अन्तःस्रावी तंत्र (Endocrine system) |
अन्तःस्रावी तंत्र (Endocrine system)
(a) बहिःस्रावी ग्रंथियाँ (Exocrine glands): यह नलिका युक्त (duct glands) होती है। इससे एन्जाइम का स्राव होता है। जैसे-दुग्ध ग्रंथि, स्वेद ग्रंथि, अश्रु ग्रंथि, श्लेष्म ग्रंथि, लार ग्रंथि आदि।
(b) अन्तःस्रावी ग्रंथि (Endocrine gland) : यह नलिकाविहीन (ductless) ग्रंथि होती है। इससे हार्मोन का स्राव होता है। यह हार्मोन रक्त प्लाज्मा के द्वारा शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचाया जाता है। जैसे-पीयूष ग्रंथि, अवटुग्रंथि (Thyroid gland), परा अवटुग्रंथि (Para Thyroid gland) आदि ।
मुख्य अन्तःसरावी ग्रंथि एवं उनसे उत्पन्न हार्मोन के कार्य एवं प्रभाव
पीयूष ग्रंथि (Pituitary gland):
> यह कपाल की स्फेनाइड (Sphenoid) हड्डी में एक गड्ढे में स्थित होती है। इसको सेल टर्सिका (Cell turcica) कहते हैं।
> इसका भार लगभग 0.6 gm होता है।
> इसे मास्टर ग्रंथि के रूप में भी जाना जाता है।
पीयूष ग्रंथि से निकलने वाले हार्मोन एवं उनके कार्य
(a) STH होर्मोन (Somatotropic hormone) : यह शरीर की वृद्धि, विशेषतया हड्डियों की वृद्धि का नियंत्रण करती है। STH की अधिकता से भीमकायत्व (Gigantism) अथवा एक्रोमिगली (Acromegaly) विकार उत्पन्न हो जाते हैं, जिसमें मनुष्य की लम्बाई सामान्य से बहुत अधिक बढ़ जाती है। STH की कमी से मनुष्य में बौनापन (Dwarfism) होता है।
(b) TSH हार्मोन (Thyroid Stimulating Hormone) : थायरॉयड ग्रंथि को हार्मोन स्रावित करने के लिए प्रेरित करता है।
(c) ACTH a (Adrenocorticotropic Hormone): a कॉर्टेक्स के स्राव को नियंत्रित करता है।
(d) CTH हा्मोन (Gonadotropic Hormone): यह जनन अंग के कार्यों का नियंत्रण करता है। यह दो प्रकार का है-
1. FSH हार्मोन (Follicle Stimulating Hormone): यह वृषण की शुक्रजनन नलिकाओं में शुक्राणु जनन में सहायता करता है। यह अंडाशय में फॉलिकिल की वृद्धि में मदद करता है।
2. LH हार्मोन (Luteinizing Hormone) : अंतराल कोशिका उत्तेजक हार्मोन-नर में इसके अभाव से अंतराली कोशिकाओं में टेस्टोस्टीरोन हार्मोन एवं मादा में एस्ट्रोजेन (Estrogen) हार्मोन स्रावित होता है।
(e) LTH हार्मोन (दुग्धजनक हार्मोन Lactogenic Hormone); इसका मुख्य कार्य है, शिशु के लिए स्तनों में दुग्ध स्राव उत्पन्न करना।
(f) ADH हार्मोन (Antidiuretic Hormone): इसके कारण छोटी- छोटी रक्त धरमनियों का संकीर्णन होता है एवं रक्तदाब बढ़ जाता है। यह शरीर में जल-संतुलन को बनाये रखने में भी सहायक होता है।
अवटु ग्रंथि (Thyroid gland):
> यह मनुष्य के गले में श्वास-नलीय ट्रेकिया के दोनों ओर लैरिंक्स के नीचे स्थित रहती है।
> इससे निकलने वाला हाम्मोन थाइरॉक्सिन (Thyroxin) एवं ट्रायोडोथाइरोनिन (Triodothyronine) है, इसमें आयोडीन अधिक मात्रा में रहता है।
थाइरॉक्सिन (Thyroxin) के कार्य :
(a) यह कोशिकीय श्वसन की गति को तीव्र करता है।
(b) यह शरीर की सामान्य वृद्धि विशेषतः हड्डियों, बाल इत्यादि के विकास के लिए अनिवार्य है।
(c) जनन-अंगों के सामान्य कार्य इन्हीं की सक्रियता पर आधारित रहते हैं।
(d) पीयूष ग्रंथि के हार्मोन के साथ मिलकर शरीर में जल-संतुलन का नियंत्रण करते हैं।
थाइरॉक्सिन की कमी से होने वाला रोग :
(a) जड़मानवता (Cretinism): यह रोग बच्चों में होता है। इसमें बच्चों का मानसिक एवं शारीरिक विकास अवरुद्ध हो जाता है ।
(b) मिक्सिडमा : यौवनावस्था में होने वाले इस रोग में उपापचय भली- भाँति नहीं हो पाता, जिससे हृदय स्पंदन तथा रक्त-चाप कम हो जाता है।
(c) हाइपोथायरॉयडिज्म (Hypothyroidism) लम्बे समय तक इस हार्मोन की कमी के कारण यह रोग होता है। इस रोग के कारण सामान्य जनन -कार्य संभव नहीं हो पाता। कभी-कभी इस रोग के कारण मनुष्य गूँगा एवं बहरा हो जाता है।
(d) घेघा (Goitre): भोजन में आयोडीन की कमी से यह रोग उत्पन्न हो जाता है। इस रोग में थायरॉयड ग्रंथि के आकार में बहुत वृद्धि हो जाती है।
थायरॉक्सिन के आधिक्य से होने वाला रोग
(a) टॉक्सिक ग्वाइटर (Toxic goitre) : इसमें हृदय गति तीव्र हो जाता है, रक्त-चाप बढ़ जाता है, श्वसन-दर तीव्र हो जाती है।
(b) एक्सोप्यैलमिया (Exophthalmia): इस रोग में आँख फूलकर नेत्रकोटर से बाहर निकल आती है।
पराअवटु ग्रंथि (Parathyroid gland)
यह गला में अवटु ग्रंथि (Thyroid gland) के ठीक पीछे स्थित होता है। इससे दो हाम्मोन स्रावित होते हैं-
(a) पैराथायरॉयड हार्मोन (Parathyroid hormone) : यह हार्मोन तब स्रावित होता है। जब रुधिर में कैल्शियम की कमी हो जाती है।
(b) कैल्सिटोनिन (Calcitonin): जब रुधिर में कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है तब यह हार्मोन मुक्त होता है। अर्थात् पराअवटु ग्रंथि से निकलने वाला हार्मोन रुधिर में कैल्शियम की मात्रा को नियंत्रण करता है।
थाइमस ग्रंथि (Thymus Gland): यह अन्तःस्रावी ग्रंथि वक्षीय गुहा (Thoracic Cavity) में उरोस्थि (स्टर्नम) के पीछे श्वास प्रणाली (Trachea) के विभाजन के स्तर पर स्थित एक लिम्फॉयड अंग है। इसमें दो खण्ड (Lobes) होते हैं जो संयोजी ऊतक की एक परत से आपस में जुड़ें होते हैं। इसमें बाहर की ओर कॉटेक्स होता है जिसमें अनगिनत संख्या में लिम्फोसाइट्स मौजूद होती है तथा अन्दर मेड्यूला होता है। मेड्यूला में लिम्फोसाइट्स की संख्या कुछ कम रहती है एवं कोशिकाओं के गुच्छे (जिसे थाइमिक या हैसल्स कोशिकाएं कहते हैं) भी रहते हैं।
यह ग्रंथि उम्र के अनुसार अलग-अलग आकार की होती है जब तक बच्चे की उम्र दो वर्ष की नहीं हो जाती तब तक यह बढ़ती रहती है और इसके बाद यह सिकुड़ती जाती है। इसीलिए वयस्क होने पर यह सिर्फ तन्तुमय अवशेष की अवस्था में पायी जाती है। थाइमस ग्रंथि से थाइमोसिन नामक पेप्टाइड हार्मोन का स्राव होता है जो मुख्य रूप से टी-कोशिकाओं का निर्माण करती है। यह कोशिकाएँ शरीर की रोग क्षमता बनाये रखने में खास भूमिका अदा करती है। यानी थाइमस ग्रंथि प्रतिरक्षा तंत्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस ग्रंथि से स्रावित होने वाले स्राव का प्रभाव जनन इन्द्रियों के विकास एवं यौवन के आरंभ पर पड़ता है। हडियों के विकास होने तक यह उनके विकास पर नियंत्रण रखती है।
अधिवृक्क ग्रंथि (Adrenal gland):
> यह वृक्क के ऊपर स्थित होती है। इसका मुख्य कार्य तनाव की स्थिति में हार्मोन निकालना है।
> अधिवृक्क ग्रंथि से निकलने वाले हार्मोन को लड़ो एवं उड़ो (fight and flight) हार्मोन कहा जाता है।
> इस ग्रंथि के दो भाग होते हैं-
1. बाहरी भाग कॉर्टेक्स (Cortex) तथा
2. अंदरुनी भाग मेड्ला (Medulla)
कॉर्टेक्स से निकलने वाला हार्मोन एवं कार्य
(a) ग्लूकोकॉर्टिक्वायड्स (Glucocorticoids): ये कार्बोहाइड्रेट,प्रोटीन एवं वसा उपापचय को नियंत्रित करता है।
(b) मिनरलोकॉर्टिक्वायड्स (Mineralocorticoids) इसका मुख्य कार्य वृक्क नलिकाओं द्वारा लवण के पुनः अवशोषण एवं शरीर में अन्य लवणों की मात्राओं का नियंत्रण करना है।
(c) लिंग हाम्मोन (Sex hormone) : यह बाह्य लिंगों बालों के आने का प्रतिमान एवं यौन आचरण को नियंत्रित करते हैं।
नोट : कॉर्टेक्स (Cortex) : जीवन में नितांत आवश्यक है। यदि यह शरीर से बिल्कुल निकाल दिया जाए तो मनुष्य केवल एक या दो सप्ताह ही जीवित रह सकेगा । इसमें विकृती हो जाने पर उपापचयी प्रक्रमों में गड़बड़ी उत्पन्न हो जाती है; इस रोग को एडीसन रोग (Addison's disease) कहते हैं।
मेडूला (Medulla):
> मेडूला द्वारा स्रावित हार्मोन एपिनेफ्रीन (Epinephrine) या एड्रिनलीन और नॉरएपिनेफ्रीन (Norepinephrine) या नॉरएड्रिनलीन दोनों एमीनो अम्ल हैं। इन्हें सम्मिलित रूप में कैटेकॉलमीनस कहते हैं। एड्रिनलीन और नॉरएड्रिनलीन किसी भी प्रकार के दबाव या आपातकालीन स्थिति में अधिकता में तेजी से स्रावित होते हैं, इसी कारण ये आपातकालीन हाम्मोन या युद्ध हार्मोन या फ्लाइट हार्मोन कहलाते हैं। ये हार्मोन सक्रियता, आँखों की पुतलियों का फैलाव, रोंगटे खड़े होना, पसीना आदि को बढ़ाते हैं। दोनों हार्मोन हृदय की धड़कन, हृदय संकुचन की क्षमता और श्वसन दर को बढ़ाते हैं। इसके कारण रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है। ये लिपिड एवं प्रोटीन के विखंडन को भी प्रेरित करते हैं।
> एपिनेफ्रीन हृदय स्पंदन एकाएक रुक जाने पर उसे पुनः चालु करने में सहायक होता है।
> उत्तेजना के समय ऐडरिनेलिन हार्मोन अधिक मात्रा में उत्स्जित होता है (क्रोध, भय एवं खतरे के समय सक्रिय होता है)।
जनन-ग्रंथि (Gonads):
(a) अंडाशय (Ovary): इससे निम्न हार्मोन का स्राव होता है
1. एस्ट्रोजेन (Astrogen): यह अंडवाहिनी (Oviduct) के परिवर्धन को पूर्ण करता है।
2. प्रोजेस्टेरॉन (Progesteron): यह एस्ट्रोजेन से सहयोग कर स्तन-वृद्धि करने में सहायता करता है।
3. रिलैक्सिन (Relaxin): गर्भावस्था में यह अंडाशय, गर्भाशय व अपरा में उपस्थित रहता है। यह हॉर्मोन प्यूबिक सिंफाइसिक्स (pubic symphysix)को मुलायम करता है और यह गर्भाशय ग्रीवा (uterine cervix) को चौड़ा करता है, ताकि बच्चा आसानी से पैदा हो सके।
(b) वृषण (Testes) : इससे निकलने वाले हार्मोन को टेस्टोस्टीरॉन कहते हैं। यह पुरुषोचित लैंगिक लक्षणों के परिवर्धन को एवं यौन-आचरण को प्रेरित करता है।
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