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Pollution (प्रदूषण)

Pollution (प्रदूषण


















    वायु, जल या भूमि (अर्थात् पर्यावरण) के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में होने वाले ऐसे अनचाहे परिवर्तन जो मनुष्य एवं अन्य जीवधारियों, उनकी जीवन परिस्थितियों, औद्योगिक प्रक्रियाओं एवं सांस्कृतिक उपलब्धियों के लिए हानिकारक हों, प्रदूषण कहलाते हैं। प्रदूषण मुख्यतया निम्नलिखित प्रकार के हैं-
1. वायु प्रदूषण, 
2. जल प्रदूषण, 
3. ध्वनि प्रदूषण, 
4. मृदा प्रदूषण, 
5. नाभिकीय प्रदूषण

1. वायु प्रदूषण : जब प्रदूषण वायुमंडल में उपस्थित होता है और वायुमंडल के अवयवों की अनुकूलतम मात्रा में परिवर्तन आ जाता है, तब इसे वायु प्रदूषण कहते हैं। वायु प्रदुषण के संदर्भ में, पी.एम (PM) का तात्पर्य कणिकीय पदार्थ (Particulate Matter) और एस.पी.एम (SPM) का तात्पर्य निलंबित कणकीय Taref (Suspended Particulate, Matter) |
*  प्रमुख वायु प्रदूषक : कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) सल्फर डाइऑक्साइड (SO.), हाइड्रोजन सल्फाइड (H.S), हाइड्रोजन फ्लूओराइड (HF), नाइट्रोजन के ऑक्साइड (NO तथा NO.), हाइड्रोकार्बन, अमोनिया (NH,.)तम्बाकू का धुआँ, फ्लूओराइड्स धूल तथा धुएँ के कण, एरोसोल्स इत्यादि । 
* वायु-प्रदूषक ऐसबेस्टॉस धूल फेफड़ा को, सीसा उदर को, पारा रक्त धाराओं को एवं कार्बन मोनोऑक्साइड मस्तिष्क को प्रभावित करता है।
*  सल्फरडाइ ऑक्साइड (SO) सल्फरद्राइ ऑक्साइड (SO,) नाइट्रोजन ऑक्साइड (NO) वातावरणीय जल के साथ क्रिया करके सल्फ्यूरिक अश्ल (Sulphuric acid) या सल्फ्यूरस अम्ल (Sulphurus acid) तथा नाइट्रिक अम्ल (nitric acid) का निर्माण करते हैं। वर्षा-जल के साथ ये अम्ल पृथ्वी पर आ जाते हैं, इसे ही अम्लवर्षा कहते हैं।

पर्यावरण संस्थान
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड :- नई दिल्ली
केन्द्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण:- नई दिल्ली
जी. बी. पंत हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान:- अल्मोडा
भारतीय वन अनुसंधान एवं शिक्षण परिषद:- देहरादून
भारतीय वन प्रबंधन संस्थान:- भोपाल
वन आनुवंशिकी तथा वृक्ष प्रजनन संस्थान:- कोयंबटूर
वन उत्पादकता केन्द्र:- राँची
राष्ट्रीय विज्ञान औद्योगिकी संस्थान:- फरीदाबाद
भारतीय वानस्पतिक सर्वेक्षण:- कोलकाता
भारतीय प्राणी विज्ञान सर्वेक्षण:- कोलकाता
*  3 दिसम्बर, 1984 ई. को भोपाल की यूनियन कार्बाइड फैक्टरी (जो उर्वरक बनाती थी) में मिथाइल आइसोसायनाइड (MIC) के कारण दुर्घटना हुई थी।

2. जल प्रदूषण (Water pollution): जल से अवांछनीय कारकों या पदार्थों के जुड़ जाने को जल-प्रदूषण कहते हैं।
*  पृथ्वी पर उपलब्ध जल की मात्रा का केवल 2.5-3% ही स्वच्छ है।
*  जल प्रदूषण के ख्त्रोत: जल प्रदूषण मुख्यतः कार्बोनेट, क्लोराइड, सोडियम और बाई कार्बोनेट, मैग्नीशियम व पोटैशियम के सल्फेट्स, अमोनिया, कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बन-डाइऑक्साइड तथा औद्योगिक अवशिष्टों के जल में घुल जाने से होता है समुद्रजलीय प्रदूषण सल्फरयुक्त भारी धातुओं, हाइड्रोकार्बन, पेट्रोलियम पदार्थों के जल में घुलने से होता है।
आयल स्पिल्स (Oil spills): ऑयल टैंकरों से रिसा हुआ तेल सागरीय जल की सतह पर शीघ्रता से फैल जाता है। इस तरह जलीय सतह पर फैले तेल को ऑयल स्पिल्स कहते हैं।
*  पारा युक्त जल पीने से मिनीमाता रोग हो जाता है।
* एसबेस्टस के रेशों से युक्त जल के सेवन करने से असबेस्टोसिस नामक जानलेवा रोग हो जाता है।
नोट : नदियों में जल प्रदूषण की माप ऑक्सीजन की घुली हुई मात्रा से करते हैं।

3. ध्वनि प्रदूषण (Sound pollution) वातावरण में चारों ओर फैली अनिच्छित या अवांछनीय ध्वनि को ध्यनि-प्रदूषण कहते हैं।
*  ध्वनि प्रदूषण के ख्रोरोत: ध्वनि-प्रदूषण का स्रोत ऊँची आवाज या शोर है, चाहे वह किसी प्रकार उत्पन्न हुआ हो।

4. मृदा-प्रदूषण (Soil pollution): भूमि का विकृत रूप मृदा प्रदूषण कहलाता है।
*  मृदा-प्रदूषण के स्तरोत : अम्लीय वर्षा, खानों से प्राप्त जल, उर्वरकों तथा कीटनाशक रसायन का अत्यधिक प्रयोग, कूड़ा-करकट, औद्योगिक अपशिष्ट, खुले खेतों में मल-विसर्जन आदि मृदा-प्रदूषण के   मुख्य स्रोत हैं।

5. नाभिकीय प्रदूषण (Nuclear pollution) यह प्रदूषण रेडियो एक्टिव किरणों से उत्पन्न होता है। रेडियो एक्टिव प्रदूषण के निम्न स्रोत हो सकते हैं--
1. चिकित्सा में उपयोग होने वाली किरणों से प्राप्त प्रदूषण।
2. परमाणु भट्ठियों में प्रयुक्त होने वाले ईंधन से उत्पन्न प्रदूषण।
3. नाभिकीय शस्त्रों के उपयोग से उत्पन्न प्रदूषण ।
4. परमाणु बिजलीघरों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों से उत्पन्न प्रदूषण ।
5. शोध -कार्यों में प्रयुक्त रेडियोधर्मी पदायों से उत्पन्न प्रदूषण।
6. सूर्य की पराबैंगनी किरणों से उत्पन्न प्रदूषण।
नोट : अमेरिका में 28 मार्च, 1979 ई. को श्री माइल आइलैण्ड रिएक्टर में भीषण दुर्घटना हुई। रिएक्टर में होने वाली दुर्घटनाओं में सबसे अधिक हानिकारक व भीषण दुर्घटना 26 अप्रैक, 1966 ई. को यूक्रेन के चेरनोबिल स्थित एक रिएक्टर में घटी जिसमें एक
रिएक्टर इकाई की छत गल गई थी।
 

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Ecology (पारिस्थितिकी)

Ecology (पारिस्थितिकी) * जीव विज्ञान की उस शाखा को जिसके अन्तर्गत जीवधारियों और उनके वातावरण के पारस्परिक संबंधों का अध्ययन करते हैं, उसे पारिस्थितिकी कहते हैं। *  एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र या वास-स्थान में निवास करने वाली विभिन्न समष्टियों (Population) को जैविक समुदाय (Biotic community) कहते हैं। *  रचना एवं कार्य की दृष्टि से विभिन्न जीवों और वातावरण की मिली-जुली इकाई को पारिस्थितिक तंत्र (Ecosystem) कहते हैं। सर्वाधिक स्थायी पारिस्थितिक तंत्र महासागर है। * पारिस्थितिक तंत्र या पारितंत्र (Ecaystem or ecological syatem) शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम टेन्सले नामक वैज्ञानिक ने किया था।  * संरचनात्मक दृष्टि से प्रत्येक पारिस्थितिक तंत्र दो घटकों का बना होता है  A)  जैविक घटक,  B)  अजैविक घटक A. जैविक घटक  (Biotic components): इसे तीन भागों में विभक्त किया गया है- 1. उत्पादक  2. उपभोक्ता 3. अपघटक 1. उत्पादक : वे घटक जो अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। जैसे-हरे पीधे। 2. उपभोक्ता : वे घटक जो उत्पादक द्वारा बनाये गये भोज्य पदार्थों का उपभोग करते हैं। उपभोक्ता के तीन प्रकार हैं- (a) प्राथमिक उपभोक्ता

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Genetics (आनुवंशिकी)

Genetics (आनुवंशिकी)  * वे लक्षण जो पीढ़ी दर-पीढ़ी संचरित होते हैं, आनुवंशिक लक्षण कहलाते हैं। आनुवंशिक लक्षणों के पीढ़ी-दर-पीढ़ी संचरण की विधियों और कारणों के अध्ययन को आनुवंशिकी (Genetics) कहते हैं। आनुवंशिकता के बारे में सर्वप्रथम जानकारी आस्ट्रिया निवासी ग्रेगर जोहान मेंडल (1822-1884) ने दी। इसी कारण उन्हें आनुवंशिकता का पिता (Father of Genetics) कहा जाता है। * आनुवंशिकी संबंधी प्रयोग के लिए मेंडल ने मटर के पौधे का चुनाव किया था। *  मेंडल ने पहले एक जोड़ी फिर दो जोड़े विपरीत गुणों की वंशागति का अध्ययन किया, जिन्हें क्रमशः एकसंकरीय तथा द्विसंकरीय क्रॉस कहते हैं।  एक संकरीय क्रॉस (Monohybrid cross) : मेंडल ने एक संकरीय क्रॉस के लिए लम्बे (TT) एवं बौने (tt) पौधों के बीच क्रॉस कराया, तो निम्न परिणाम प्राप्त हुए- *  द्विसंकरीय क्रॉस (Dihybrid cross): मेंडल ने द्विसंकरीय क्रॉस के लिए गोल तथा पीले बीज (RRYY) व हरे एवं झुर्रीदार बीज (rryy) से उत्पन्न पौधों को क्रॉस कराया। इसमें गोल तथा पीला बीज प्रभावी होते हैं। अतः, F2 , पीढ़ी के पौधों का फीनोटाइप अनुपात 9: 3: 3:1 प्राप्त हुए, तथा F2, पीढ

Botany (वनस्पति विज्ञान)

Botany (वनस्पति विज्ञान)  * विभिन्न प्रकार के पेड़, पौधों तथा उनके क्रियाकलापों के अध्ययन को वनस्पति विज्ञान (Botany) कहते हैं। * (थियोफे्टस(Theophrastus) को वनस्पति विज्ञान का जनक कहा   जाता है। पादपों का वर्गीकरण (Classification of Plants); * एकलर (Eichler) ने 1883 ई. में वनस्पति जगत का वर्गीकरण निम्न रूप से किया जाता है। अपुष्पोद्भिद् पौधा (Cryptogamus); * इस वर्ग के पौधों में पुष्प तथा बीज नहीं होता है। इन्हें निम्न समूह में बाँटा गया है- थेलोफाइटा (Thalophyta): * यह वनस्पति जगत का सबसे बड़ा समूह है। इस समूह के पौधों का शरीर सुकाय (Thalus) होता है, अर्थात् पौधे जड़, तना एवं पत्ती आदि में विभक्त नहीं होते। इसमें संवहन ऊतक नहीं होता है। शैवाल (Algae) *  शैवालों के अध्ययन को फाइकोलॉजी (Phycology) कहते हैं। *  शैवाल प्रायः पर्णहरित युक्त, संवहन ऊतक रहित, आत्मपोषी (Autotrophic) होते हैं। इनका शरीर सुकाय सदृश होता है। लाभदायक शैवाल 1. भोजन के रूप में : फोरफाइरा, अल्बा, सरगासन, लेमिनेरिया, नॉस्टॉक आदि । 2. आयोडीन बनाने में : लेमिनेरिया) फ्यूकस, एकलोनिया आदि। 3. खाद के रूप में: नॉस्टॉक, एन

Classification of Organisms (जीवधारियों का वर्गीकरण)

  Classification of Organisms (जीवधारियों का वर्गीकरण) *    अरस्तू द्वारा समस्त जीवों को दो समूहों में विभाजित किया गया- जन्तु-समूह एवं वनस्पति-समूह । * लीनियस ने भी अपनी पुस्तक Systema Naturae में सम्पूर्ण जीवधारियों को दो जगतों (Kingdoms) पादप जगत ( Plant Kingdom) व जन्तु जगत (Animal Kingdom) में विभाजित किया। *  लीनियस ने वर्गीकरण की जो प्रणाली शुरू की उसी से आधुनिक वर्गीकरण प्रणाली की नींव पड़ी, इसलिए उन्हें आधुनिक वर्गीकरण का पिता (Father of Modern  Taxonomy) कहते हैं। जीवधारियों का पाँच-जगत बगीकरण (Five-Kingdom Classification of Organism): * परम्परागत द्वि-जगत वर्गीकरण का स्थान अन्ततः व्हिटकर (Whittaker) द्वारा सन् 1969 ई. में प्रस्तावित 5-जगत प्रणाली ने ले लिया। इसके अनुसार समस्त जीवों को निम्नलिखित पाँच जगत (Kingdom) में वर्गीकृत किया गया- 1. मोनेरा ( Monera) 2. प्रोटिस्टा (Protista)  3. पादप (Pantae)  4. कवक ( Fungi) एवं  5. जन्तु (Animal)। 1. मोनेरा (Monera):  इस जगत में सभी प्रोकैरियोटिक जीव अर्थात जीवाणु, सायनोबैक्टीरिया तथा आर्की बैक्टीरिया सम्मिलित  किये  जाते हैं। तन्तुम

फल/फुल/सब्जी आदि का वैज्ञानिक नाम (Scientific name of fruit / vegetable etc.)

  फल/फुल/सब्जी आदि का वैज्ञानिक नाम (Scientific name of fruit / vegetable etc.) 1.मनुष्य---होमो सैपियंस 2.मेढक---राना टिग्रिना 3.बिल्ली---फेलिस डोमेस्टिका 4.कुत्ता---कैनिस फैमिलियर्स 5.गाय---बॉस इंडिकस 6.भैँस---बुबालस बुबालिस 7.बैल---बॉस प्रिमिजिनियस टारस 8.बकरी---केप्टा हिटमस 9.भेँड़---ओवीज अराइज 10.सुअर---सुसस्फ्रोका डोमेस्टिका 11.शेर---पैँथरा लियो 12.बाघ---पैँथरा टाइग्रिस 13.चीता---पैँथरा पार्डुस 14.भालू---उर्सुस मैटिटिमस कार्नीवेरा 15.खरगोश---ऑरिक्टोलेगस कुनिकुलस 16.हिरण---सर्वस एलाफस 17.ऊँट---कैमेलस डोमेडेरियस 18.लोमडी---कैनीडे 19.लंगुर---होमिनोडिया 20.बारहसिँघा---रुसर्वस डूवासेली 21.मक्खी---मस्का डोमेस्टिका 22.आम---मैग्नीफेरा इंडिका 23.धान---औरिजया सैटिवाट 24.गेहूँ---ट्रिक्टिकम एस्टिवियम 25.मटर---पिसम सेटिवियम 26.सरसोँ---ब्रेसिका कम्पेस्टरीज 27.मोर---पावो क्रिस्टेसस 28.हाथी---एफिलास इंडिका 29.डॉल्फिन---प्लाटेनिस्टा गैँकेटिका 30.कमल---नेलंबो न्यूसिफेरा गार्टन 31.बरगद---फाइकस बेँधालेँसिस 32.घोड़ा---ईक्वस कैबेलस 33.गन्ना---सुगरेन्स औफिसीनेरम 34.प्याज---ऑलियम सिपिया 35.कपास---गैसीपीयम

पाचन-तंत्र (Digestive system)

पाचन-तंत्र (Digestive system) पाचन-तंत्र (Digestivesystem): भोजन के पाचन की सम्पूर्ण प्रक्रिया पाँच अवस्थाओं से गुजरता है- 1. अन्तर्ग्रहण ( Ingestion) 2. पाचन (Digestion) 3. अवशोषण (Absorption) 4. स्वांगीकरण (Assimilation)  5. मल परित्याग (Defacation) 1. अन्तर्ग्रहन (Ingestion):  1. भोजन को मुख में लेना अन्तर्ग्रहन कहलाता है। 2. पाचन (Digestion): मनुष्य में भोजन का पाचन मुख से प्रारम्भ हो जाता है और यह छोटी आांत तक जारी रहता है। मुख में स्थित लार ग्रंथियों से निकलने वाला एन्जाइम टायलिन भोजन में उपस्थित मंड (Starch) को माल्टोज शर्करा में अपघटित कर देता है, फिर माल्टेज नामक एन्जाइम माल्टोज शकर्करा को ग्लूकोज में परिवर्तित कर देता है। लाइसोजाइम नामक एन्जाइम भोजन में उपस्थित हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट कर देता है। इसके अतिरिक्त लार में उपस्थित शेष पदार्थ बफर कार्य करते हैं। इसके बाद भोजन आमाशय में पहुँचता है। आमाशय (Stomach) में पाचन >  आमाशय में भोजन लगभग चार घंटे तक रहता है। भोजन के आमाशय में पहुँचने पर पाइलोरिक ग्रंथियों से जठर रस (Gastric Juice)निकलता है। यह हल्के पीले रंग का अम्लीय

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कोशिका विज्ञान (cell Biology)

  कोशिका विज्ञान ( cell Biology) जीवद्रव्य (Protoplasm): *  जीवद्रव्य का नामकरण पुरकिंजे  (Purkenje) के द्वारा सन् 1839 ई. में किया गया। * यह एक तरल गाढ़ा रंगहीन, पारभासी, लसलसा, वजनयुक्त पदार्थ है। जीव की सारी जैविक क्रियाएँ इसी के द्वारा होती हैं। इसीलिए जीवद्रव्य (Protoplasm)को जीवन का भौतिक आधार कहते हैं। *  जीवद्रव्य दो भागों में बँटा होता है- 1. कोशिका द्रव्य (Cytoplasm) :  यह कोशिका में केन्द्रक एवं कोशिका झिल्ली के बीच रहता है। 2  केन्द्रक द्रव्य (Nucleoplasm):  यह कोशिका में केन्द्रक के अन्दर रहता है। * जीवद्रव्य का 99% भाग निम्न चार तत्वों से मिलकर बना होता है- 1. ऑक्सीजन (76%) 2. कार्बन (10.5%) 3. हाइड्रोजन (10%) 4. नाइट्रोजन (2.5%) * जीवद्रव्य का लगभग 80% भाग जल होता है। * जीवद्रव्य में अकार्बनिक एवं कार्बनिक यौगिकों का अनुपात 81 : 19 का होता है। कोशिका (Cell): *  कोशिका (Cell) जीवन की सबसे छोटी कार्यात्मक एवं संरचनात्मक इकाई है। एन्टोनवान लिवेनहाक ने पहली बार कोशिका को देखा व इसका वर्णन किया था। * कोशिका के अध्ययन के विज्ञान को Cytology कहा जाता है। * कोशिकाओं का औसत संगठन

जीव विज्ञान (Biology)

जीव विज्ञान (Biology)      जीव विज्ञान (Biology): यह विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अन्तर्गत जीवधारियों का अध्ययन किया जाता है। * Biology-Bio का अर्थ है-जीवन (Iife) और Logos का अर्थ है- अध्ययन (study) अर्थात् जीवन का अध्ययन ही Biology कहलाता है। * जीव विज्ञान शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम लैमार्क (Lamarck) (फ्रांस) एवं ट्रेविरेनस (Theviranus) (जर्मनी) नामक वैज्ञानिकों ने 1801 ई. में किया था। जीव विज्ञान की कुछ शाखाएँ एपीकल्चर(Apiculture)                       मधुमक्खी पालन का अध्ययन

Ecology (पारिस्थितिकी)

Ecology (पारिस्थितिकी) * जीव विज्ञान की उस शाखा को जिसके अन्तर्गत जीवधारियों और उनके वातावरण के पारस्परिक संबंधों का अध्ययन करते हैं, उसे पारिस्थितिकी कहते हैं। *  एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र या वास-स्थान में निवास करने वाली विभिन्न समष्टियों (Population) को जैविक समुदाय (Biotic community) कहते हैं। *  रचना एवं कार्य की दृष्टि से विभिन्न जीवों और वातावरण की मिली-जुली इकाई को पारिस्थितिक तंत्र (Ecosystem) कहते हैं। सर्वाधिक स्थायी पारिस्थितिक तंत्र महासागर है। * पारिस्थितिक तंत्र या पारितंत्र (Ecaystem or ecological syatem) शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम टेन्सले नामक वैज्ञानिक ने किया था।  * संरचनात्मक दृष्टि से प्रत्येक पारिस्थितिक तंत्र दो घटकों का बना होता है  A)  जैविक घटक,  B)  अजैविक घटक A. जैविक घटक  (Biotic components): इसे तीन भागों में विभक्त किया गया है- 1. उत्पादक  2. उपभोक्ता 3. अपघटक 1. उत्पादक : वे घटक जो अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। जैसे-हरे पीधे। 2. उपभोक्ता : वे घटक जो उत्पादक द्वारा बनाये गये भोज्य पदार्थों का उपभोग करते हैं। उपभोक्ता के तीन प्रकार हैं- (a) प्राथमिक उपभोक्ता

Botany (वनस्पति विज्ञान)

Botany (वनस्पति विज्ञान)  * विभिन्न प्रकार के पेड़, पौधों तथा उनके क्रियाकलापों के अध्ययन को वनस्पति विज्ञान (Botany) कहते हैं। * (थियोफे्टस(Theophrastus) को वनस्पति विज्ञान का जनक कहा   जाता है। पादपों का वर्गीकरण (Classification of Plants); * एकलर (Eichler) ने 1883 ई. में वनस्पति जगत का वर्गीकरण निम्न रूप से किया जाता है। अपुष्पोद्भिद् पौधा (Cryptogamus); * इस वर्ग के पौधों में पुष्प तथा बीज नहीं होता है। इन्हें निम्न समूह में बाँटा गया है- थेलोफाइटा (Thalophyta): * यह वनस्पति जगत का सबसे बड़ा समूह है। इस समूह के पौधों का शरीर सुकाय (Thalus) होता है, अर्थात् पौधे जड़, तना एवं पत्ती आदि में विभक्त नहीं होते। इसमें संवहन ऊतक नहीं होता है। शैवाल (Algae) *  शैवालों के अध्ययन को फाइकोलॉजी (Phycology) कहते हैं। *  शैवाल प्रायः पर्णहरित युक्त, संवहन ऊतक रहित, आत्मपोषी (Autotrophic) होते हैं। इनका शरीर सुकाय सदृश होता है। लाभदायक शैवाल 1. भोजन के रूप में : फोरफाइरा, अल्बा, सरगासन, लेमिनेरिया, नॉस्टॉक आदि । 2. आयोडीन बनाने में : लेमिनेरिया) फ्यूकस, एकलोनिया आदि। 3. खाद के रूप में: नॉस्टॉक, एन

प्राणी विज्ञान (Life Science)

प्राणी विज्ञान (Life Science) प्राणी विज्ञान : इसके अन्तर्गत जन्तुओं तथा उनके कार्यकलापों  का अध्ययन किया जाता है। 1. जन्तु जगत का बर्गीकरण (Classification of animal kingdom): > संसार के समस्त जन्तु जगत को दो उपजगत में विभक्त किया गया है-1. एककोशिकीय प्राणी, 2. बहुकोशिकीय प्राणी। एककोशिकीय प्राणी एक ही संघ प्रोटोजोआ में रखे गये जबकि बहुकोशिकीय  प्राणियों को 9 संघों में विभाजित किया गया। स्टोरर व यूसिन्जर  के अनुसार जन्तुओं का वर्गीकरण- संघ प्रोटोजोआ (Protozoa): प्रमुख लक्षण 1. इनका शरीर केवल एककोशिकीय होता है। 2. इनके जीवद्रव्य में एक या अनेक केन्द्रक पाये जाते हैं। 3. प्रचलन पदाभों, पक्ष्मों या कशाभों के द्वारा होता है। 4. स्वतंत्र जीवी एवं परजीवी दोनों प्रकार के होते हैं। 5. सभी जैविक क्रियाएँ (भोजन, पाचन, श्वसन, उत्सर्जन, जनन) एककोशिकीय शरीर के अन्दर होती है। 6. श्वसन एवं उत्सर्जन कोशिका की सतह से विसरण के द्वारा होते हैं। प्रोटोजोआ एण्ट अमीबा हिस्टोलिटिका का संक्रमण मनुष्य में 30-40 वर्षों के लिए बना रहता है। संघ पोरिफेरा (Porifera): > इस संघ के सभी जन्तु खारे जल में पाये जात

मानव रोग (Human disease)

मानव रोग (Human disease) परजीवी protozoa  से होने वाले रोग।  मेक्कुलाच ने 1827 ई. में सर्वप्रथम मलेरिया शब्द का प्रयोग किया। मलेरिया रोग की पुष्टि रक्त की बूँद तथा पी एफ मामलोंके लिए आर. डी. किट्स सूक्ष्मदर्शी जाँच द्वारा की जाती है। >लेवरन (1880 ई.) ने मलेरिया से पीड़ित व्यक्ति के रुधिर में मलेरिया परजीवी प्लाज्मोडियम की खोज की । > रोनाल्ड रास (1887 ई.) ने मलेरिया परजीवी द्वारा मलेरिया होने की पुष्टि की तथा बताया कि मच्छर इसका वाहक है। > मलेरिया रोग में लाल रुधिराणु नष्ट हो जाते हैं तथा रक्त में कमी आ जाती है। इसके उपचार में कुनैन, पेलुड्रीन, क्लोरोक्वीन, प्रीमाक्वीन औषधि लेनी चाहिए। > 1882 ई. में जर्मन वैज्ञानिक रॉबर्ट कोच ने कॉलरा एवं टी. बी. के जीवाणुओं की खोज की। > लुइ पाश्चर ने रेबीज का टीका एवं दूध का पाश्चुराइजेशन की खोज की। > बच्चों को DPT टीका उन्हें डिप्थीरिया, काली खाँसी एवं टिटनेस रोग प्रतिरक्षीकरण (Immunization) के लिए दिया जाता है। विषाणु virus  से होने वाली बीमारी। > जिका बुखार, जिसे जिका रोग के नाम से जाना जाता है, जिका।वायरस के कारण उत्पन्न होता ह

फल/फुल/सब्जी आदि का वैज्ञानिक नाम (Scientific name of fruit / vegetable etc.)

  फल/फुल/सब्जी आदि का वैज्ञानिक नाम (Scientific name of fruit / vegetable etc.) 1.मनुष्य---होमो सैपियंस 2.मेढक---राना टिग्रिना 3.बिल्ली---फेलिस डोमेस्टिका 4.कुत्ता---कैनिस फैमिलियर्स 5.गाय---बॉस इंडिकस 6.भैँस---बुबालस बुबालिस 7.बैल---बॉस प्रिमिजिनियस टारस 8.बकरी---केप्टा हिटमस 9.भेँड़---ओवीज अराइज 10.सुअर---सुसस्फ्रोका डोमेस्टिका 11.शेर---पैँथरा लियो 12.बाघ---पैँथरा टाइग्रिस 13.चीता---पैँथरा पार्डुस 14.भालू---उर्सुस मैटिटिमस कार्नीवेरा 15.खरगोश---ऑरिक्टोलेगस कुनिकुलस 16.हिरण---सर्वस एलाफस 17.ऊँट---कैमेलस डोमेडेरियस 18.लोमडी---कैनीडे 19.लंगुर---होमिनोडिया 20.बारहसिँघा---रुसर्वस डूवासेली 21.मक्खी---मस्का डोमेस्टिका 22.आम---मैग्नीफेरा इंडिका 23.धान---औरिजया सैटिवाट 24.गेहूँ---ट्रिक्टिकम एस्टिवियम 25.मटर---पिसम सेटिवियम 26.सरसोँ---ब्रेसिका कम्पेस्टरीज 27.मोर---पावो क्रिस्टेसस 28.हाथी---एफिलास इंडिका 29.डॉल्फिन---प्लाटेनिस्टा गैँकेटिका 30.कमल---नेलंबो न्यूसिफेरा गार्टन 31.बरगद---फाइकस बेँधालेँसिस 32.घोड़ा---ईक्वस कैबेलस 33.गन्ना---सुगरेन्स औफिसीनेरम 34.प्याज---ऑलियम सिपिया 35.कपास---गैसीपीयम

Classification of Organisms (जीवधारियों का वर्गीकरण)

  Classification of Organisms (जीवधारियों का वर्गीकरण) *    अरस्तू द्वारा समस्त जीवों को दो समूहों में विभाजित किया गया- जन्तु-समूह एवं वनस्पति-समूह । * लीनियस ने भी अपनी पुस्तक Systema Naturae में सम्पूर्ण जीवधारियों को दो जगतों (Kingdoms) पादप जगत ( Plant Kingdom) व जन्तु जगत (Animal Kingdom) में विभाजित किया। *  लीनियस ने वर्गीकरण की जो प्रणाली शुरू की उसी से आधुनिक वर्गीकरण प्रणाली की नींव पड़ी, इसलिए उन्हें आधुनिक वर्गीकरण का पिता (Father of Modern  Taxonomy) कहते हैं। जीवधारियों का पाँच-जगत बगीकरण (Five-Kingdom Classification of Organism): * परम्परागत द्वि-जगत वर्गीकरण का स्थान अन्ततः व्हिटकर (Whittaker) द्वारा सन् 1969 ई. में प्रस्तावित 5-जगत प्रणाली ने ले लिया। इसके अनुसार समस्त जीवों को निम्नलिखित पाँच जगत (Kingdom) में वर्गीकृत किया गया- 1. मोनेरा ( Monera) 2. प्रोटिस्टा (Protista)  3. पादप (Pantae)  4. कवक ( Fungi) एवं  5. जन्तु (Animal)। 1. मोनेरा (Monera):  इस जगत में सभी प्रोकैरियोटिक जीव अर्थात जीवाणु, सायनोबैक्टीरिया तथा आर्की बैक्टीरिया सम्मिलित  किये  जाते हैं। तन्तुम

Genetics (आनुवंशिकी)

Genetics (आनुवंशिकी)  * वे लक्षण जो पीढ़ी दर-पीढ़ी संचरित होते हैं, आनुवंशिक लक्षण कहलाते हैं। आनुवंशिक लक्षणों के पीढ़ी-दर-पीढ़ी संचरण की विधियों और कारणों के अध्ययन को आनुवंशिकी (Genetics) कहते हैं। आनुवंशिकता के बारे में सर्वप्रथम जानकारी आस्ट्रिया निवासी ग्रेगर जोहान मेंडल (1822-1884) ने दी। इसी कारण उन्हें आनुवंशिकता का पिता (Father of Genetics) कहा जाता है। * आनुवंशिकी संबंधी प्रयोग के लिए मेंडल ने मटर के पौधे का चुनाव किया था। *  मेंडल ने पहले एक जोड़ी फिर दो जोड़े विपरीत गुणों की वंशागति का अध्ययन किया, जिन्हें क्रमशः एकसंकरीय तथा द्विसंकरीय क्रॉस कहते हैं।  एक संकरीय क्रॉस (Monohybrid cross) : मेंडल ने एक संकरीय क्रॉस के लिए लम्बे (TT) एवं बौने (tt) पौधों के बीच क्रॉस कराया, तो निम्न परिणाम प्राप्त हुए- *  द्विसंकरीय क्रॉस (Dihybrid cross): मेंडल ने द्विसंकरीय क्रॉस के लिए गोल तथा पीले बीज (RRYY) व हरे एवं झुर्रीदार बीज (rryy) से उत्पन्न पौधों को क्रॉस कराया। इसमें गोल तथा पीला बीज प्रभावी होते हैं। अतः, F2 , पीढ़ी के पौधों का फीनोटाइप अनुपात 9: 3: 3:1 प्राप्त हुए, तथा F2, पीढ

यन्त्र और उनके उपयोग (Instruments and their uses)

यन्त्र और उनके उपयोग (Instruments and their uses) 1) अल्टीमीटर → उंचाई सूचित करने हेतु वैज्ञानिक यंत्र 2) अमीटर → विद्युत् धारा मापन 3) अनेमोमीटर → वायुवेग का मापन 4) ऑडियोफोन → श्रवणशक्ति सुधारना 5) बाइनाक्युलर → दूरस्थ वस्तुओं को देखना 6) बैरोग्राफ → वायुमंडलीय दाब का मापन 7) क्रेस्कोग्राफ → पौधों की वृद्धि का अभिलेखन 8) क्रोनोमीटर → ठीक ठीक समय जान्ने हेतु जहाज में लगायी जाने वाली घड़ी 9) कार्डियोग्राफ → ह्रदयगति का मापन 10) कार्डियोग्राम → कार्डियोग्राफ का कार्य में सहयोगी 11) कैपिलर्स → कम्पास 12) डीपसर्किल → नतिकोण का मापन 13) डायनमो→ यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत उर्जा में बदलना 14) इपिडियास्कोप → फिल्मों का पर्दे पर प्रक्षेपण 15) फैदोमीटर → समुद्र की गहराई मापना 16) गल्वनोमीटर → अति अल्प विद्युत् धारा का मापन 17) गाड्गरमुलर → परमाणु कण की उपस्थिति व् जानकारी लेने हेतु 18) मैनोमीटर → गैस का घनत्व नापना 19) माइक्रोटोम्स → किसी वस्तु का अनुवीक्षनीय परिक्षण हेतु छोटे भागों में विभाजित करता है। 20) ओडोमीटर → कार द्वारा तय की गयी दूरी बताता है। 21) पेरिस्कोप → जल के भीतर से बाहरी वस्तुएं