पीधे। 2. उपभोक्ता : वे घटक जो उत्पादक द्वारा बनाये गये भोज्य पदार्थों का उपभोग करते हैं। उपभोक्ता के तीन प्रकार हैं- (a) प्राथमिक उपभोक्ता

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कोशिका विज्ञान (cell Biology)

  कोशिका विज्ञान ( cell Biology) जीवद्रव्य (Protoplasm): *  जीवद्रव्य का नामकरण पुरकिंजे  (Purkenje) के द्वारा सन् 1839 ई. में किया गया। * यह एक तरल गाढ़ा रंगहीन, पारभासी, लसलसा, वजनयुक्त पदार्थ है। जीव की सारी जैविक क्रियाएँ इसी के द्वारा होती हैं। इसीलिए जीवद्रव्य (Protoplasm)को जीवन का भौतिक आधार कहते हैं। *  जीवद्रव्य दो भागों में बँटा होता है- 1. कोशिका द्रव्य (Cytoplasm) :  यह कोशिका में केन्द्रक एवं कोशिका झिल्ली के बीच रहता है। 2  केन्द्रक द्रव्य (Nucleoplasm):  यह कोशिका में केन्द्रक के अन्दर रहता है। * जीवद्रव्य का 99% भाग निम्न चार तत्वों से मिलकर बना होता है- 1. ऑक्सीजन (76%) 2. कार्बन (10.5%) 3. हाइड्रोजन (10%) 4. नाइट्रोजन (2.5%) * जीवद्रव्य का लगभग 80% भाग जल होता है। * जीवद्रव्य में अकार्बनिक एवं कार्बनिक यौगिकों का अनुपात 81 : 19 का होता है। कोशिका (Cell): *  कोशिका (Cell) जीवन की सबसे छोटी कार्यात्मक एवं संरचनात्मक इकाई है। एन्टोनवान लिवेनहाक ने पहली बार कोशिका को देखा व इसका वर्णन किया था। * कोशिका के अध्ययन के विज्ञान को Cytology कहा जाता है। * कोशिकाओं का औसत संगठन

जीव विज्ञान (Biology)

जीव विज्ञान (Biology)      जीव विज्ञान (Biology): यह विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अन्तर्गत जीवधारियों का अध्ययन किया जाता है। * Biology-Bio का अर्थ है-जीवन (Iife) और Logos का अर्थ है- अध्ययन (study) अर्थात् जीवन का अध्ययन ही Biology कहलाता है। * जीव विज्ञान शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम लैमार्क (Lamarck) (फ्रांस) एवं ट्रेविरेनस (Theviranus) (जर्मनी) नामक वैज्ञानिकों ने 1801 ई. में किया था। जीव विज्ञान की कुछ शाखाएँ एपीकल्चर(Apiculture)                       मधुमक्खी पालन का अध्ययन

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Botany (वनस्पति विज्ञान)

Botany (वनस्पति विज्ञान)  * विभिन्न प्रकार के पेड़, पौधों तथा उनके क्रियाकलापों के अध्ययन को वनस्पति विज्ञान (Botany) कहते हैं। * (थियोफे्टस(Theophrastus) को वनस्पति विज्ञान का जनक कहा   जाता है। पादपों का वर्गीकरण (Classification of Plants); * एकलर (Eichler) ने 1883 ई. में वनस्पति जगत का वर्गीकरण निम्न रूप से किया जाता है। अपुष्पोद्भिद् पौधा (Cryptogamus); * इस वर्ग के पौधों में पुष्प तथा बीज नहीं होता है। इन्हें निम्न समूह में बाँटा गया है- थेलोफाइटा (Thalophyta): * यह वनस्पति जगत का सबसे बड़ा समूह है। इस समूह के पौधों का शरीर सुकाय (Thalus) होता है, अर्थात् पौधे जड़, तना एवं पत्ती आदि में विभक्त नहीं होते। इसमें संवहन ऊतक नहीं होता है। शैवाल (Algae) *  शैवालों के अध्ययन को फाइकोलॉजी (Phycology) कहते हैं। *  शैवाल प्रायः पर्णहरित युक्त, संवहन ऊतक रहित, आत्मपोषी (Autotrophic) होते हैं। इनका शरीर सुकाय सदृश होता है। लाभदायक शैवाल 1. भोजन के रूप में : फोरफाइरा, अल्बा, सरगासन, लेमिनेरिया, नॉस्टॉक आदि । 2. आयोडीन बनाने में : लेमिनेरिया) फ्यूकस, एकलोनिया आदि। 3. खाद के रूप में: नॉस्टॉक, एन

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मानव रोग (Human disease)

मानव रोग (Human disease) परजीवी protozoa  से होने वाले रोग।  मेक्कुलाच ने 1827 ई. में सर्वप्रथम मलेरिया शब्द का प्रयोग किया। मलेरिया रोग की पुष्टि रक्त की बूँद तथा पी एफ मामलोंके लिए आर. डी. किट्स सूक्ष्मदर्शी जाँच द्वारा की जाती है। >लेवरन (1880 ई.) ने मलेरिया से पीड़ित व्यक्ति के रुधिर में मलेरिया परजीवी प्लाज्मोडियम की खोज की । > रोनाल्ड रास (1887 ई.) ने मलेरिया परजीवी द्वारा मलेरिया होने की पुष्टि की तथा बताया कि मच्छर इसका वाहक है। > मलेरिया रोग में लाल रुधिराणु नष्ट हो जाते हैं तथा रक्त में कमी आ जाती है। इसके उपचार में कुनैन, पेलुड्रीन, क्लोरोक्वीन, प्रीमाक्वीन औषधि लेनी चाहिए। > 1882 ई. में जर्मन वैज्ञानिक रॉबर्ट कोच ने कॉलरा एवं टी. बी. के जीवाणुओं की खोज की। > लुइ पाश्चर ने रेबीज का टीका एवं दूध का पाश्चुराइजेशन की खोज की। > बच्चों को DPT टीका उन्हें डिप्थीरिया, काली खाँसी एवं टिटनेस रोग प्रतिरक्षीकरण (Immunization) के लिए दिया जाता है। विषाणु virus  से होने वाली बीमारी। > जिका बुखार, जिसे जिका रोग के नाम से जाना जाता है, जिका।वायरस के कारण उत्पन्न होता ह

फल/फुल/सब्जी आदि का वैज्ञानिक नाम (Scientific name of fruit / vegetable etc.)

  फल/फुल/सब्जी आदि का वैज्ञानिक नाम (Scientific name of fruit / vegetable etc.) 1.मनुष्य---होमो सैपियंस 2.मेढक---राना टिग्रिना 3.बिल्ली---फेलिस डोमेस्टिका 4.कुत्ता---कैनिस फैमिलियर्स 5.गाय---बॉस इंडिकस 6.भैँस---बुबालस बुबालिस 7.बैल---बॉस प्रिमिजिनियस टारस 8.बकरी---केप्टा हिटमस 9.भेँड़---ओवीज अराइज 10.सुअर---सुसस्फ्रोका डोमेस्टिका 11.शेर---पैँथरा लियो 12.बाघ---पैँथरा टाइग्रिस 13.चीता---पैँथरा पार्डुस 14.भालू---उर्सुस मैटिटिमस कार्नीवेरा 15.खरगोश---ऑरिक्टोलेगस कुनिकुलस 16.हिरण---सर्वस एलाफस 17.ऊँट---कैमेलस डोमेडेरियस 18.लोमडी---कैनीडे 19.लंगुर---होमिनोडिया 20.बारहसिँघा---रुसर्वस डूवासेली 21.मक्खी---मस्का डोमेस्टिका 22.आम---मैग्नीफेरा इंडिका 23.धान---औरिजया सैटिवाट 24.गेहूँ---ट्रिक्टिकम एस्टिवियम 25.मटर---पिसम सेटिवियम 26.सरसोँ---ब्रेसिका कम्पेस्टरीज 27.मोर---पावो क्रिस्टेसस 28.हाथी---एफिलास इंडिका 29.डॉल्फिन---प्लाटेनिस्टा गैँकेटिका 30.कमल---नेलंबो न्यूसिफेरा गार्टन 31.बरगद---फाइकस बेँधालेँसिस 32.घोड़ा---ईक्वस कैबेलस 33.गन्ना---सुगरेन्स औफिसीनेरम 34.प्याज---ऑलियम सिपिया 35.कपास---गैसीपीयम

Classification of Organisms (जीवधारियों का वर्गीकरण)

  Classification of Organisms (जीवधारियों का वर्गीकरण) *    अरस्तू द्वारा समस्त जीवों को दो समूहों में विभाजित किया गया- जन्तु-समूह एवं वनस्पति-समूह । * लीनियस ने भी अपनी पुस्तक Systema Naturae में सम्पूर्ण जीवधारियों को दो जगतों (Kingdoms) पादप जगत ( Plant Kingdom) व जन्तु जगत (Animal Kingdom) में विभाजित किया। *  लीनियस ने वर्गीकरण की जो प्रणाली शुरू की उसी से आधुनिक वर्गीकरण प्रणाली की नींव पड़ी, इसलिए उन्हें आधुनिक वर्गीकरण का पिता (Father of Modern  Taxonomy) कहते हैं। जीवधारियों का पाँच-जगत बगीकरण (Five-Kingdom Classification of Organism): * परम्परागत द्वि-जगत वर्गीकरण का स्थान अन्ततः व्हिटकर (Whittaker) द्वारा सन् 1969 ई. में प्रस्तावित 5-जगत प्रणाली ने ले लिया। इसके अनुसार समस्त जीवों को निम्नलिखित पाँच जगत (Kingdom) में वर्गीकृत किया गया- 1. मोनेरा ( Monera) 2. प्रोटिस्टा (Protista)  3. पादप (Pantae)  4. कवक ( Fungi) एवं  5. जन्तु (Animal)। 1. मोनेरा (Monera):  इस जगत में सभी प्रोकैरियोटिक जीव अर्थात जीवाणु, सायनोबैक्टीरिया तथा आर्की बैक्टीरिया सम्मिलित  किये  जाते हैं। तन्तुम

Genetics (आनुवंशिकी)

Genetics (आनुवंशिकी)  * वे लक्षण जो पीढ़ी दर-पीढ़ी संचरित होते हैं, आनुवंशिक लक्षण कहलाते हैं। आनुवंशिक लक्षणों के पीढ़ी-दर-पीढ़ी संचरण की विधियों और कारणों के अध्ययन को आनुवंशिकी (Genetics) कहते हैं। आनुवंशिकता के बारे में सर्वप्रथम जानकारी आस्ट्रिया निवासी ग्रेगर जोहान मेंडल (1822-1884) ने दी। इसी कारण उन्हें आनुवंशिकता का पिता (Father of Genetics) कहा जाता है। * आनुवंशिकी संबंधी प्रयोग के लिए मेंडल ने मटर के पौधे का चुनाव किया था। *  मेंडल ने पहले एक जोड़ी फिर दो जोड़े विपरीत गुणों की वंशागति का अध्ययन किया, जिन्हें क्रमशः एकसंकरीय तथा द्विसंकरीय क्रॉस कहते हैं।  एक संकरीय क्रॉस (Monohybrid cross) : मेंडल ने एक संकरीय क्रॉस के लिए लम्बे (TT) एवं बौने (tt) पौधों के बीच क्रॉस कराया, तो निम्न परिणाम प्राप्त हुए- *  द्विसंकरीय क्रॉस (Dihybrid cross): मेंडल ने द्विसंकरीय क्रॉस के लिए गोल तथा पीले बीज (RRYY) व हरे एवं झुर्रीदार बीज (rryy) से उत्पन्न पौधों को क्रॉस कराया। इसमें गोल तथा पीला बीज प्रभावी होते हैं। अतः, F2 , पीढ़ी के पौधों का फीनोटाइप अनुपात 9: 3: 3:1 प्राप्त हुए, तथा F2, पीढ

यन्त्र और उनके उपयोग (Instruments and their uses)

यन्त्र और उनके उपयोग (Instruments and their uses) 1) अल्टीमीटर → उंचाई सूचित करने हेतु वैज्ञानिक यंत्र 2) अमीटर → विद्युत् धारा मापन 3) अनेमोमीटर → वायुवेग का मापन 4) ऑडियोफोन → श्रवणशक्ति सुधारना 5) बाइनाक्युलर → दूरस्थ वस्तुओं को देखना 6) बैरोग्राफ → वायुमंडलीय दाब का मापन 7) क्रेस्कोग्राफ → पौधों की वृद्धि का अभिलेखन 8) क्रोनोमीटर → ठीक ठीक समय जान्ने हेतु जहाज में लगायी जाने वाली घड़ी 9) कार्डियोग्राफ → ह्रदयगति का मापन 10) कार्डियोग्राम → कार्डियोग्राफ का कार्य में सहयोगी 11) कैपिलर्स → कम्पास 12) डीपसर्किल → नतिकोण का मापन 13) डायनमो→ यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत उर्जा में बदलना 14) इपिडियास्कोप → फिल्मों का पर्दे पर प्रक्षेपण 15) फैदोमीटर → समुद्र की गहराई मापना 16) गल्वनोमीटर → अति अल्प विद्युत् धारा का मापन 17) गाड्गरमुलर → परमाणु कण की उपस्थिति व् जानकारी लेने हेतु 18) मैनोमीटर → गैस का घनत्व नापना 19) माइक्रोटोम्स → किसी वस्तु का अनुवीक्षनीय परिक्षण हेतु छोटे भागों में विभाजित करता है। 20) ओडोमीटर → कार द्वारा तय की गयी दूरी बताता है। 21) पेरिस्कोप → जल के भीतर से बाहरी वस्तुएं