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पाचन-तंत्र (Digestive system)


पाचन-तंत्र (Digestive system)

पाचन-तंत्र (Digestivesystem):
भोजन के पाचन की सम्पूर्ण प्रक्रिया पाँच अवस्थाओं से गुजरता है-
1. अन्तर्ग्रहण ( Ingestion)
2. पाचन (Digestion)
3. अवशोषण (Absorption)
4. स्वांगीकरण (Assimilation) 
5. मल परित्याग (Defacation)

1. अन्तर्ग्रहन (Ingestion): 
1. भोजन को मुख में लेना अन्तर्ग्रहन कहलाता है।
2. पाचन (Digestion): मनुष्य में भोजन का पाचन मुख से प्रारम्भ हो जाता है और यह छोटी आांत तक जारी रहता है। मुख में स्थित लार ग्रंथियों से निकलने वाला एन्जाइम टायलिन भोजन में उपस्थित मंड (Starch) को माल्टोज शर्करा में अपघटित कर देता है, फिर माल्टेज नामक एन्जाइम माल्टोज शकर्करा को ग्लूकोज में परिवर्तित कर देता है। लाइसोजाइम नामक एन्जाइम भोजन में उपस्थित हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट कर देता है। इसके अतिरिक्त लार में उपस्थित शेष पदार्थ बफर कार्य करते हैं। इसके बाद भोजन आमाशय में पहुँचता है।

आमाशय (Stomach) में पाचन
आमाशय में भोजन लगभग चार घंटे तक रहता है। भोजन के आमाशय में पहुँचने पर पाइलोरिक ग्रंथियों से जठर रस (Gastric Juice)निकलता है। यह हल्के पीले रंग का अम्लीय द्रव होता है।
> आमाशय के ऑक्सिन्टिक कोशिकाओं से हाइड्रोक्लोरिक अम्ल निकलता है, जो भोजन के साथ आए हुये जीवाणुओं को नष्ट कर देता है तथा एन्जाइम की क्रिया को तीव्र कर देता है। हाइड्रोक्लोरिक  अम्ल भोजन के माध्यम को अम्लीय बना देता है, जिससे लार की टायलिन की क्रिया समाप्त हो जाती है। आमाशय में निकलने वाले जठर रस में एन्जाइम होते हैं-पेप्सिन एवं रेनिन।
> पेप्सिन प्रोटीन को खंडित कर सरल पदार्थों (पेप्टोन्स) में परिवर्तित कर देता है और रेनिन दूध की घुली हुई प्रोटीन केसीनोजेन (Caseinogen)को ठोस प्रोटीन कैल्शियम पैराकेसीनेट (Casein) के रूप में बदल देता है।

पकवासय (Duodenum) में पाचन :
> भोजन को पक्वाशय में पहुँचते ही सर्वप्रथम इसमें यकृत (Iiver) से निकलने वाला पित्त रस (bileduct) आकर मिलता है। पित्त रस क्षारीय होता है और यह भोजन को अम्लीय से क्षारीय बना देता है।

>  यहाँ अग्न्याशय से अग्न्याशय रस आकर भोजन में मिलता है, इसमें तीन प्रकार के एन्जाइम होते हैं--
(a) ट्रिप्सिन (Trypsin): यह प्रोटीन एवं पेप्टोन को पॉलीपेप्टाइड्स तथा अमीनो अम्ल में परिवर्तित करता है।
(b) एमाइलेज (Amylase): यह मांड (starch) को घुलनशील शर्करा (sugar) में परिवर्तित करता है।
(c) लाइपेज (Lipase): यह इमल्सीफाइड वसाओं को ग्लिसरीन तथा फैटी एसिड्स में परिवर्तित करता है।

छोटी आँत (Small Intestine) में पाचन :
> यहाँ भोजन के पाचन की क्रिया पूर्ण होती है एवं पचे हुए भोजन का अवशोषण होता है। छोटी आँत की दीवारों से आंत्रिक रस निकलता है। इसमें निम्न एन्जाइम होते हैं-
(a) इरेप्सिन (Erepsin): शेष प्रोटीन एवं पेप्टोन को अमीनो अम्ल में परिवर्तित करता है।
(b) माल्टेज (Maltase): यह माल्टोज को ग्लूकोज में परिवर्तित करता है।
(c) सुक्रेज (Sucrase): सुक्रोज (sucrose)को ग्लूकोज एवं फ्रुकटोज में परिवर्तित करता है।
(d) लैक्टेज (Lactase): यह लैक्टोज को ग्लूकोज एवं गैलेक्टोज में परिवर्तित करता है।
(e) लाइपेज (Lipase): यह इमल्सीफाइड वसाओं को ग्लिसरीन तथा फैटी एसिड्स में परिवर्तित करता है।
> आंत्रिक रस क्षारीय होता है। स्वस्थ मनुष्य में प्रतिदिन लगभग 2 लीटर आंत्रिक रस स्रावित होता है।
    मनुष्य या किसी भी कशेरूकी जन्तु की आहार नाल एक लम्बी, कुण्डलित नलिका होती है जो मुख से शुरू होती है और गुदा (Anus) में समाप्त हो जाती है। मुखगुहा आहारनाल का पहला भाग है। मुखगुहा में जीभ, दाँत एवं तीन जोड़ी लार ग्रंथियाँ पायी जाती हैं।

जीभ (Tongue):
मुखगुहा के फर्श पर स्थित एक मोटी एवं मांसल रचना होती है। जीभ के ऊपरी सतह पर कई छोटे छोटे अंकुर (Papillae) होते हैं, जिन्हें स्वाद कलियाँ (Taste Buds) कहते हैं। इन्हीं स्वाद कलियों द्वारा मनुष्य को भोजन के विभिन्न स्वादों जैसे-मीठा, कड़वा, खट्टा आदि का ज्ञान होता है। जीभ के अग्र भाग से मीठे स्वाद का, पश्च भाग से कड़वे स्वाद का तथा बगल के भाग से खट्टे स्वाद का आभास होता है। जीभ अपनी गति के द्वारा भोजन को निगलने में मदद करता है।

दाँत (Tooth) :
मुखगुहा के ऊपरी तथा निचले दोनों जबड़ों में दाँतों की एक-एक पंक्ति पायी जाती है। मनुष्य के दाँत गर्तदन्ती (Thecodont), द्विवारदन्ती (Diphyodant) तथा विषय दन्ती (Heterodont) प्रकार के होते हैं। मनुष्य के एक जबड़े में 16 दाँत तथा कुल 32 दाँत होते हैं। जबड़े के प्रत्येक ओर दो कृन्तक (Incisors), एक रदनक (Canine), दो अग्रचवर्णक (Premolars) तथा तीन चवर्णक (Molars) दाँत पाए जाते हैं। मनुष्य के दाँत दो बार निकलते हैं। पहले शैशव अवस्था में 20 दाँत निकलते हैं जिन्हें दूध के दाँत (Milky tooth) कहते हैं। वयस्क अवस्था में 32 दाँत होते हैं।

नोट : दाँत के ऊपरी हिस्से या शिखर में ईनामेल (Enamel) का चमकीला स्तर पाया जाता है जो दाँत को सुरक्षा प्रदान करती है। ईनामेल मानव शरीर का सबसे कठोर भाग है।

लार ग्रंथियाँ (Salivary Glands) :
मनुष्य में तीन जोड़ी लार ग्रन्थियाँ पायी जाती हैं। पहली जोड़ी लार ग्रन्थि जिह्वा के दोनों ओर एक-एक की संख्या में उपस्थित होती है जो Sublingual Glands के नाम से जानी जाती है। दूसरी जोड़ी लार ग्रन्थियाँ निचले जबड़े के मध्य में मैक्जिल अस्थि के दोनों ओर एक-एक की संख्या में उपस्थित होती है जो Submaxillary Glands के नाम से जानी जाती है। तीसरी जोड़ी लार ग्रन्थियाँ दोनों कानों के नीचे एक-एक की संख्या में उपस्थित होती है, जो (Parotid Glands) के नाम से जानी जाती है। मनुष्य के लार (Saliva) में लगभग 99% जल तथा शेष 1% एन्जाइम होता है। लार में मुख्यतः दो प्रकार के एन्जाइम पाये जाते हैं-1. टायलिन (Ptylin) एवं 2. लाइसोजाइम (Lysozyme)


3. अवशोषण (Absorption) : पचे हुए भोजन का रुधिर में पहुँचना अवशोषण कहलाता है। पचे हुए भोजन का अवशोषण छोटी आँत की रचना उद्धर्घ (villi) के द्वारा होती है।
4. स्वांगीकरण (Assimilation): अवशोषित भोजन का शरीर के उपयोग में लाया जाना स्वांगीकरण कहलाता है।
5. मल-परित्याग (Deforcation) : अपच भोजन बड़ी आँत में पहुँचता है, जहाँ जीवाणु इसे मल में बदल देते हैं; जिसे गुदा (anus) द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है।

पाचन-कार्य में भाग लेने वाले प्रमुख अंग
यकृत (Iiver): 
यह मानव शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है। इसका वजन लगभग 1.5-2kg होता है।
> यकृत द्वारा ही पित्त स्रावित होता है। यह पित्त आँत में उपस्थित एन्जाइम की क्रिया को तीव्र कर देता है।
> यकृत प्रोटींन के उपापचय में सक्रिय रूप से भाग लेता है और प्रोटीन विघटन के फलस्वरूप उत्पन्न विषैले अमोनिया को यूरिया में परिवर्तित कर देता है।
> यकृत प्रोटीन की अधिकतम मात्रा को कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तित कर देता है।
> कार्बोहाइड्रेट उपापचय के अन्तर्गत यकृत रक्त के ग्लूकोज (Glucose)वाले भाग को ग्लाइकोजेन (Gilycogen)में परिवर्तित कर देता है और संचित पोषक तत्वों के रूप में यकृत कोशिका (Hepatic Cell)में संचित कर लेता है। ग्लूकोज की आवश्यकता होने पर यकृत संचित ग्लाइकोजेन को खंडित कर ग्लूकोज में परिवर्तित कर देता है। इस प्रकार यह रक्त में ग्लूकोज की मात्रा को नियमित बनाये रखता है।

> भोजन में वसा की कमी होने पर यकृत कार्बोहाइड्रेट के कुछ भाग को वसा में परिवर्तित कर देता है।
> फाइब्रिनोजेन (Fibrinogen) नामक प्रोटीन का उत्पादन यकृत से ही होता है, जो रक्त के थक्का बनने में मदद करता है।
> हिपैरिन (Heparin) नामक प्रोटीन का उत्पादन यकृत के द्वारा ही होता है, जो शरीर के अन्दर रक्त को जमने से रोकता है।
> मृत RBC को नष्ट यकृत के द्वारा ही किया जाता है।
> यकृत थोड़ी मात्रा में लोहा (Iron), ताँबा (Copper)और विटामिन को संचित करके रखता है।
> शरीर के ताप को बनाए रखने में मदद करता है।
> भोजन में जहर (Poison) देकर मारे गये व्यक्ति की मृत्यु के कारणों की जाँच में यकृत एक महत्वपूर्ण सुराग होता है।

पित्ताशय (Gall-bladder):
> पित्ताशय नाशपाती के आकार की एक थैली होती है, जिसमें यकृत से निकलने वाला पित्त जमा रहता है।
> पित्ताशय से पित्त पक्वाशय में पित्त-नलिका के माध्यम से आता है।
> पित्त का पक्वाशय में गिरना प्रतिवर्त्ती क्रिया (Reflex action) द्वारा होता है।
> पित्त (Bile) पीले-हरे रंग का क्षारीय व्रव है, जिसका pH मान 7.7 होता है।
> पित्त में जल की मात्रा 85% एवं पित्त वर्णक (Bile pigment) की मात्रा 12% होती है।

पित्त (Bile) का मुख्य कार्य निम्न है :
1. यह भोजन के माध्यम को क्षारीय कर देता है, जिससे अग्न्याशयी रस क्रिया कर सके।
2. यह भोजन में आए हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करता है।
3.यह वसाओं का इमल्सीकरण (Emulsification of fat) करता है।
4. यह आँत की क्रमाकुंचन गतियों को बढ़ाता है, जिससे भोजन में पाचक रस भली-भौंति मिल जाते हैं।
5. यह विटामिन K एवं वसाओं में घुले अन्य विटामिनों के अवशोषण में सहायक होता है।
> पित्तवाहिनी में अवरोध हो जाने पर यकृत कोशिकाएँ रुधिर से विलिरूबिन लेना बन्द कर देती है। फलस्वरूप विलिरूबिन सम्पूर्ण शरीर में फैल जाता है। इसे ही पीलिया कहते हैं।

अग्न्याशय (Pancreas):
यह मानव शरीर की दूसरी सबसे बड़ी ग्रंथि है। यह एक साथ अन्तःस्रावी (नलिकाहीन-Endocrine) और बहिःस्रावी (नलिकायुक्त Exocrine) दोनों प्रकार की ग्रंथि है।
> इससे अग्न्याशयी रस निकलता है जिसमें 9.8% जल तथा शेष भाग में लवण एवं एन्जाइम होते हैं। यह क्षारीय द्रव होता है, जिसका pH मान 7.5-8.3 होता है। इसमें तीनों प्रकार के मुख्य भोज्य- पदार्थ (यथा कार्बोहाइड्रेट, वसा एवं प्रोटीन) को पचाने के लिए एन्जाइम होते हैं, इसलिए इसे पूर्ण पाचक रस कहा जाता है। एन्जाइम मूलतः प्रोटीन होते हैं।


लैंगरहैंस की द्वीपिका (Islets of Langerhans):
> यह अग्न्याशय का ही एक भाग है।
> इसकी खोज लैंगरहैंस नामक चिकित्साशास्त्री ने की थी।
> इसके B-कोशिका (B-cell) से इन्सुलिन, (insulin), a-कोशिका क (a -cell) से ग्लूकॉन (Glucagon) एवं y -कोशिका (y  - cell) से सोमेटोस्टेटिन (Somatostatin) नामक हार्मोन निकलता है।

इन्सुलिन (Insulin):
> यह अग्न्याशय के एक भाग लैंगरहैंस की द्वीपिका के B-कोशिका द्वारा स्रावित होता है।
> इसकी खोज फ्रेडेरिक बैटिंग एवं चार्ल्स बेस्ट ने सन् 1921 ई. में की थी। 1922 ई. में पहली बार लियोनाड थॉम्सन को कनाडा में इंसुलिन का इंजेक्शन दिया गया था ।
> यह ग्लूकोज से ग्लाइकोजेन बनने की क्रिया को नियंत्रित करता है।
> इन्सुलिन के अल्प स्रवण से मधुमेह (डाइबीटिज) नामक रोग हो जाता है।
नोट : रुधिर में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ना मधुमेह कहलाता है।
> इन्सुलिन के अतिस्रवण से हाइपोग्लाइसीमिया (Hypoglycemia) नामक रोग हो जाता है, जिसमें जनन-क्षमता तथा दृष्टि-ज्ञान कम होने लगता है।

ग्लूकॉन (Glucagon): यह ग्लाइकोजेन को पुनः ग्लूकोज में परिवर्तित कर देता है।
> सोमेटोस्टेटिन (Somatostatin): यह पॉलीपेप्टाइड (Polypeptide) हार्मोन होता है, जो भोजन के स्वांगीकरण की अवधि को बढ़ाता है।

पाचन का सारांश

ग्रंथि रस

 

एन्जाइम

भोज्य पदार्थ

प्रतिक्रिया के बाद

लार

(a)

टायलिन

मंड

माल्टोज

(b)

माल्टेज

माल्टोज

ग्लूकोज

जठर रस

(a)

पेप्सिन

प्रोटीन

पेप्टोन्स

(b)

रेनिन

केसीन

कैल्शियम पैराकैसीनेट

अग्न्याशय रस

(a)

ट्रिप्सिन

प्रोटीन

पॉलीपेप्टाइड्स

(b)

एमाइलेज

मंड

शर्करा

(c)

लाइपेज

वसा

वसा अम्ल व ग्लिसरॉल

आन्रीय रस

(a)

इरेप्सिन

प्रोटीन

अमीनो अम्ल

(b)

माल्टेज

माल्टोज

ग्लूकोज

(c)

सुक्रेज

सुक्रोज

ग्लूकोज व फ्रुकटोज

(d)

लैक्टेज

लैक्टोज

ग्लूकोज व ग्लैक्टोज

(e)

लाइपेज

वसा

वसीय अम्ल व ग्लिसरॉल


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Botany (वनस्पति विज्ञान)  * विभिन्न प्रकार के पेड़, पौधों तथा उनके क्रियाकलापों के अध्ययन को वनस्पति विज्ञान (Botany) कहते हैं। * (थियोफे्टस(Theophrastus) को वनस्पति विज्ञान का जनक कहा   जाता है। पादपों का वर्गीकरण (Classification of Plants); * एकलर (Eichler) ने 1883 ई. में वनस्पति जगत का वर्गीकरण निम्न रूप से किया जाता है। अपुष्पोद्भिद् पौधा (Cryptogamus); * इस वर्ग के पौधों में पुष्प तथा बीज नहीं होता है। इन्हें निम्न समूह में बाँटा गया है- थेलोफाइटा (Thalophyta): * यह वनस्पति जगत का सबसे बड़ा समूह है। इस समूह के पौधों का शरीर सुकाय (Thalus) होता है, अर्थात् पौधे जड़, तना एवं पत्ती आदि में विभक्त नहीं होते। इसमें संवहन ऊतक नहीं होता है। शैवाल (Algae) *  शैवालों के अध्ययन को फाइकोलॉजी (Phycology) कहते हैं। *  शैवाल प्रायः पर्णहरित युक्त, संवहन ऊतक रहित, आत्मपोषी (Autotrophic) होते हैं। इनका शरीर सुकाय सदृश होता है। लाभदायक शैवाल 1. भोजन के रूप में : फोरफाइरा, अल्बा, सरगासन, लेमिनेरिया, नॉस्टॉक आदि । 2. आयोडीन बनाने में : लेमिनेरिया) फ्यूकस, एकलोनिया आदि। 3. खाद के रूप में: नॉस्टॉक, एन

Classification of Organisms (जीवधारियों का वर्गीकरण)

  Classification of Organisms (जीवधारियों का वर्गीकरण) *    अरस्तू द्वारा समस्त जीवों को दो समूहों में विभाजित किया गया- जन्तु-समूह एवं वनस्पति-समूह । * लीनियस ने भी अपनी पुस्तक Systema Naturae में सम्पूर्ण जीवधारियों को दो जगतों (Kingdoms) पादप जगत ( Plant Kingdom) व जन्तु जगत (Animal Kingdom) में विभाजित किया। *  लीनियस ने वर्गीकरण की जो प्रणाली शुरू की उसी से आधुनिक वर्गीकरण प्रणाली की नींव पड़ी, इसलिए उन्हें आधुनिक वर्गीकरण का पिता (Father of Modern  Taxonomy) कहते हैं। जीवधारियों का पाँच-जगत बगीकरण (Five-Kingdom Classification of Organism): * परम्परागत द्वि-जगत वर्गीकरण का स्थान अन्ततः व्हिटकर (Whittaker) द्वारा सन् 1969 ई. में प्रस्तावित 5-जगत प्रणाली ने ले लिया। इसके अनुसार समस्त जीवों को निम्नलिखित पाँच जगत (Kingdom) में वर्गीकृत किया गया- 1. मोनेरा ( Monera) 2. प्रोटिस्टा (Protista)  3. पादप (Pantae)  4. कवक ( Fungi) एवं  5. जन्तु (Animal)। 1. मोनेरा (Monera):  इस जगत में सभी प्रोकैरियोटिक जीव अर्थात जीवाणु, सायनोबैक्टीरिया तथा आर्की बैक्टीरिया सम्मिलित  किये  जाते हैं। तन्तुम

फल/फुल/सब्जी आदि का वैज्ञानिक नाम (Scientific name of fruit / vegetable etc.)

  फल/फुल/सब्जी आदि का वैज्ञानिक नाम (Scientific name of fruit / vegetable etc.) 1.मनुष्य---होमो सैपियंस 2.मेढक---राना टिग्रिना 3.बिल्ली---फेलिस डोमेस्टिका 4.कुत्ता---कैनिस फैमिलियर्स 5.गाय---बॉस इंडिकस 6.भैँस---बुबालस बुबालिस 7.बैल---बॉस प्रिमिजिनियस टारस 8.बकरी---केप्टा हिटमस 9.भेँड़---ओवीज अराइज 10.सुअर---सुसस्फ्रोका डोमेस्टिका 11.शेर---पैँथरा लियो 12.बाघ---पैँथरा टाइग्रिस 13.चीता---पैँथरा पार्डुस 14.भालू---उर्सुस मैटिटिमस कार्नीवेरा 15.खरगोश---ऑरिक्टोलेगस कुनिकुलस 16.हिरण---सर्वस एलाफस 17.ऊँट---कैमेलस डोमेडेरियस 18.लोमडी---कैनीडे 19.लंगुर---होमिनोडिया 20.बारहसिँघा---रुसर्वस डूवासेली 21.मक्खी---मस्का डोमेस्टिका 22.आम---मैग्नीफेरा इंडिका 23.धान---औरिजया सैटिवाट 24.गेहूँ---ट्रिक्टिकम एस्टिवियम 25.मटर---पिसम सेटिवियम 26.सरसोँ---ब्रेसिका कम्पेस्टरीज 27.मोर---पावो क्रिस्टेसस 28.हाथी---एफिलास इंडिका 29.डॉल्फिन---प्लाटेनिस्टा गैँकेटिका 30.कमल---नेलंबो न्यूसिफेरा गार्टन 31.बरगद---फाइकस बेँधालेँसिस 32.घोड़ा---ईक्वस कैबेलस 33.गन्ना---सुगरेन्स औफिसीनेरम 34.प्याज---ऑलियम सिपिया 35.कपास---गैसीपीयम

प्राणी विज्ञान (Life Science)

प्राणी विज्ञान (Life Science) प्राणी विज्ञान : इसके अन्तर्गत जन्तुओं तथा उनके कार्यकलापों  का अध्ययन किया जाता है। 1. जन्तु जगत का बर्गीकरण (Classification of animal kingdom): > संसार के समस्त जन्तु जगत को दो उपजगत में विभक्त किया गया है-1. एककोशिकीय प्राणी, 2. बहुकोशिकीय प्राणी। एककोशिकीय प्राणी एक ही संघ प्रोटोजोआ में रखे गये जबकि बहुकोशिकीय  प्राणियों को 9 संघों में विभाजित किया गया। स्टोरर व यूसिन्जर  के अनुसार जन्तुओं का वर्गीकरण- संघ प्रोटोजोआ (Protozoa): प्रमुख लक्षण 1. इनका शरीर केवल एककोशिकीय होता है। 2. इनके जीवद्रव्य में एक या अनेक केन्द्रक पाये जाते हैं। 3. प्रचलन पदाभों, पक्ष्मों या कशाभों के द्वारा होता है। 4. स्वतंत्र जीवी एवं परजीवी दोनों प्रकार के होते हैं। 5. सभी जैविक क्रियाएँ (भोजन, पाचन, श्वसन, उत्सर्जन, जनन) एककोशिकीय शरीर के अन्दर होती है। 6. श्वसन एवं उत्सर्जन कोशिका की सतह से विसरण के द्वारा होते हैं। प्रोटोजोआ एण्ट अमीबा हिस्टोलिटिका का संक्रमण मनुष्य में 30-40 वर्षों के लिए बना रहता है। संघ पोरिफेरा (Porifera): > इस संघ के सभी जन्तु खारे जल में पाये जात

Bio-development (जैव विकाश)

Bio-development (जैव-विकास)      प्रारंभिक, निम्न कोटि के जीवों से क्रमिक परिवर्तनों द्वारा अधिकाधिक जीवों की उत्पत्ति को जैव विकास (Organic evolution) कहा जाता है। जीव-जन्तुओं की रचना कार्यिकी एवं रासायनिकी, भ्रूणीय विकास, वितरण आदि में विशेष क्रम व आपसी संबंध के आधार पर सिद्ध किया गया है कि जैव विकास हुआ है। लेमार्क, डार्विन, वैलेस, डी . बरीज आदि ने जैव विकास के संबंध में अपनी-अपनी परिकल्पनाओं को सिद्ध करने के लिए इन्हीं संबंधों को दर्शाने वाले निम्नलिखित प्रमाण प्रस्तुत किये हैं- 1 वर्णीकरण से प्रमाण 2. तुलनात्मक शरीर रचना से प्रमाण 3 अवशोषी अंगों से प्रमाण 4 संयोजकरता जन्तुओं से प्रमाण 5. पूर्वजता से प्रमाण 6. तुलनात्मक भ्रौणिकी से प्रमाण 7. भौगोलिक वितरण से प्रमाण 8. तुलनात्मक कार्यिकी एवं जीव- रासायनिकी से प्रमाण 9. आनुवंशिकी से प्रमाण 10. पशुपालन से प्रमाण 11. रक्षात्मक समरूपता से प्रमाण  12. जीवाश्म विज्ञान एवं जीवाश्मकों से प्रमाण समजात अंग (Homologous organ) ऐसे अंग जो विभिन्न कार्यों के लिए उपयोजित हो जाने के कारण काफी असमान दिखायी देते हैं, परन्तु मूल रचना एवं भ्रूणीय परिवर

Ecology (पारिस्थितिकी)

Ecology (पारिस्थितिकी) * जीव विज्ञान की उस शाखा को जिसके अन्तर्गत जीवधारियों और उनके वातावरण के पारस्परिक संबंधों का अध्ययन करते हैं, उसे पारिस्थितिकी कहते हैं। *  एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र या वास-स्थान में निवास करने वाली विभिन्न समष्टियों (Population) को जैविक समुदाय (Biotic community) कहते हैं। *  रचना एवं कार्य की दृष्टि से विभिन्न जीवों और वातावरण की मिली-जुली इकाई को पारिस्थितिक तंत्र (Ecosystem) कहते हैं। सर्वाधिक स्थायी पारिस्थितिक तंत्र महासागर है। * पारिस्थितिक तंत्र या पारितंत्र (Ecaystem or ecological syatem) शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम टेन्सले नामक वैज्ञानिक ने किया था।  * संरचनात्मक दृष्टि से प्रत्येक पारिस्थितिक तंत्र दो घटकों का बना होता है  A)  जैविक घटक,  B)  अजैविक घटक A. जैविक घटक  (Biotic components): इसे तीन भागों में विभक्त किया गया है- 1. उत्पादक  2. उपभोक्ता 3. अपघटक 1. उत्पादक : वे घटक जो अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। जैसे-हरे पीधे। 2. उपभोक्ता : वे घटक जो उत्पादक द्वारा बनाये गये भोज्य पदार्थों का उपभोग करते हैं। उपभोक्ता के तीन प्रकार हैं- (a) प्राथमिक उपभोक्ता

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कोशिका विज्ञान (cell Biology)

  कोशिका विज्ञान ( cell Biology) जीवद्रव्य (Protoplasm): *  जीवद्रव्य का नामकरण पुरकिंजे  (Purkenje) के द्वारा सन् 1839 ई. में किया गया। * यह एक तरल गाढ़ा रंगहीन, पारभासी, लसलसा, वजनयुक्त पदार्थ है। जीव की सारी जैविक क्रियाएँ इसी के द्वारा होती हैं। इसीलिए जीवद्रव्य (Protoplasm)को जीवन का भौतिक आधार कहते हैं। *  जीवद्रव्य दो भागों में बँटा होता है- 1. कोशिका द्रव्य (Cytoplasm) :  यह कोशिका में केन्द्रक एवं कोशिका झिल्ली के बीच रहता है। 2  केन्द्रक द्रव्य (Nucleoplasm):  यह कोशिका में केन्द्रक के अन्दर रहता है। * जीवद्रव्य का 99% भाग निम्न चार तत्वों से मिलकर बना होता है- 1. ऑक्सीजन (76%) 2. कार्बन (10.5%) 3. हाइड्रोजन (10%) 4. नाइट्रोजन (2.5%) * जीवद्रव्य का लगभग 80% भाग जल होता है। * जीवद्रव्य में अकार्बनिक एवं कार्बनिक यौगिकों का अनुपात 81 : 19 का होता है। कोशिका (Cell): *  कोशिका (Cell) जीवन की सबसे छोटी कार्यात्मक एवं संरचनात्मक इकाई है। एन्टोनवान लिवेनहाक ने पहली बार कोशिका को देखा व इसका वर्णन किया था। * कोशिका के अध्ययन के विज्ञान को Cytology कहा जाता है। * कोशिकाओं का औसत संगठन

जीव विज्ञान (Biology)

जीव विज्ञान (Biology)      जीव विज्ञान (Biology): यह विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अन्तर्गत जीवधारियों का अध्ययन किया जाता है। * Biology-Bio का अर्थ है-जीवन (Iife) और Logos का अर्थ है- अध्ययन (study) अर्थात् जीवन का अध्ययन ही Biology कहलाता है। * जीव विज्ञान शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम लैमार्क (Lamarck) (फ्रांस) एवं ट्रेविरेनस (Theviranus) (जर्मनी) नामक वैज्ञानिकों ने 1801 ई. में किया था। जीव विज्ञान की कुछ शाखाएँ एपीकल्चर(Apiculture)                       मधुमक्खी पालन का अध्ययन

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मानव रोग (Human disease)

मानव रोग (Human disease) परजीवी protozoa  से होने वाले रोग।  मेक्कुलाच ने 1827 ई. में सर्वप्रथम मलेरिया शब्द का प्रयोग किया। मलेरिया रोग की पुष्टि रक्त की बूँद तथा पी एफ मामलोंके लिए आर. डी. किट्स सूक्ष्मदर्शी जाँच द्वारा की जाती है। >लेवरन (1880 ई.) ने मलेरिया से पीड़ित व्यक्ति के रुधिर में मलेरिया परजीवी प्लाज्मोडियम की खोज की । > रोनाल्ड रास (1887 ई.) ने मलेरिया परजीवी द्वारा मलेरिया होने की पुष्टि की तथा बताया कि मच्छर इसका वाहक है। > मलेरिया रोग में लाल रुधिराणु नष्ट हो जाते हैं तथा रक्त में कमी आ जाती है। इसके उपचार में कुनैन, पेलुड्रीन, क्लोरोक्वीन, प्रीमाक्वीन औषधि लेनी चाहिए। > 1882 ई. में जर्मन वैज्ञानिक रॉबर्ट कोच ने कॉलरा एवं टी. बी. के जीवाणुओं की खोज की। > लुइ पाश्चर ने रेबीज का टीका एवं दूध का पाश्चुराइजेशन की खोज की। > बच्चों को DPT टीका उन्हें डिप्थीरिया, काली खाँसी एवं टिटनेस रोग प्रतिरक्षीकरण (Immunization) के लिए दिया जाता है। विषाणु virus  से होने वाली बीमारी। > जिका बुखार, जिसे जिका रोग के नाम से जाना जाता है, जिका।वायरस के कारण उत्पन्न होता ह

फल/फुल/सब्जी आदि का वैज्ञानिक नाम (Scientific name of fruit / vegetable etc.)

  फल/फुल/सब्जी आदि का वैज्ञानिक नाम (Scientific name of fruit / vegetable etc.) 1.मनुष्य---होमो सैपियंस 2.मेढक---राना टिग्रिना 3.बिल्ली---फेलिस डोमेस्टिका 4.कुत्ता---कैनिस फैमिलियर्स 5.गाय---बॉस इंडिकस 6.भैँस---बुबालस बुबालिस 7.बैल---बॉस प्रिमिजिनियस टारस 8.बकरी---केप्टा हिटमस 9.भेँड़---ओवीज अराइज 10.सुअर---सुसस्फ्रोका डोमेस्टिका 11.शेर---पैँथरा लियो 12.बाघ---पैँथरा टाइग्रिस 13.चीता---पैँथरा पार्डुस 14.भालू---उर्सुस मैटिटिमस कार्नीवेरा 15.खरगोश---ऑरिक्टोलेगस कुनिकुलस 16.हिरण---सर्वस एलाफस 17.ऊँट---कैमेलस डोमेडेरियस 18.लोमडी---कैनीडे 19.लंगुर---होमिनोडिया 20.बारहसिँघा---रुसर्वस डूवासेली 21.मक्खी---मस्का डोमेस्टिका 22.आम---मैग्नीफेरा इंडिका 23.धान---औरिजया सैटिवाट 24.गेहूँ---ट्रिक्टिकम एस्टिवियम 25.मटर---पिसम सेटिवियम 26.सरसोँ---ब्रेसिका कम्पेस्टरीज 27.मोर---पावो क्रिस्टेसस 28.हाथी---एफिलास इंडिका 29.डॉल्फिन---प्लाटेनिस्टा गैँकेटिका 30.कमल---नेलंबो न्यूसिफेरा गार्टन 31.बरगद---फाइकस बेँधालेँसिस 32.घोड़ा---ईक्वस कैबेलस 33.गन्ना---सुगरेन्स औफिसीनेरम 34.प्याज---ऑलियम सिपिया 35.कपास---गैसीपीयम

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Genetics (आनुवंशिकी)

Genetics (आनुवंशिकी)  * वे लक्षण जो पीढ़ी दर-पीढ़ी संचरित होते हैं, आनुवंशिक लक्षण कहलाते हैं। आनुवंशिक लक्षणों के पीढ़ी-दर-पीढ़ी संचरण की विधियों और कारणों के अध्ययन को आनुवंशिकी (Genetics) कहते हैं। आनुवंशिकता के बारे में सर्वप्रथम जानकारी आस्ट्रिया निवासी ग्रेगर जोहान मेंडल (1822-1884) ने दी। इसी कारण उन्हें आनुवंशिकता का पिता (Father of Genetics) कहा जाता है। * आनुवंशिकी संबंधी प्रयोग के लिए मेंडल ने मटर के पौधे का चुनाव किया था। *  मेंडल ने पहले एक जोड़ी फिर दो जोड़े विपरीत गुणों की वंशागति का अध्ययन किया, जिन्हें क्रमशः एकसंकरीय तथा द्विसंकरीय क्रॉस कहते हैं।  एक संकरीय क्रॉस (Monohybrid cross) : मेंडल ने एक संकरीय क्रॉस के लिए लम्बे (TT) एवं बौने (tt) पौधों के बीच क्रॉस कराया, तो निम्न परिणाम प्राप्त हुए- *  द्विसंकरीय क्रॉस (Dihybrid cross): मेंडल ने द्विसंकरीय क्रॉस के लिए गोल तथा पीले बीज (RRYY) व हरे एवं झुर्रीदार बीज (rryy) से उत्पन्न पौधों को क्रॉस कराया। इसमें गोल तथा पीला बीज प्रभावी होते हैं। अतः, F2 , पीढ़ी के पौधों का फीनोटाइप अनुपात 9: 3: 3:1 प्राप्त हुए, तथा F2, पीढ

यन्त्र और उनके उपयोग (Instruments and their uses)

यन्त्र और उनके उपयोग (Instruments and their uses) 1) अल्टीमीटर → उंचाई सूचित करने हेतु वैज्ञानिक यंत्र 2) अमीटर → विद्युत् धारा मापन 3) अनेमोमीटर → वायुवेग का मापन 4) ऑडियोफोन → श्रवणशक्ति सुधारना 5) बाइनाक्युलर → दूरस्थ वस्तुओं को देखना 6) बैरोग्राफ → वायुमंडलीय दाब का मापन 7) क्रेस्कोग्राफ → पौधों की वृद्धि का अभिलेखन 8) क्रोनोमीटर → ठीक ठीक समय जान्ने हेतु जहाज में लगायी जाने वाली घड़ी 9) कार्डियोग्राफ → ह्रदयगति का मापन 10) कार्डियोग्राम → कार्डियोग्राफ का कार्य में सहयोगी 11) कैपिलर्स → कम्पास 12) डीपसर्किल → नतिकोण का मापन 13) डायनमो→ यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत उर्जा में बदलना 14) इपिडियास्कोप → फिल्मों का पर्दे पर प्रक्षेपण 15) फैदोमीटर → समुद्र की गहराई मापना 16) गल्वनोमीटर → अति अल्प विद्युत् धारा का मापन 17) गाड्गरमुलर → परमाणु कण की उपस्थिति व् जानकारी लेने हेतु 18) मैनोमीटर → गैस का घनत्व नापना 19) माइक्रोटोम्स → किसी वस्तु का अनुवीक्षनीय परिक्षण हेतु छोटे भागों में विभाजित करता है। 20) ओडोमीटर → कार द्वारा तय की गयी दूरी बताता है। 21) पेरिस्कोप → जल के भीतर से बाहरी वस्तुएं