पाचन-तंत्र (Digestive system) |
पाचन-तंत्र (Digestivesystem): भोजन के पाचन की सम्पूर्ण प्रक्रिया पाँच अवस्थाओं से गुजरता है-
पकवासय (Duodenum) में पाचन :
> भोजन को पक्वाशय में पहुँचते ही सर्वप्रथम इसमें यकृत (Iiver) से निकलने वाला पित्त रस (bileduct) आकर मिलता है। पित्त रस क्षारीय होता है और यह भोजन को अम्लीय से क्षारीय बना देता है।
> यहाँ अग्न्याशय से अग्न्याशय रस आकर भोजन में मिलता है, इसमें तीन प्रकार के एन्जाइम होते हैं--
(a) ट्रिप्सिन (Trypsin): यह प्रोटीन एवं पेप्टोन को पॉलीपेप्टाइड्स तथा अमीनो अम्ल में परिवर्तित करता है।
(b) एमाइलेज (Amylase): यह मांड (starch) को घुलनशील शर्करा (sugar) में परिवर्तित करता है।
(c) लाइपेज (Lipase): यह इमल्सीफाइड वसाओं को ग्लिसरीन तथा फैटी एसिड्स में परिवर्तित करता है।
छोटी आँत (Small Intestine) में पाचन :
> यहाँ भोजन के पाचन की क्रिया पूर्ण होती है एवं पचे हुए भोजन का अवशोषण होता है। छोटी आँत की दीवारों से आंत्रिक रस निकलता है। इसमें निम्न एन्जाइम होते हैं-
(a) इरेप्सिन (Erepsin): शेष प्रोटीन एवं पेप्टोन को अमीनो अम्ल में परिवर्तित करता है।
(b) माल्टेज (Maltase): यह माल्टोज को ग्लूकोज में परिवर्तित करता है।
(c) सुक्रेज (Sucrase): सुक्रोज (sucrose)को ग्लूकोज एवं फ्रुकटोज में परिवर्तित करता है।
(d) लैक्टेज (Lactase): यह लैक्टोज को ग्लूकोज एवं गैलेक्टोज में परिवर्तित करता है।
(e) लाइपेज (Lipase): यह इमल्सीफाइड वसाओं को ग्लिसरीन तथा फैटी एसिड्स में परिवर्तित करता है।
> आंत्रिक रस क्षारीय होता है। स्वस्थ मनुष्य में प्रतिदिन लगभग 2 लीटर आंत्रिक रस स्रावित होता है।
मनुष्य या किसी भी कशेरूकी जन्तु की आहार नाल एक लम्बी, कुण्डलित नलिका होती है जो मुख से शुरू होती है और गुदा (Anus) में समाप्त हो जाती है। मुखगुहा आहारनाल का पहला भाग है। मुखगुहा में जीभ, दाँत एवं तीन जोड़ी लार ग्रंथियाँ पायी जाती हैं।
जीभ (Tongue):
मुखगुहा के फर्श पर स्थित एक मोटी एवं मांसल रचना होती है। जीभ के ऊपरी सतह पर कई छोटे छोटे अंकुर (Papillae) होते हैं, जिन्हें स्वाद कलियाँ (Taste Buds) कहते हैं। इन्हीं स्वाद कलियों द्वारा मनुष्य को भोजन के विभिन्न स्वादों जैसे-मीठा, कड़वा, खट्टा आदि का ज्ञान होता है। जीभ के अग्र भाग से मीठे स्वाद का, पश्च भाग से कड़वे स्वाद का तथा बगल के भाग से खट्टे स्वाद का आभास होता है। जीभ अपनी गति के द्वारा भोजन को निगलने में मदद करता है।
दाँत (Tooth) :
मुखगुहा के ऊपरी तथा निचले दोनों जबड़ों में दाँतों की एक-एक पंक्ति पायी जाती है। मनुष्य के दाँत गर्तदन्ती (Thecodont), द्विवारदन्ती (Diphyodant) तथा विषय दन्ती (Heterodont) प्रकार के होते हैं। मनुष्य के एक जबड़े में 16 दाँत तथा कुल 32 दाँत होते हैं। जबड़े के प्रत्येक ओर दो कृन्तक (Incisors), एक रदनक (Canine), दो अग्रचवर्णक (Premolars) तथा तीन चवर्णक (Molars) दाँत पाए जाते हैं। मनुष्य के दाँत दो बार निकलते हैं। पहले शैशव अवस्था में 20 दाँत निकलते हैं जिन्हें दूध के दाँत (Milky tooth) कहते हैं। वयस्क अवस्था में 32 दाँत होते हैं।
नोट : दाँत के ऊपरी हिस्से या शिखर में ईनामेल (Enamel) का चमकीला स्तर पाया जाता है जो दाँत को सुरक्षा प्रदान करती है। ईनामेल मानव शरीर का सबसे कठोर भाग है।
लार ग्रंथियाँ (Salivary Glands) :
मनुष्य में तीन जोड़ी लार ग्रन्थियाँ पायी जाती हैं। पहली जोड़ी लार ग्रन्थि जिह्वा के दोनों ओर एक-एक की संख्या में उपस्थित होती है जो Sublingual Glands के नाम से जानी जाती है। दूसरी जोड़ी लार ग्रन्थियाँ निचले जबड़े के मध्य में मैक्जिल अस्थि के दोनों ओर एक-एक की संख्या में उपस्थित होती है जो Submaxillary Glands के नाम से जानी जाती है। तीसरी जोड़ी लार ग्रन्थियाँ दोनों कानों के नीचे एक-एक की संख्या में उपस्थित होती है, जो (Parotid Glands) के नाम से जानी जाती है। मनुष्य के लार (Saliva) में लगभग 99% जल तथा शेष 1% एन्जाइम होता है। लार में मुख्यतः दो प्रकार के एन्जाइम पाये जाते हैं-1. टायलिन (Ptylin) एवं 2. लाइसोजाइम (Lysozyme)
3. अवशोषण (Absorption) : पचे हुए भोजन का रुधिर में पहुँचना अवशोषण कहलाता है। पचे हुए भोजन का अवशोषण छोटी आँत की रचना उद्धर्घ (villi) के द्वारा होती है।
4. स्वांगीकरण (Assimilation): अवशोषित भोजन का शरीर के उपयोग में लाया जाना स्वांगीकरण कहलाता है।
5. मल-परित्याग (Deforcation) : अपच भोजन बड़ी आँत में पहुँचता है, जहाँ जीवाणु इसे मल में बदल देते हैं; जिसे गुदा (anus) द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है।
पाचन-कार्य में भाग लेने वाले प्रमुख अंग
यकृत (Iiver): यह मानव शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है। इसका वजन लगभग 1.5-2kg होता है।
> यकृत द्वारा ही पित्त स्रावित होता है। यह पित्त आँत में उपस्थित एन्जाइम की क्रिया को तीव्र कर देता है।
> यकृत प्रोटींन के उपापचय में सक्रिय रूप से भाग लेता है और प्रोटीन विघटन के फलस्वरूप उत्पन्न विषैले अमोनिया को यूरिया में परिवर्तित कर देता है।
> यकृत प्रोटीन की अधिकतम मात्रा को कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तित कर देता है।
> कार्बोहाइड्रेट उपापचय के अन्तर्गत यकृत रक्त के ग्लूकोज (Glucose)वाले भाग को ग्लाइकोजेन (Gilycogen)में परिवर्तित कर देता है और संचित पोषक तत्वों के रूप में यकृत कोशिका (Hepatic Cell)में संचित कर लेता है। ग्लूकोज की आवश्यकता होने पर यकृत संचित ग्लाइकोजेन को खंडित कर ग्लूकोज में परिवर्तित कर देता है। इस प्रकार यह रक्त में ग्लूकोज की मात्रा को नियमित बनाये रखता है।
> भोजन में वसा की कमी होने पर यकृत कार्बोहाइड्रेट के कुछ भाग को वसा में परिवर्तित कर देता है।
> फाइब्रिनोजेन (Fibrinogen) नामक प्रोटीन का उत्पादन यकृत से ही होता है, जो रक्त के थक्का बनने में मदद करता है।
> हिपैरिन (Heparin) नामक प्रोटीन का उत्पादन यकृत के द्वारा ही होता है, जो शरीर के अन्दर रक्त को जमने से रोकता है।
> मृत RBC को नष्ट यकृत के द्वारा ही किया जाता है।
> यकृत थोड़ी मात्रा में लोहा (Iron), ताँबा (Copper)और विटामिन को संचित करके रखता है।
> शरीर के ताप को बनाए रखने में मदद करता है।
> भोजन में जहर (Poison) देकर मारे गये व्यक्ति की मृत्यु के कारणों की जाँच में यकृत एक महत्वपूर्ण सुराग होता है।
पित्ताशय (Gall-bladder):
> पित्ताशय नाशपाती के आकार की एक थैली होती है, जिसमें यकृत से निकलने वाला पित्त जमा रहता है।
> पित्ताशय से पित्त पक्वाशय में पित्त-नलिका के माध्यम से आता है।
> पित्त का पक्वाशय में गिरना प्रतिवर्त्ती क्रिया (Reflex action) द्वारा होता है।
> पित्त (Bile) पीले-हरे रंग का क्षारीय व्रव है, जिसका pH मान 7.7 होता है।
> पित्त में जल की मात्रा 85% एवं पित्त वर्णक (Bile pigment) की मात्रा 12% होती है।
पित्त (Bile) का मुख्य कार्य निम्न है :
1. यह भोजन के माध्यम को क्षारीय कर देता है, जिससे अग्न्याशयी रस क्रिया कर सके।
2. यह भोजन में आए हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करता है।
3.यह वसाओं का इमल्सीकरण (Emulsification of fat) करता है।
4. यह आँत की क्रमाकुंचन गतियों को बढ़ाता है, जिससे भोजन में पाचक रस भली-भौंति मिल जाते हैं।
5. यह विटामिन K एवं वसाओं में घुले अन्य विटामिनों के अवशोषण में सहायक होता है।
> पित्तवाहिनी में अवरोध हो जाने पर यकृत कोशिकाएँ रुधिर से विलिरूबिन लेना बन्द कर देती है। फलस्वरूप विलिरूबिन सम्पूर्ण शरीर में फैल जाता है। इसे ही पीलिया कहते हैं।
अग्न्याशय (Pancreas):
यह मानव शरीर की दूसरी सबसे बड़ी ग्रंथि है। यह एक साथ अन्तःस्रावी (नलिकाहीन-Endocrine) और बहिःस्रावी (नलिकायुक्त Exocrine) दोनों प्रकार की ग्रंथि है।
> इससे अग्न्याशयी रस निकलता है जिसमें 9.8% जल तथा शेष भाग में लवण एवं एन्जाइम होते हैं। यह क्षारीय द्रव होता है, जिसका pH मान 7.5-8.3 होता है। इसमें तीनों प्रकार के मुख्य भोज्य- पदार्थ (यथा कार्बोहाइड्रेट, वसा एवं प्रोटीन) को पचाने के लिए एन्जाइम होते हैं, इसलिए इसे पूर्ण पाचक रस कहा जाता है। एन्जाइम मूलतः प्रोटीन होते हैं।
लैंगरहैंस की द्वीपिका (Islets of Langerhans):
> यह अग्न्याशय का ही एक भाग है।
> इसकी खोज लैंगरहैंस नामक चिकित्साशास्त्री ने की थी।
> इसके B-कोशिका (B-cell) से इन्सुलिन, (insulin), a-कोशिका क (a -cell) से ग्लूकॉन (Glucagon) एवं y -कोशिका (y - cell) से सोमेटोस्टेटिन (Somatostatin) नामक हार्मोन निकलता है।
इन्सुलिन (Insulin):
> यह अग्न्याशय के एक भाग लैंगरहैंस की द्वीपिका के B-कोशिका द्वारा स्रावित होता है।
> इसकी खोज फ्रेडेरिक बैटिंग एवं चार्ल्स बेस्ट ने सन् 1921 ई. में की थी। 1922 ई. में पहली बार लियोनाड थॉम्सन को कनाडा में इंसुलिन का इंजेक्शन दिया गया था ।
> यह ग्लूकोज से ग्लाइकोजेन बनने की क्रिया को नियंत्रित करता है।
> इन्सुलिन के अल्प स्रवण से मधुमेह (डाइबीटिज) नामक रोग हो जाता है।
नोट : रुधिर में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ना मधुमेह कहलाता है।
> इन्सुलिन के अतिस्रवण से हाइपोग्लाइसीमिया (Hypoglycemia) नामक रोग हो जाता है, जिसमें जनन-क्षमता तथा दृष्टि-ज्ञान कम होने लगता है।
ग्लूकॉन (Glucagon): यह ग्लाइकोजेन को पुनः ग्लूकोज में परिवर्तित कर देता है।
> सोमेटोस्टेटिन (Somatostatin): यह पॉलीपेप्टाइड (Polypeptide) हार्मोन होता है, जो भोजन के स्वांगीकरण की अवधि को बढ़ाता है।
पाचन का सारांश
ग्रंथि रस |
|
एन्जाइम |
भोज्य पदार्थ |
प्रतिक्रिया के बाद |
लार |
(a) |
टायलिन |
मंड |
माल्टोज |
(b) |
माल्टेज |
माल्टोज |
ग्लूकोज |
|
जठर रस |
(a) |
पेप्सिन |
प्रोटीन |
पेप्टोन्स |
(b) |
रेनिन |
केसीन |
कैल्शियम पैराकैसीनेट |
|
अग्न्याशय रस |
(a) |
ट्रिप्सिन |
प्रोटीन |
पॉलीपेप्टाइड्स |
(b) |
एमाइलेज |
मंड |
शर्करा |
|
(c) |
लाइपेज |
वसा |
वसा अम्ल व ग्लिसरॉल |
|
आन्रीय रस |
(a) |
इरेप्सिन |
प्रोटीन |
अमीनो अम्ल |
(b) |
माल्टेज |
माल्टोज |
ग्लूकोज |
|
(c) |
सुक्रेज |
सुक्रोज |
ग्लूकोज व फ्रुकटोज |
|
(d) |
लैक्टेज |
लैक्टोज |
ग्लूकोज व ग्लैक्टोज |
|
(e) |
लाइपेज |
वसा |
वसीय अम्ल व ग्लिसरॉल |
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